आज विश्व रंगमंच दिवस है यानी वर्ड थिएटर डे. सदियों से, रंगमंच और नाटक सबसे लोकप्रिय कला रूप रहे हैं. हमने बचपन से ही महान नाटककारों के बारे में पढ़ा और सुना है. 27 मार्च को दुनिया भर में विश्व रंगमंच दिवस के रूप में मनाया जाता है. स्क्रीन और फिल्मों के विकास से पहले, लोगों ने मनोरंजन के स्रोत के रूप में नाटक को ही देखा था.
नुक्कड़ नाटक, स्टेज शो, फार्म थिएटर... तीनों ही रंगमंच के इर्द-गिर्द घूमते हैं. भारत में रंगमंच का आगाज 1913 में दादा साहेब फाल्के द्वारा बनाई गई फिल्म राजा हरिश्चन्द्र से हुई. इसके बाद 1931 में पहली इंडियन साउंड फिल्म आई, जिसका निर्देशन अर्देशिर ईरानी ने किया. उस फिल्म का नाम था 'आलम आरा'.
रंगमंच का उपयोग केवल मनोरंजन के लिए ही नहीं बल्कि समाज में सुधार लाने और लोगों तक जागरूकता फैलाने के लिए भी किया जाता है. यह दुनिया भर में मौजूद संस्कृति, परंपरा को दर्शाता है. इस प्रकार विश्व रंगमंच दिवस नाटकों को संरक्षित और बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है.
विश्व रंगमंच दिवस का इतिहास और महत्व
अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संस्थान 1962 से दुनिया भर के थिएटर समुदायों में इस दिन को मना रहा है. विश्व रंगमंच दिवस पर पहला संदेश फ्रांसीसी नाटककार जीन कोक्ट्यू ने लिखा था. पहला आईटीआई सम्मेलन फिनलैंड, हेलसिंकी में और दूसरा वियना में आयोजित किया गया था.
थिएटर दिवस का महत्व इसलिए है क्योंकि लोगों को इसके माध्यम, प्रयासों और प्रत्येक कलाकार के अभिनय में योगदान के बारे में जागरूक किया जाता है. यह दिन कला रूपों के महत्व पर प्रकाश डालता है और लोगों को कला रूपों के महत्व के बारे में जागरूक करता है.
थिएटर से फिल्म इंडस्ट्री को मिले कई सुपरस्टार
शाहरुख खान (Shah Rukh Khan) इस समय बॉलिवुड के सबसे बड़े सुपरस्टार्स में से एक माने जाते हैं. एक समय ऐसा भी था जब उन्हें कोई नहीं जानता था. शाहरुख खान उन स्टार्स में से हैं जिन्होंने थिएटर से अपना फिल्मी सफर शुरू किया. उन्होंने थिएटर की मदद से ही सालों तक मेहनत कर खुद पर काम किया. यहां तक की उन्होंने थिएटर में अपनी फिल्मों की टिकट तक बेची है और आज दुनियाभर में शाहरुख के फैंस हैं.
शबाना आजमी (Shabana Azmi) अभिनेत्री शबाना ने महिलाओं पर केंद्रित कई फिल्मों में काम किया है. कॉलेज के दिनों से ही शबाना थिएटर में काफी एक्टिव थीं, इस दौरान उनके साथ नजर आते थे फारुख शेख. इनके कॉलेज में केवल अंग्रेजी थिएटर चलता था, तब दोनों ही मिलकर अपनी जैब से थिएटर चलाते थे. दोनों ने मिलकर हिंदी थिएटर चलाया, दोनों ने ही हिंदी थिएटर को बढ़ावा देने के लिए खूब मेहनत की थी. थिएटर के दौरान ही शबाना को फिल्मों में काम मिला था, 1973 में ही उन्होंने श्याम बेनेगल की फिल्म 'अंकुर' से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की थी.
नसीरुद्दीन शाह (Naseeruddin Shah) बॉलीवुड के दिग्गज कलाकारों में से एक हैं. उन्होंने अपने बेहतरीन अभिनय से बड़े पर्दे पर अमिट छाप छोड़ी है. नसीरुद्दीन ने साल 1971 में अभिनेता बनने का सपना लिए दिल्ली नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा स्कूल में दाखिला लिया था. इसके बाद उन्होंने लंबा समय थिएटर को दिया. उनकी एक्टिंग हमेशा से ही लोगों का दिल जीत लेती थी, यही कारण है कि 1975 में मशहूर निर्माता श्याम बेनेगल ने उन्हें अपनी फिल्म 'निशांत' में काम दिया और इसके बाद उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री को एक से एक बड़ी फिल्में दीं. उन्होंने अपने करियर में हर तरह की फिल्मों में काम किया है, जिसमें कई दिलचस्प और अलग-अलग किरदार किए.
पंकज त्रिपाठी (Pankaj Tripathi) आज हिंदी फिल्म जगत के ऐसे एक्टर, जिनका फिल्मों में होना ही उसे हिट बना देता है. पंकज का सफर आसान नहीं था. पंकज को काफी मुश्किलों के बाद एनएसडी का हिस्सा बनने का अवसर मिला था, इस दौरान उन्होंने असंख्य नाटक किए. आज भी उनका मानना है कि रंगमंच आपकी एक्टिंग को और मजबूत करता है. यह आपके अंदर के इमोशन को बाहर लाने में मदद करता है.
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