"ब्रेस्ट कैंसर के मामले भारत में पश्चिमी देशों के मुकाबले कम है, लेकिन यहां होने वाली मौतों के मामले तुलनात्मक रूप से ज्यादा है". आज 13 अक्टूबर यानी नो ब्रा डे के दिन पहली लाइन पढ़ कर अच्छा लग सकता है, लेकिन दूसरी लाइन परेशान करने वाली है. अब एक ऐसी स्त्री की तस्वीर की कल्पना कीजिए जिसके ब्रेस्ट हैं ही नहीं और उसने ब्रा भी नहीं पहनी. अब आपको ये बात लिखने का मतलब साफ समझ में आ गया होगा. मतलब साफ है कि अगर ब्रेस्ट होंगे तभी ब्रा का मतलब है, लेकिन अगर ब्रेस्ट ही नहीं होगें तो ब्रा के कोई मायने नहीं. नो ब्रा डे सिर्फ एक दिन है ब्रेस्ट कैंसर के बारे में आगाह करने का, जबकी दुनिया भर की उन महिलाओं के लिए तो हर दिन नो ब्रा डे ही है क्योंकि इनके ब्रेस्ट हैं ही नहीं. ये वो महिलाएं हैं जो ब्रेस्ट कैंसर की वजह से अपना ब्रेस्ट खो चुकी हैं. नो ब्रा डे का दिन असल में इन्ही महिलाओं को समर्पित है. ये महिलाएं खुशनसीब हैं जो सरवाइवर के रूप में बड़ी हिम्मत के साथ जिंदगी जी रही हैं. लेकिन साथ ही आगाह करती हैं कि ऐसी बहुत सी महिलाएं हैं जो बिना ब्रेस्ट के जी नहीं पाई. ब्रेस्ट कैंसर ने उनसे उनकी जिंदगी छीन ली.
नो ब्रा डे का मतलब ब्रा के बिना तस्वीरें पोस्ट करना नहीं
नो ब्रा डे 2011 से हर साल 13 अक्टूबर को मनाया जाता है. 13 तारीख के चुने जाने के पीछे वजह है और वो ये की ये तारीख अक्टूबर महिनें के बीचो-बीच का दिन है और अक्टूबर International Breast Cancer Awareness Month है. ये पूरा महिना ही महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए समर्पित है. इस दिन का मकसद बस इतना सा है कि एक दिन के महिलाएं ब्रा से मुक्त हों जाए और अपने शरीर यानी ब्रेस्ट को जानें. महिलाएं ब्रेस्ट कैंसर के शुरूआती लक्षणों के बारे में जान सकें. और अगर कोई लक्षण महसूस होता है तो इसका इलाज करवाएं, क्योकि ब्रेस्ट कैंसर एक जानलेवा बिमारी है, और शुरूआती दौर में ही इसका इलाज मुमकिन है.
एक उद्देश्य के लिए
इंटरनेश्नल नो ब्रा डे के फेसबुक पेज पर एक पोस्ट है, जिसमें कहा गया है कि 'ब्रेस्ट अद्भुत होते हैं... हम सभी ऐसा सोचते हैं. इसे अभिव्यक्त करने का इससे अच्छा तरीका भला क्या हो सकता है कि एक पूरा दिन ब्रेस्टों को आजाद छोड़ दिया जाए. महिलाएं अद्भुत प्राणी होती हैं और ब्रेस्ट उनके शरीर का एक अहम हिस्सा. कोरोना महामारी के दौरान लॉकडाउन लगने के दौरान महिलाओं ने ब्रा पहनने से दूर रहना पंसद किया. कामकाजी महिलाओं की राय ये है कि 'ब्रा पहनना या नहीं पहनना पूरी तरह से पर्सनल चॉइस होनी चाहिए.'
बोस्टन के हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के मुताबिक, 2012 से 2030 तक भारत को ब्रेस्ट कैंसर पर 20 अरब डॉलर खर्च करने की जरूरत है. breastcancerindia.net के हालिया अध्ययन में यह बात सामने आई है कि महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर होने की आयु वर्ग में भी बदलाव हुए हैं. 25 साल पहले तक ब्रेस्ट कैंसर के हर 100 पीड़ितों में से दो महिलाएं 20 से 30 आयु वर्ग से, सात 30 से 40 आयु वर्ग से जबकि 69 महिलाएं 50 वर्ष से ऊपर की होती थीं. वर्तमान में 20 से 30 आयु वर्ग से चार महिलाएं, 30 से 40 आयु वर्ग से 16 जबकि 40 से 50 आयु वर्ग की 28 महिलाएं पीड़ित हैं. तो इस तरह से लगभग 48 फीसदी पीड़ित महिलाएं 50 वर्ष से कम की हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक ब्रेस्ट कैंसर का मुख्य कारण है - बच्चे नहीं पैदा करना, काफी उम्र में बच्चे पैदा करना, ब्रेस्टपान नहीं कराना, वजन में बढ़ोतरी और अक्सर शराब का इस्तेमाल करना - सीधा कहें तो ऐसी लाइफ स्टाइल, जो पश्चिमी देशों में ज्यादा आम हैं. भारत में, इन संभावित कारणों के बहुत कम होने और कुछ मामलों में तो जीरो होने के बावजूद हर साल ब्रेस्ट कैंसर के 1.3 लाख नए मामले सामने आते हैं. एक दशक पहले तक यह आंकड़ा 54,000 था.
