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Film Certification Process: क्या होता है फिल्म के पास होने का पूरा प्रोसेस, कौन करता है... किस तरह होता है सर्टिफिकेशन? यहां जानें सबकुछ

फिल्मों को जनता के लिए रिलीज़ करने से पहले उनकी समीक्षा की जानी जरूरी है. इससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि जो फिल्में लोगों को दिखाई जा रही हैं वे हिंसा न भड़काएं, घृणा को बढ़ावा न दें और सार्वजनिक नैतिकता को ठेस न पहुंचाएं. 

Film Certification (Representative Image) Film Certification (Representative Image)
हाइलाइट्स
  • फिल्म सर्टिफिकेशन की होती हैं कैटेगरी 

  • काफी बड़ा होता है सर्टिफिकेशन का प्रोसेस 

बॉलीवुड की गिनती दुनिया की सबसे बड़ी फिल्म इंडस्ट्री में होती है. हर साल देश में 1,250 से ज़्यादा फीचर फिल्में और उससे भी ज्यादा संख्या में शॉर्ट फिल्में बनती हैं. हालांकि, चमक-दमक वाली फिल्में दर्शकों के सामने आने से पहले काफी लंबे प्रोसेस से गुजरती हैं. इसे फिल्म सर्टिफिकेशन कहा जाता है. 

सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC), जिसे आमतौर पर सेंसर बोर्ड के रूप में जाना जाता है, बड़ी भूमिका निभाता है. यह प्रक्रिया सबसे जरूरी होती है. 

फिल्म सर्टिफिकेशन क्यों जरूरी है?
फिल्म सर्टिफिकेशन सिर्फ कट्स और एडिट्स नहीं है. बल्कि यह रचनात्मक अभिव्यक्ति और सामाजिक मानदंडों के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए जरूरी है. भारत के सुप्रीम कोर्ट ने 1989 में एक ऐतिहासिक फैसले में फिल्म सेंसरशिप की जरूरत के बारे में बताया था. कोर्ट ने कहा था कि फिल्मों में विचारों, भावनाओं और काम को प्रभावित करने की एक अनूठी क्षमता होती है. 

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संचार के दूसरे रूपों के अलग, फिल्में ऐसी कहानी कहती हैं जो दर्शकों को गहराई से प्रभावित कर सकती है. इस शक्तिशाली चीज का उपयोग अच्छे या बुरे के लिए किया जा सकता है, इसलिए कंटेंट की निगरानी और मैनेजमेंट के लिए एक सिस्टम का होना जरूरी हो जाता है.

कोर्ट ने ये भी कहा कि फिल्मों को जनता के लिए रिलीज़ करने से पहले उनकी समीक्षा की जानी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे हिंसा को न भड़काएं, घृणा को बढ़ावा न दें या सार्वजनिक नैतिकता को ठेस न पहुंचाएं  

क्या है सेंसर बोर्ड?
सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) सूचना और प्रसारण मंत्रालय के तहत आता है. सिनेमैटोग्राफ अधिनियम 1952 के तहत इसे बनाया गया है. CBFC का काम फिल्मों को रेगुलेट करना है. मुंबई में इसका हेड ऑफिस है. साथ ही CBFC मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बैंगलोर, तिरुवनंतपुरम, हैदराबाद, नई दिल्ली, कटक और गुवाहाटी में स्थित नौ लोकल ऑफिस के माध्यम से भी काम करता है. 

बोर्ड में एक चेयरमैन और 23 सदस्य होते हैं, जिनकी नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाती है. सीबीएफसी के वर्तमान चेयरमैन प्रसून जोशी हैं. 

(फोटो- Unsplash)
(फोटो- Unsplash)

फिल्म सर्टिफिकेशन की होती हैं कैटेगरी 
CBFC चार अलग-अलग कैटेगरी के तहत फिल्मों को सर्टिफिकेशन देती है: 

1. U (यूनिवर्सल): इस कैटेगरी के अंतर्गत आने वाली फिल्मों को बिना किसी प्रतिबंध के सार्वजनिक रूप से दिखाने के लिए उपयुक्त माना जाता है. ये फ़िल्में सभी उम्र के दर्शक देख सकते हैं, जिनमें परिवार, बच्चे सभी शामिल हैं. 

2. UA (माता-पिता का मार्गदर्शन): इस कैटेगरी की फिल्मों में ऐसा कंटेंट होता है जो 12 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए अनुपयुक्त हो सकता है. हालांकि, इन्हें भी सार्वजनिक तौर पर दिखाया जा सकता है, बशर्ते कि माता-पिता अपने बच्चों को देखने के दौरान मार्गदर्शन करें. 

3. A (वयस्क): यह कैटेगरी उन फिल्मों के लिए आरक्षित है जो केवल वयस्क दर्शक देख सकते हैं. इन फिल्मों में एडल्ट कंटेंट हो सकता है, जिसमें हिंसा वगैरह शामिल हो सकती है. 

4. एस (प्रतिबंधित): 'एस' कैटेगरी के अंतर्गत आने वाली फिल्में स्पेशल ऑडियंस, जैसे कि डॉक्टर या विशिष्ट क्षेत्रों के प्रोफेशनल तक ही सीमित हैं. ये फिल्में अक्सर विशेष विषयों से संबंधित होती हैं जो आम जनता के लिए प्रासंगिक या उपयुक्त नहीं हो सकती हैं.

