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कराची के इस स्कूल में बच्चों के साथ मिलता है मां को एडमिशन, मेंटल हेल्थ पर होता है फोकस

इस स्कूल की संस्थापक सबीना खत्री हैं. इन्होंने अपने बचपन के अनुभवों से प्रेरणा लेकर इस स्कूल को शुरू किया. आठ साल की उम्र में अपनी मां से अलग होने का दर्द झेलने वाली सबीना ने साल 2006 में ल्यारी में इस स्कूल की नींव रखी.

प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर
हाइलाइट्स
  • कैसे इस स्कूल ने बदली तहमीना की जिंदगी

  • जानें क्यों है ये इतना खास

पाकिस्तान के कराची का एक स्कूल चर्चा का केंद्र बना हुआ है. ये स्कूल अपनी अनोखी शिक्षा प्रणाली के लिए फेमस हो रहा है. इस स्कूल का नाम 'मदर चाइल्ड ट्रॉमा इन्फॉर्म्ड स्कूल' है. यहां दाखिले की पहली शर्त यह है कि बच्चे के साथ उसकी मां को भी एडमिशन लेना पड़ता है. इस स्कूल में उन बच्चों और मांओं को ही दाखिला दिया जाता है जो किसी दर्दनाक हादसे या सदमे से गुजरे हों. यह सुनने में भले ही अजीब लग रहा हो लेकिन ये स्कूल और इसकी कहानी बहुत दिलचस्प है.

स्कूल की अनूठी सोच 
इस स्कूल की संस्थापक सबीना खत्री हैं. इन्होंने अपने बचपन के अनुभवों से प्रेरणा लेकर इस स्कूल को शुरू किया. आठ साल की उम्र में अपनी मां से अलग होने का दर्द झेलने वाली सबीना ने साल 2006 में ल्यारी में इस स्कूल की नींव रखी. सबीना के मुताबिक ल्यारी के बच्चों ने असल में गैंगवार और हिंसा को अपनी आंखों से देखा है. यह सब उनके मेंटल हेल्थ पर असर डालता है. इसलिए उन्होंने ठाना कि जैसे उन्होंने अपने बचपन के सदमे को हराया, वैसे ही ल्यारी के बच्चों और उनकी मांओं को भी वो इस सदमे से निकालने में मदद करेंगी.

बच्चों और मांओं के लिए अलग-अलग पाठ्यक्रम
इस स्कूल में बच्चों और उनकी मांओं दोनों के लिए अलग पाठ्यक्रम तैयार किया गया है. बच्चे हफ्ते में पांच दिन क्लास करते हैं, जबकि मांओं को तीन दिन आना पड़ता है. बच्चों की पढ़ाई के साथ-साथ मांओं को मेंटल हेल्थ और जीवन के स्किल सिखाए जाते हैं. यह स्कूल आम स्कूलों से अलग है. यहां क्लासरूम में ब्लैकबोर्ड की जगह बच्चों और मांओं के लिए बातचीत, काउंसलिंग और खेल-कूद के जरिए सीखने का माहौल बनाया गया है.

कैसे इस स्कूल ने बदली तहमीना की जिंदगी
तहमीना जो सिर्फ 16 साल की उम्र में शादी के बंधन में बंध गई थीं, इस स्कूल ने उनकी जिंदगी बदल दी. शादी के एक साल बाद वह मां बन गईं, लेकिन तीन साल के अंदर उनकी शादी टूट गई. तलाक के बाद तहमीना और उनका बेटा दोनों गहरे सदमे में थे. एक दिन तहमीना को इस स्कूल के बारे में पता चला. उन्होंने अपने बेटे का एडमिशन कराने का सोचा, लेकिन यहां पहुंचने पर उन्हें बताया गया कि बेटे के साथ उन्हें भी दाखिला लेना होगा. तहमीना ने सोचा कि शायद यहां सिलाई-कढ़ाई सिखाई जाएगी, लेकिन उन्हें जल्द ही समझ आया कि यह स्कूल उनकी और उनके बेटे की ज़िंदगी बदलने वाला है.

तहमीना और उनके बेटे को इस स्कूल में न केवल पढ़ाई का मौका मिला, बल्कि कई थेरेपी सेशंस के जरिए उनके मेंटल हेल्थ पर भी काम किया गया. तहमीना ने बताया कि उनको और उनके बेटे को मुझे और मेरे सदमे से बाहर आने में चार साल लग गए. इस दौरान उन्होंने न केवल पढ़ाई की बल्कि अपनी ज़िंदगी को एक नई दिशा भी दी. आज तहमीना ने इसी स्कूल से मैट्रिक, इंटरमीडिएट और ग्रेजुएशन पूरा किया है. अब वह इसी स्कूल में काम करती हैं, जबकि उनका बेटा यहीं पढ़ाई कर रहा है.

भविष्य की योजना
सबीना खत्री का सपना है कि इस मॉडल को पूरे पाकिस्तान में फैलाया जाए. कराची में इस स्कूल की दूसरी शाखा भी खोल दी गई है. 'मदर चाइल्ड ट्रॉमा इन्फॉर्म्ड स्कूल' सिर्फ एक स्कूल नहीं, बल्कि ज़िंदगी को फिर से जीने की उम्मीद बन गई है. यह उन मांओं और बच्चों के लिए एक नई शुरुआत है जो अपने दर्दनाक पास्ट से बाहर आकर एक बेहतर भविष्य की ओर कदम बढ़ाना चाहते हैं.