ओडिशा (Odisha) की राजधानी भुवनेश्वर की मूर्तिकार सुमित्रा बेहरा की संघर्षपूर्ण कहानी समाज में एक नई सोच को जन्म देती है. सुमित्रा केवल सात बहने हैं और वह अपनी पूर्वजों की परंपरा को बचाने के लिए पेशा से एक प्रसिद्ध मूर्तिकार बन चुकी है. दुर्गा पूजा के अवसर पर कलाकार सुमित्रा ने शहर के विभिन्न पंडालों में मां दुर्गा की खूबसूरत प्रतिमा बनाई है. इस दौरान भुवनेश्वर नगर निगम द्वारा जारी मूर्ति निर्माण के नियम व निर्दशों का खासा ध्यान रखा गया है.
24 वर्षीय सुमित्रा के पिता का नाम अभिमन्यु बेहरा है. सुमित्रा कटक जिले के शिल्पी कुम्हार साही के निवासी है और वह जीविका यापन के लिए राजधानी में किराये के मकान में रहती है. अभिमन्यु बेहरा अपने बुढ़ापे के कारण कई सालों से मूर्तियां बनाने में असमर्थ हैं, जिसके कारण सुमित्रा घर का बेटा बनकर अपने पिता व पूर्वजों के कार्यों को जीवित रखने के लिए जिम्मेदारियों के साथ मूर्ति बनाती है. साथ ही सुमित्रा के लिए मूर्तिकारी ही आमदनी का एक मात्र स्त्रोत है.
पूर्वजों के काम को बरकरार रखने के लिए छोड़ी पढ़ाई
आजतक संवाददाता से बातचीत में सुमित्रा ने बताया कि मेरे पापा एक मूर्तिकार हैं, साथ ही उनके पूर्वज भी मूर्ति बनाने का काम करते थे. मैं सात बहन हूं और मेरा कोई अपना भाई नहीं है. अपने पापा के साथ पिछले 12-13 सालों से मूर्ति बनाने का कार्य कर रही हूं. हालांकि पापा अब बूढ़े हो गए हैं इसलिए कुछ सालों से केवल मेरे पास बैठते हैं और मैं मूर्ति बनाने का काम करती हूं. मैं पढ़-लिखकर आगे बढ़ना चाहती थी, लेकिन पापा की लाचारी और पूर्वजों के काम को बरकरार रखने के लिए आठवी कक्षा में दाखिला लेने के बाद बीच में ही पढ़ाई रोक दी. मेरा कोई भाई नहीं है, जिसके कारण अपनी शौक और सपनों को छोड़ घर का बेटा बनाकर मूर्ति बनाने का कार्य करती हूं. ताकि मैं अपने पिता और पूर्वजों कि मूर्ति की परंपरा को जीवित रख सकूं.
सात बहनों में पांच बहन की शादी हो चुकी है
सुमित्रा ने विस्तार से कहा कि मैं त्योहारों के दिनों में विभिन्न प्रकार की मूर्तियां बनाती हूं. जिसमें मां दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, भगवान गणेश,विश्वकर्मा समेत तमाम मूर्तियां शामिल है. मेरे पापा के साथ मिलकर मूर्तियां बनाने में खुशी मिलती है. मुझे लगता है कि मिट्टी से बनी मूर्ति में जान डाल रही हूं. हालांकि मूर्ति बनाते समय में पुआ को बढ़ाने में कभी ताकत की जरुरत पड़ती है, जिसके बाद हम पुआव से बनी आकृति पर मिट्टी का लेप लगाते हैं और अंत में खूबसूरत रंगों से मूर्तियों को सजाते हैं.
सुमित्रा ने बताया कि सात बहनों में पांच बहन की शादी हो चुकी है और वह अपने ससुराल में रहती है. मैं पापा के साथ हर समय त्योहारों के दौरान मूर्ति बनाने के लिए बाहर रहती हूं. मेरे पापा के शहर के एक प्रसिद्ध मूर्तिकार हैं जिसकी वजह से उन्हें कई पूजा पंडालों में मूर्ति बनाने के लिए बुलाया जाता है. मैं अब पूरी तरह पेशा से एक मूर्तिकार बन चुकी हूं और लोग मेरी द्वारा बनाये गए मूर्तियों को पसंद करते हैं. सुमित्रा ने कहा कि मूर्तियों का सीजन केवल 6 महीनों का होता है. इस दौरान मैं मूर्ति बना व बिक्री कर परिवार की देखभाल कर रही हूं.
वहीं, कलाकार के पिता अभिमन्यु बेहरा ने आजतक से बातचीत में बताया कि मेरी सात बेटियां हैं पर कोई बेटा नहीं है. मैं भगवान को शुक्रिया करना चाहता हूं कि मेरी बेटी सुमित्रा बेटा बनकर घर परिवार को चलाती है. बचपन से ही सुमित्रा मेरे साथ मूर्ति बनाने का काम करने लगी थी. हालांकि अब मैं बूढ़ा हो गया हूं और अधिक समय तक खड़ा नहीं हो सकता हूं. मेरा मूर्ति बनाने का सारा काम मेरी बेटी करती है.
उन्होंने कहा कि सुमित्रा त्योहारों के मुताबिक मूर्ति बनाने का काम शुरु कर देती है. पूजा के दौरान ग्राहक जिस प्रकार के डिजाईन की बात करते हैं ठीक उसी तरह से खूबसूरत मूर्ति बनाती हैं. हालांकि कोविड के समय में लाखों रुपये का नुकसान हो गया. इस महमारी के समय में केवल छोटा मूर्तियों का ऑडर मिलता है और लाभ ना के बराबर होता है. सुमित्रा मूर्ति निर्माण के अलावा घर की जिम्मेदारियों पूरा काम करती है. मुझे मेरी बेटी पर गर्व है.