काफी बड़ा होता है सर्टिफिकेशन का प्रोसेस 
भारत में फिल्म सर्टिफिकेशन का प्रोसेस सिनेमैटोग्राफ नियमों के हिसाब से बनाया गया है. इसमें कई सावधानीपूर्वक कदम शामिल हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जनता तक पहुंचने से पहले हर फिल्म की पूरी तरह से समीक्षा की जाए.

1. एप्लीकेशन जमा करना: सर्टिफिकेशन प्रोसेस में पहले स्टेप एप्लीकेशन जमा करना है. इसमें प्रोडूसर संबंधित ऑफिस में एक लिखित रूप में एप्लीकेशन देता है. ये एप्लीकेशन एक निर्धारित फॉर्म में होनी चाहिए और इसमें सभी जरूरी फिल्म कंटेंट, रिटेन कंटेंट और अपेक्षित फीस शामिल होनी चाहिए.

2. जांच समिति का गठन: एप्लीकेशन और सभी जरूरी कंटेंट के बाद, क्षेत्रीय अधिकारी फिल्म की समीक्षा करने के लिए एक जांच समिति (EC) का गठन करता है. शॉर्ट फिल्मों के लिए, EC में एक सीबीएफसी अधिकारी और एक सलाहकार पैनल सदस्य होता है, जिसमें से कम से कम दो महिला होती हैं. फीचर फिल्मों के लिए, EC में चार सदस्य शामिल होते हैं, जिनमें से दो महिलाएं होनी चाहिए. 

3. फिल्म समीक्षा और रिपोर्टिंग: जांच समिति फिल्म का प्रीव्यू करती है और प्रत्येक सदस्य एक लिखित रिपोर्ट देता है. इस रिपोर्ट में हटाने, एडिट करने और फिल्म को किस तरह का सर्टिफिकेट त्र मिलना चाहिए, इसकी सिफारिशें शामिल होती हैं. इसके बाद रिपोर्ट CBFC के अध्यक्ष को सौंपी जाती हैं.

4. अध्यक्ष का निर्णय और आगे की प्रक्रिया: चेयरमैन रिपोर्ट की समीक्षा करते हैं और फिल्म को या तो खुद या आवेदक के अनुरोध पर संशोधन समिति (RC) को भेज देते हैं. आवेदक के पास बोर्ड के निर्णय के खिलाफ अपील करने के लिए 14 दिन का समय होता है. एग्जामिनिंग कमेटी में चेयरमैन या उनकी अनुपस्थिति में बोर्ड का कोई सदस्य और CBFC या सलाहकार पैनल के दूसरे सदस्य शामिल होते हैं. जरूरी बात यह है कि जो सदस्य जांच समिति का हिस्सा थे, उन्हें एग्जामिनिंग कमेटी में काम करने की अनुमति नहीं होती है.

5. रिवाइजिंग कमेटी रिव्यू: रिवाइजिंग कमेटी फिल्म का वही वर्जन देखती है जिसका रिव्यू एग्जामिनिंग कमेटी ने किया था, जिसमें कोई बदलाव नहीं किया जाता. प्रत्येक सदस्य थिएटर छोड़ने से पहले अपना फैसला दर्ज करता है. अगर चेयरमैन बहुमत के विचार से असहमत हैं, तो वे फिल्म का रिव्यू करने के लिए किसी दूसरी रिवाइजिंग कमेटी को निर्देश दे सकते हैं.

6. फाइनल सर्टिफिकेशन: एक बार आवेदक को बोर्ड के निर्णय के बारे में सूचित कर दिया जाता है, तो इसके बाद उन्हें सभी एडिट्स और कट्स करने होते हैं. आखिर में उन्हें फाइनल सर्टिफिकेशन के लिए फिल्म को फिर से प्रस्तुत करना होता है. इसके बाद CBFC सर्टिफिकेशन जारी करता है, जिससे फिल्म को सार्वजनिक रूप से दिखाया जा सकता है.

सर्टिफिकेशन के लिए समय सीमा
सर्टिफिकेशन प्रोसेस के नियम 41 में समय सीमा भी बताई गई है. ये समय सीमा सुनिश्चित करती है कि प्रक्रिया बिना किसी देरी के पूरी हो. सर्टिफिकेशन प्रोसेस के लिए कुल समय सीमा 68 दिन है. 

आवेदन की जांच

7 दिन

एग्जामिनेशन कमेटी (EC) का गठन

15 दिन

ईसी रिपोर्ट को चेयरपर्सन को देना

10 दिन

आवेदक को कट और एडिट के लिए बताना

3 दिन

प्रोड्यूसर द्वारा कट्स करना

14 दिन

कट्स की जांच

14 दिन

सर्टिफिकेशन जारी करना

5 दिन

RTI की है बड़ी भूमिका
हाल के सालों में, फिल्म सर्टिफिकेशन प्रोसेस में पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग बढ़ रही है. मीडिया वॉच इंडिया जैसे गैर-लाभकारी संगठनों ने फिल्म सर्टिफिकेशन से संबंधित दस्तावेज और डेटा प्राप्त करने के लिए सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम का उपयोग किया है. उदाहरण के लिए, फिल्म "मुन्ना पांडे बेरोजगार" के लिए सर्टिफिकेशन प्रोसेस से संबंधित दस्तावेज आरटीआई के माध्यम से प्राप्त किए गए थे. 

भारत में फिल्म सर्टिफिकेशन एक बड़ी प्रक्रिया है. इससे सुनिश्चित होता है कि केवल अच्छा कंटेंट ही लोगों तक जाए. फिल्मों के कंटेंट को रेगुलेट करके, सीबीएफसी यह सुनिश्चित करता है कि जिम्मेदारी से सिनेमा दिखाया जाए.