टोक्यो में आयोजित ओलंपिक खेलों में भारत ने अपना लोहा मनवा लिया और एक बार फिर भारत का नाम टोक्यो में गूंजने लगा है. इसकी वजह कोई खेल या खिलाड़ी नहीं, बल्कि एक फिल्म है. 34वें अंतर्राष्ट्रीय टोक्यो फिल्म फेस्टिवल के 'एशियन फ्यूचर' खंड में फिल्म 'झीनी बीनी चदरिया' (THE BRITTLE THREAD) नॉमिनेट हुई है. यह पहला मौका है जब अंतर्राष्ट्रीय टोक्यो फिल्म फेस्टिवल में बनारस पर आधारित कोई फिल्म नॉमिनेट हुई हो. खास बात यह है कि बनारस की अनकही कहानी पर आधारित इस फिल्म की सारी शूटिंग बनारस में हुई है और इसके ज्यादातर कलाकार काशी के ही युवा हैं. फिल्म के नॉमिनेशन के बाद अब इसका वर्ल्ड प्रीमियर भी होने वाला है और कई कैटेगरी में अवार्ड जीतने की भी उम्मीदें बढ़ गई हैं.
आमतौर पर बनारस का नाम जुबान पर आते ही गंगा घाट, गलियां, सीढ़ियां और खानपान की तस्वीरें जहन में आने लगती हैं और शायद यही वजह भी है कि अगर बनारस पर कोई फिल्म भी बनती है तो उसके केंद्र में यही चीजें दिखाई भी पड़ती है. लेकिन रितेश शर्मा के निर्देशन में बनी फिचर फिल्म फिल्म 'झीनी बीनी चदरिया' (THE BRITTLE THREAD) के साथ ऐसा न होने का दावा किया जा रहा है और यही वजह भी है कि इस फिल्म ने बनारस से लेकर टोक्यो तक का सफर तय कर लिया है, क्योंकि 34वें अंतर्राष्ट्रीय टोक्यो फिल्म फेस्टिवल के 'एशियन फ्यूचर' खंड में फिल्म 'झीनी बीनी चदरिया' (THE BRITTLE THREAD) नॉमिनेट हुई है. इस फिल्म के बारे में और जानकारी देते हुए फिल्म के डायरेक्टर रितेश शर्मा ने बताया कि उनकी फिल्म झीनी बीनी चदरिया 34वें अंतर्राष्ट्रीय टोक्यो फिल्म फेस्टिवल के लिए चयनित हुई है. उनकी टीम और वे खुद टोक्यो फिल्म फेस्टिवल के बहुत आभारी हैं. 2015 में इस फिल्म की स्क्रिप्ट लिखी गई थी और 2018 में यह फिल्म पूरी हुई, लेकिन इसके पीछे एक लंबी यात्रा रही है.
(यू-ट्यूब पर मौजूद फिल्म का ट्रेलर)
रितेश ने आगे बताया कि बनारस का यह पहलू दिखाना बहुत जरूरी था. बनारस का जिक्र आते ही अक्सर लोग सिर्फ गंगा घाट और मंदिरों तक ही हम सीमित होकर रह जाते हैं. इसलिए जरूरी लगा कि बनारस के जुलाहों यानी बुनकरों और नाचने वाली औरतों के बारे में भी बताया जाए. यह दो लव स्टोरी है. एक में एक बुनकर को ज्यूरिस लड़की से प्यार हो जाता है और दूसरी लव स्टोरी में नाचने वाली लड़की रानी को बनारस की गलियों में घूमने वाले एक लड़के से प्यार हो जाता है. दोनों कहानियां चलती रहती है, लेकिन क्लाइमेक्स में एक कहानी दूसरी कहानी पर काफी असर डालती है. यह फिल्म इसलिए जरूरी है, क्योंकि हमारे आसपास का माहौल और मीडिया पहले जैसा नहीं रह गया है. बहुत कुछ बदल चुका है. बनारस की गंगा जमुनी तहजीब सिर्फ यहीं दिखती है. 2018 में शूट होने के बाद 2019 में फिल्म बाजार का हिस्सा बनी और 2021 में यह फिल्म टोक्यो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में है. बनारस अब जापान जा रहा है. इस फिल्म का ट्रेलर टोक्यो अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में भी देखा जा सकता है. इसका पहला पब्लिक स्क्रीन एक नवंबर और दूसरा 7 नवंबर को है.
फिल्म में काम करने वाले ज्यादातर लोग भी बनारस के ही
'झीनी बीनी चदरिया' (THE BRITTLE THREAD) फिल्म की खास बात यह है कि यह फिल्म न केवल पूरी तरह से बनारस की कहानी और बनारस में बनी है, बल्कि इसमें काम करने वाले ज्यादातर लोग भी बनारस के ही हैं. उन्ही में से एक फिल्म में मुख्य किरदार अदा करने वाले एक्टर उत्कर्ष श्रीवास्तव भी हैं. उत्कर्ष ने बताया कि टोक्यो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में एशियन फिल्म में कुल 10 फिल्म सेलेक्ट हुई है. जिसमें उनकी फिल्म भी है. इसके अलावा IFFI में फिल्म बाजार के जरिये भी यह फिल्म गोवा जा चुकी है और पहली ही बार में यह फिल्म टोक्यो फिल्म फेस्टिवल में शामिल हो गई है.
फिल्म में काम करने वाले ज्यादातर लोग बनारस के हैं, लेकिन सभी का चुनाव मुंबई से हुआ है. फिल्म में एक घाट से जुड़ी तो दूसरी बुनकर की कहानी है. जो गंगा जमुनी तहजीब को दिखाने की कोशिश है. फिल्म के मुख्य किरदारों में रानी जो एक डांसर है, शहदाब एक बुनकर और वो खुद बाबा के नाम से फिल्म में है. बाबा को रानी से प्यार हो जाता है. बाबा की पूरी दिनचर्या ही घाट पर है. लेकिन बाबा को जब रानी से प्यार हो जाता है तो वे खुद को बदलने की कोशिश करता है. वे बताते है कि उनकी फिल्म टोक्यो में एक बड़ा मुकाम हासिल करेगी. यह बनारस से पहला मौका है जब टोक्यो में यह फिल्म गई है और पहली ही बार में चुनाव हो गया और वर्ल्ड प्रीमियर है. यह फिल्म बनारस और बनारस के कलाकारों के लिए बड़ी उपलब्धि है.
फिल्म में बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर अपना योगदान देने वाले बनारस के गौरव बताते हैं कि वाराणसी में टैलेंट है और थियटेर भी है. वाराणसी से कई बड़े नाम निकले हैं और नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (National School of Drama) तक गए हैं. पूरी कहानी गंगा जमुनी तहजीब पर आधारित है. फिल्म ज्यादातर साइलेंस में है, डायलॉग कम हैं और लॉन्ग शॉट शूट हुआ है. फिल्म डाक्यूमेंट्री स्टाइल में शूट हुई है. फिल्म को दर्शाने का तरीका क्लासिक है. गौरव बताते है कि फिल्म का भविष्य तो नहीं जानते, लेकिन मेहनत काफी किए हैं. वाराणसी के कलाकारों के लिए यह बड़ा मुकाम है. बनारस से टोक्यो का सफर तीन साल का और खूबसूरत रहा है. पैसों के अभाव का भी सामना करना पड़ा है.