आपको उस वक्त कैसा महसूस होगा, जब आप अपने जीवन का सबसे अहम पल भूल जाएं. आप लोगों को ये बात हजम नहीं हो रही होगी लेकिन अल्ज़ाइमर के रोगियों के लिए ये उनके जीवन का सच है. अल्ज़ाइमर एक ऐसी लाइलाज बीमारी है जिसमें इंसान धीरे-धीरे सब कुछ भूलने लगता है. लेकिन अब, अल्जाइमर के इलाज के द्वार खुल सकते हैं. पिछले हफ्ते, अमेरिका के ब्रिघम और महिला अस्पताल ने घोषणा की कि वह अल्जाइमर के लिए नेसल वैक्सीन का पहला मानव परीक्षण करने वाला है. इसे बीमारी के डेवलपमेंट को रोकने या धीमा करने के लिए डिज़ाइन किया गया है.
तंत्रिका कोशिकाओं के बीच प्रोटीन के जमा होने से जाती है याददाश्त
चूंकि अब तक अल्ज़ाइमर का कोई इलाज नहीं ढूंढा गया है, रोगियों की उम्मीद की किरण केवल ऐसी दवाएं थीं जो अल्जाइमर के लक्षणों को सीमित समय के लिए कम कर देती हैं. ‘स्टिकी प्लेक्स’अल्जाइमर रोग की पहचान हैं. ये प्लेक्स तब बनते हैं जब बीटा-एमिलॉइड प्रोटीन तंत्रिका कोशिकाओं के बीच जमा होने लगते हैं और प्रोटीन का यह जमाव सोचने या याद करने की क्षमता में बाधा डालते हैं. यह बीमारी अधिकतर बुजुर्गों में देखी जाती है.
यह स्प्रे इम्यून सेल्स को करेगा एक्टिवेट
यह परीक्षण बहुत ही छोटे समूह पर किया जाएगा. अल्जाइमर के लक्षणों वाले 60 से 85 वर्ष के बीच के 16 लोगों को एक सप्ताह के अंतराल में टीके की दो डोजेज मिलेंगी. लेकिन यह दशकों के शोध पर आधारित है जिसके अनुसार इम्यून सिस्टम को एक्टिवेट करने से मस्तिष्क में बीटा-एमिलॉयड प्लेक को साफ़ करने में मदद मिल सकती है. इस ट्रायल के दौरान वैक्सीन प्रोटोलिन नामक एक दवा को सीधे नाक के मार्ग में छिड़का जाएगा, जिसका लक्ष्य प्लेक को हटाने के लिए इम्यून सेल्स को एक्टिवेट करना है.
भारत में 53 लाख से अधिक लोग हैं पीड़ित
भारत में यह अनुमान लगाया गया है कि 53 लाख से अधिक लोग डिमेंशिया (एक सिंड्रोम जिसमें स्मृति, सोच, संचार और सामाजिक क्षमताएं बिगड़ती हैं) के साथ रहते हैं, जिनमें से अल्जाइमर सबसे आम कारण है. अल्जाइमर एंड रिलेटेड डिसऑर्डर सोसाइटी ऑफ इंडिया (ARDSI) द्वारा प्रकाशित 'डिमेंशिया इन इंडिया रिपोर्ट 2020' के अनुसार, 2030 में यह आंकड़ा बढ़कर 76 लाख हो जाएगा. जबकि दुनिया भर में कम से कम 4.4 करोड़ लोग इस समस्या के साथ जी रहे हैं, जिससे यह बीमारी एक वैश्विक स्वास्थ्य संकट बन गई है.