चिंता का विषय
क्या ब्रेस्ट कैंसर होने का मतलब खास तौर से यही है कि कोई औरत अब अपने शरीर के इस महत्वपूर्ण अंग को खो देगी - ब्रेस्ट, शरीर का एक ऐसा भाग, जिसे अक्सर नारीत्व के सिंबल की शक्ल में देखा जाता है. कई कलाकार और मूर्ति बनाने वाले इसे खास तौर से प्रदर्शित करते हैं. इसे महिला शरीर की आतंरिक खूबसूरती के तौर पर भी देखा जाता है और माना जाता है कि पुरुषों के लिए महिला शरीर का यह भाग आकर्षण का सबसे बड़ा कारण होता है.मातृत्व को दर्शाने की सबसे लोकप्रिय छवि भी यही है , कल्पना कीजिए की आप एक बच्चे को अपने मां के ब्रेस्ट से दूध पीता हुआ देख रहे हैं. . यह ऐसा भाग है, जिसके बिना हमारा स्त्री होना अधूरा है. नाकाफी है. नीरस है.
लेकिन ऐसा क्यों है कि अपने ही शरीर के बारे में बात करना या मैमोग्राम करवाना भी हमें शर्मनाक लगता है. खुद को भी छूने से हम कतराते हैं या किसी डॉक्टर (जिसके बारे में यही समझा जाता है कि वह एक अनजान पुरुष है) से उसकी जांच करवाने से भी हम बचते हैं. इसका कारण वे पुरानी मान्यताएं और टैबू हैं जो कहीं न कहीं हमारे ही परिवार ने हम पर थोपे हैं.
ब्रेस्ट कैंसर के खिलाफ ये लड़ाई सिर्फ एक दिन की नहीं है
क्या ऐसा नहीं हो सकता है कि ब्रेस्ट कैंसर के खिलाफ जंग को हम केवल फैशनेबल कैंपेन तक ही न रहने दें? इसकी बात केवल पांच सितारा होटलों में फिल्मी सितारों और पेज-3 के लोगों तक ही सीमित न हो और हम इस बीमारी पर साल में केवल एक दिन ही बात न करें. केवल सोशल मीडिया पर बिना ब्रा की फोटो शेयर करके इस दिन को ना मनाया जाए. क्या जरूरी नहीं कि हम नजरिया बदलें और अपने शरीर के साथ भी बात करें.
ब्रा पर किए गए अध्ययन
महिलाओं में हेल्थ प्रॉब्लम की एक वजह गलत माप की ब्रा पहनना है, लगभग 80 प्रतिशत महिलाएं गलत माप की ब्रा पहनती हैं, बहुत ज्यादा टाइट ब्रा पहनने से ब्लड सर्कुलेशन ठीक से नहीं हो पाता. ब्लड सर्कुलेशन हमारी त्वचा को स्वस्थ रखने में मदद करता है. हमेशा ब्रा पहने रहने से ब्रेस्ट पर ज्यादा दबाव पड़ता है. और लंबे समय तक टाइट ब्रा पहनने से ब्रेस्ट पर बहुत दबाव पड़ता है, जो ब्रेस्ट के लिए अच्छा नहीं होता. रोजाना 12 घंटे से ज्यादा ब्रा नहीं पहननी चाहिए. इसी तरह बहुत लूज ब्रा पहनने से स्तनों की सुडौलता खराब हो जाती हैं. जिन महिलाओं के स्तन भारी होते हैं, उन्हें ब्रा पहननी चाहिए.
ब्रा सेलेक्शन के सुझाव
ब्रा की फिटिंग ऐसी होनी चाहिए कि शोल्डर स्ट्रैप और बेल्ट में से एक-दो उंगली आसानी से अंदर जा सकें. ब्रा हमेशा ब्रांडेड कंपनी की और अपनी सही फिटिंग की ही खरीदना चाहिए. अच्छे ब्रांड के ब्रा का इस्तेमाल बेहतर होता है, इनमें अंडरवायर्ड कप्स ब्रेस्ट को हर तरफ से सपोर्ट देते हैं, जिसके कारण अपर बॉडी शेप में नजर आती है.
और अंत में ये बात हम सभी को याद रखनी चाहिए कि ब्रेस्ट को सेक्सुअल रूप में देखने से ज्यादा जरूरी किसी का जीवित रहना है. इसलिए हम सभी महिलाओं को इंटरनेशनल नो ब्रा डे मनाना चाहिए .