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Automatic Coach Washing Plant: हर साल बचेगा 1.28 करोड़ लीटर पानी, जानिए ट्रेनों की कैसे धुलाई करेगा धनबाद का नया कोच वॉशिंग प्लांट

Automatic Coach Washing Plant: इस प्लांट के लगने से एक ट्रेन 300 लीटर पानी से धुल जाती है. इससे पहले हर ट्रेन की धुलाई में करीब 1500 लीटर पानी लगता था. नया प्लांट लगने से समय और धन दोनों की बचत होने की उम्मीद है.

यह वॉशिंग प्लांट 2.25 करोड़ की लागत में तैयार हुआ है. यह वॉशिंग प्लांट 2.25 करोड़ की लागत में तैयार हुआ है.
हाइलाइट्स
  • 2.25 करोड़ की लागत से लगा नया प्लांट

  • एक महीने में इंस्टॉल हुआ प्लांट

  • सालाना 1.28 करोड़ लीटर पानी बचने की उम्मीद

धनबाद में रेलगाड़ियों की धुलाई अब स्वचालित तरीके से होगी. 2.25 करोड़ के खर्च से कोचिंग डीपो में ऑटोमैटिक कोच वॉशिंग प्लांट बनकर तैयार हो गया है. इससे न सिर्फ काफी कम समय में ट्रेनों की धुलाई हो रही है, बल्कि पानी की भी बचत हो रही है. आइए जानते हैं क्या है इस प्लांट की खासियत और कैसे करता है यह काम.

सालाना बचेगा 1.28 करोड़ लीटर पानी
नए प्लांट से पूरी ट्रेन 300 लीटर पानी से धुल जाती है. इसका भी 80% रिसाइकल कर फिर से इस्तेमाल हो जाता है. इस तरह साल में करीब 1.28 करोड़ लीटर पानी की बचत होगी. यह धनबाद रेल मंडल का पहला ऑटोमैटिक कोच वॉशिंग प्लांट है. इसे इंस्टॉल करने में करीब एक महीना लगा है. 

इस प्लांट से हर साल करीब 1.28 करोड़ लीटर पानी की बचत होगी.
इस प्लांट से हर साल करीब 1.28 करोड़ लीटर पानी की बचत होगी.

कैसे काम करेगा प्लांट?
ऑटोमैटिक कोच वॉशिंग प्लांट में ट्रैक के दोनों तरफ पोल की तरह कई स्प्रिंकलर लगाए गए हैं. उनसे हाई प्रेशर व लो प्रेशर में पानी के साथ आरओ वॉटर, वैगन क्लीनर केमिकल आदि फव्वारे के रूप में निकलकर कोच पर पड़ते हैं. ट्रैक के दोनों तरफ 4-4 यानी कुल आठ बड़े ब्रश हैं. यह कोच को रगड़कर साफ करते हैं. धुलाई-सफाई के बाद कोच को तेजी से सुखाने का इंतजाम है. 

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मशीन ऑपरेट करने वाले रविशंकर बताते हैं, "यह वॉश प्लांट ऑटोमैटिक भी चलता है और मैनुअल भी चलता है. सेमी ऑटोमैटिक रूप से भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है. यह कोच की धुलाई ब्रश से होती है. जो नोजल लगाया गया है इसमें पानी और अलग-अलग केमिकल डाला जाता है. इस तरह बोगी को धोने में पानी की काफी बचत होती है." 

समय की भी होगी बचत
कोचिंग डीपो के इंचार्ज अभय मेहता कहते हैं, "पहले रोज 13-14 रेलगाड़ियों की धुलाई यहां मैनुअल तरीके से की जाती थी. एक ट्रेन की धुलाई में 4-5 घंटे लग जाते थे. ऑटोमैटिक प्लांट से यह काम सिर्फ 15 मिनटों में हो जाता है. साथ ही, एक ट्रेन को साफ करने में पहले करीब 1500 लीटर पानी लगता था. लेकिन अब 80 प्रतिशत पानी बच रहा है." 
 

प्लांट से पूरी रेलगाड़ी धुलने में 50 सेकंड का समय लगता है.
प्लांट से पूरी रेलगाड़ी धुलने में 50 सेकंड का समय लगता है.

रविशंकर बताते हैं कि अब एक बोगी को धोने में महज़ 50 सेकंड का समय लगता है. जो पानी ट्रेन की धुलाई के बाद बर्बाद हो जाता है उसे फिर से रिसाइकल कर इस्तेमाल किया जा सकता है. मशीन ऑपरेटर सुदर्शन कुमार का कहना है कि कम पानी से ट्रेन बेहतर तरीके से साफ हो जाती है. वह खुश हैं कि अब पानी भी बर्बाद नहीं होता और उसे रिसाइकल भी किया जा रहा है.
 

(धनबाद से सिथुन मोदक की रिपोर्ट)