दुनिया में लाखों लोग ऐसे है जो बेहद ही गरीबी में जिंदगी जीने को मजबूर हैं. गरीबी केवल एक आर्थिक मुद्दा नहीं है, बल्कि एक ऐसी घटना है जिसे हम राह चलते, अपने घर में झाड़ू पोछा लगाने वाली बाई में, तो कभी रोड पर भीख मांगते बच्चों में देख ही लेते हैं. यूं तो गरीबी के कई चेहरे हैं, चाहे वह अफ्रीका में भूख से मर रहे बच्चे हों या भारत में सड़कों पर भीख मांगते बच्चे, या फिर चाहे एक माँ, जिसे आए दिन सुपरमार्केट के बाहर कंधे पर बच्चा लिए उदास चेहरे के साथ देखा जाता है. संयुक्त राष्ट्र की ओर से इसी गरीबी को हटाने के लिए हर साल अंतर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस (International Day for the Eradication of Poverty) मनाया जाता है.
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि गरीबी एक सामाजिक संघर्ष है और ये ना सिर्फ गरीबी की मार झेल रहे इंसान को परेशान करता है साथ ही पूरे शहर या यूं कहें कि पूरे देश पर गहरा और उल्टा प्रभाव डालता है. हाल के दशकों में बढ़ती जागरूकता के साथ, गरीबी हटाने के लिए बहुत सारे कदम उठाए गए हैं. परेशानी को दूर करने के लिए गरीबी से जूझ रहे लोगों की मदद और गरीबी में सुधार की दिशा में पहले से कहीं ज्यादा कदम उठाए जा रहे हैं. लेकिन ये सवाल अब भी बना हुआ है कि क्या वाकई में गरीबी हट पाई है?
अंतरराष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस के बारे में
संयुक्त राष्ट्र में 22 दिसम्बर 1992 को हरेक साल 17 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस मनाये जाने की घोषणा की गयी. इस दिन अलग-अलग देशों में गरीबी के बारे जागरूकता तो फैलाई ही जाती है, साथ ही गरीबों के विकास के लिए तमाम तरह के योजनाओं की शुरुआत भी की जाती है. पहली बार साल 1987 में फ्रांस में अंतरराष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस मनाया गया था. इस दिन लगभग एक लाख लोगों ने मानव अधिकारों के लिए प्रदर्शन किया था. यह आंदोलन एटीडी फोर्थ वर्ल्ड के संस्थापक जोसफ व्रेंसिकी द्वारा शुरू किया गया था. अंतरराष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस की थीम हर साल अलग होती है . इस साल यानी अंतरराष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस 2021 (International Day for the Eradication of Poverty) की थीम Building forward together रखी गई है.
आखिर कितने हैं गरीब
हमारे देश भारत की बात करें तो आजादी के वक्त हमारे देश की आबादी करीब 34 करोड़ थी और इसमें से 25 करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी रेखा से नीचे थे. आजादी के बाद तमाम आर्थिक विकास और गरीबी निवारण योजनाओं के बावजूद गरीबों की संख्या कम नहीं हुई.. आज देश में गरीबी रेखा के सबसे ताजा आंकड़े 2011-12 के हैं. इन आंकड़ों के मुताबिक, देश की 26.9 करोड़ आबादी गरीबी रेखा से नीचे है. यह संख्या कम न होना चिंता की बात है और इस पर विचार करने का भी सवाल है कि कमी कहां रह गई? आज सारा ध्यान इस बात पर लगा दिया गया है कि गरीब किसे मानें और किसे नहीं?
आखिर क्या है गरीबी की सबसे बड़ी वजह
भारत में संसाधनों की कोई कमी नहीं है साथ ही यहां अवसरों की भी कोई कमी नहीं है. अगर प्रतिभा और लगन के साथ आपकी किस्मत का साथ मिले तो आप आगे बढ़ सकते हैं. माना जाता है भारत में एक गरीब मजदूर अपने बच्चे को भी मजदूरी ही कराता है क्यूंकि उसकी मानसिकता उसे इससे ज्यादा सोचने की इजाजत ही नहीं देती. तो क्या मानसिकता ही भारत में गरीबी का सबसे बड़ी वजह है?
तो कैसे मनाया जाए अंतरराष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस
मानसिकता वाली मान भी ली जाए, फिर भी एक बार के लिए हमारा ध्यान उन लाखों बेरोजगार युवाओं की तरफ चली ही जाता है, जो पढ़े लिखे होने के बावजूद दो वक्त की रोजी-रोटी कमाने के लिए कड़ा संघर्ष कर रहे हैं? भारतीय शिक्षण संस्थानों में आपको डिग्री तो थमा दी जाती है लेकिन उस डिग्री के अलावा छात्रों को कोई कौशल नहीं सिखाया जाता जिसकी मदद से बच्चे आगे जाकर भविष्य में अपने पैरों पर खड़ा हो सकें. इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) की शुरुआत की है, ये योजना केन्द्र सरकार की फ्लैगशिप योजनाओं में से एक है.
पीएमकेवीवाई कौशल विकास एवं उद्यमता मंत्रालय की तरफ से चलाई जाती है. पीएमकेवीवाई का उद्देश्य देश के युवाओं को उद्योगों से जुड़ी ट्रेनिंग देना है जिससे उन्हें रोजगार पाने में मदद मिल सके. पीएमकेवीवाई में युवाओं को ट्रेनिंग देने की फीस का सरकार खुद भुगतान करती है. प्रधानमंत्री गतिशक्ति योजना भी इनमें से एक है, ये 100 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की योजना होगी जो लाखों युवाओं के लिए रोजगार के अवसर लाएगी. ये देश के लिए मास्टरप्लान होगा जो नए इंफ्रास्ट्रक्चर की नींव रखेगा.
गरीबी उन्मूलन के लिए दर्जनों से ज्यादा स्कीम
गरीबी उन्मूलन के नाम से संचालित एक दर्जन से ज्यादा योजनाएं आज भी चलाई जा रही हैं. आत्मा योजना के तहत किसानों को कृषि को व्यवसाय के रूप में अपनाने के लिए निःशुल्क प्रशिक्षण दिए जाने और गरीबों के बच्चों को मानदेय आदि के बाद भी गरीबों की तादाद में बढ़ोतरी होना परेशानी का सबब है.