जरा सोचिए जब आप 7-8 साल के थे तब आप क्या कर रहे थे? जिस उम्र में ज्यादातर बच्चे एबीसीडी बोलते और सीखते हैं उस उम्र में गुजरात के सरस गांव की आठ एक साल की बच्ची स्वतंत्रता आंदोलन में अपने से तीन गुना बड़े लोगों के साथ कदम से कदम मिलकर चल रही थी. 1928 में उषा मेहता नीम की ये लड़की देशभर में अंग्रेजों के खिलाफ चल रही मार्च में शामिल हो कर "साइमन, वापस जाओ" के नारे लगा रहीं थी. इतना ही नहीं बल्कि इस छोटी सी उम्र में अंग्रेजों की ईंटें भी खा रही थीं. आज उषा मेहता का नाम भारत के उन स्वतंत्रता सेनानियों में लिया जाता है जिनकी बदौलत देश को आजादी मिली.
अब इनपर एक फिल्म आ रही है. बॉलीवुड एक्ट्रेस सारा अली खान अपनी अगली फिल्म ‘ऐ वतन मेरे वतन’ में भारतीय स्वतंत्रता सेनानी उषा मेहता की भूमिका निभा रहीं हैं. सोमवार को करण जौहर ने इंटरनेट पर फिल्म का टीजर भी जारी कर दिया है. टीजर में मुंबई की स्वतंत्रता सेनानी उषा मेहता के रूप में सारा का पहला लुक दिखाया गया है.
उषा मेहता ने शुरू की थी सीक्रेट रेडियो
बताते चलें कि उषा मेहता ने देश में पहली सीक्रेट रेडियो भी शुरू की थी. जब उषा 22 साल की थीं, तब उन्होंने 8 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी के 'भारत छोड़ो' आह्वान के पांच दिन बाद 'सीक्रेट कांग्रेस रेडियो' लॉन्च की थी. जिसके बाद वे काफी सुर्खियों में आ गईं थी. भारत छोड़ो आंदोलन के शुरू होने का इन पांच दिनों के भीतर न जाने कितने सारे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) के नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था. उन्हें जेलों में डाल दिया गया था ताकि आंदोलन को आगे न बढ़ाया जा सके.
बमुश्किल पांच दिनों में, उषा और उनकी टीम के साथी जिसमें विट्ठलभाई झावेरी, बाबूभाई ठक्कर, चंद्रकांत झावेरी और शिकागो रेडियो के मालिक नंका मोटवानी और अन्य लोग शामिल थे, ने 'सीक्रेट कांग्रेस रेडियो' से देशभर में हलचल मचा दी थी.
समुद्र के पाने से पैदा करती थीं नमक
एक इंटरव्यू में उषा मेहता याद करती हुईं बताती हैं कि नमक सत्याग्रह के दौरान वह अपने घर में समुद्र का पानी लाती थीं और उससे नमक पैदा करती थीं. हालांकि, डॉ. उषा के पिता इस तरह के आंदोलनों में उनकी भागीदारी के आलोचक थे. उनके पिता ब्रिटिश राज के तहत एक जज थे. लेकिन, बेटी की हठ देखते हुए पिता को राजी होना ही पड़ा. 1930 में डॉ. उषा के पिता ने रिटायरमेंट के बाद उन्हें अपनी इच्छानुसार काम करने की अनुमति दे दी थी.
आंदोलन में शामिल होने के लिए छोड़ दी पढ़ाई
डॉ. उषा के बंबई आने के बाद, उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में पूरी तरह से भाग लेना शुरू कर दिया था. जिसे देखते हुए उन्होंने कई गलत चीजों का विरोध किया. बेखौफ उन्होंने शराब की दुकानों के सामने विरोध किया, छिपकर अलग-अलग प्रकाशनों को लोगों में बांटा. इतनी ही नहीं बल्कि वे जेल में बंद लोगों के लिए कई बार संदेशवाहक भी बनीं. साल 1939 में, उषा मेहता ने विल्सन कॉलेज, बॉम्बे से दर्शनशास्त्र में ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की और कानून की पढ़ाई के लिए तैयारी करने लगीं. हालांकि, भारत छोड़ो आंदोलन की घोषणा के साथ, उन्होंने अपनी पढ़ाई रोकने और स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने का फैसला किया.
बाद में बिताया ब्रह्मचारी का जीवन
स्वतंत्रता के बाद, 27 साल की उम्र में उषा, गांधीजी से इतनी प्रभावित हुई कि वह एक ब्रह्मचारी बन गईं, गांधीवादी जीवन शैली को अपनाया, सुख-सुविधाओं को त्याग दिया, अंत तक केवल खादी की साड़ियां पहनीं और इस तरह भीड़ में अलग खड़ी हुई. उन्होंने इसके बाद अपनी पढ़ाई भी पूरी की. भारत के आजाद होने के बाद उषा ने डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की और 'डॉ उषा मेहता' बन गईं.
बाद में जाकर, डॉ मेहता को पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण से भी नवाजा गया. इतनी ही नहीं बल्कि 1997 में स्वतंत्रता की स्वर्ण जयंती के दौरान कई कार्यक्रम उन्हें समर्पित किए गए.