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24 की उम्र से ऑर्गेन‍िक खेती के ब‍िजनेस में लगे, आज करोड़ों में कमाई

जस्थान के जालौर जिले की सांचोर तहसील के युवा और प्रगतिशील किसान योगेश जोशी अपने समूह के साथियों के साथ जीरे, वरियाली, धनिया, मेथी, कलौंजी जैसे मसालों की खेती करते हैं. तो मल्टीग्रेन में किनोवा, चिया सीड और बाजरा से भी उन्हें काफी मुनाफा मिल रहा है. पश्चिमी राजस्थान में उगाई जाने ये फसलें जापान में पहुंच रही हैं.

छोटी उम्र में बड़ी कामयाबी छोटी उम्र में बड़ी कामयाबी
हाइलाइट्स
  • साल में 60 करोड़ रुपए से ज्यादा का कारोबार कर रहे योगेश

  • पश्चिमी राजस्थान से अमेर‍िका और जापान पहुंच रही हैं फसलें

राजस्थान के जालौर जिले के सांचौर निवासी योगेश जोशी ने सात किसानों के साथ मिलकर समूह में जैविक खेती की शुरुआत की थी. आज उनके साथ 12000 से ज्यादा किसान जुड़े हैं. करीब 3000 एकड़ में जैविक खेती करवाने वाले योगेश साल में 60 करोड़ रुपए से ज्यादा का कारोबार भी कर रहे हैं. 

राजस्थान के जालौर जिले की सांचोर तहसील के युवा और प्रगतिशील किसान योगेश जोशी अपने समूह के साथियों के साथ जीरे, वरियाली, धनिया, मेथी, कलौंजी जैसे मसालों की खेती करते हैं. तो मल्टीग्रेन में किनोवा, चिया सीड और बाजरा से भी उन्हें काफी मुनाफा मिल रहा है. पश्चिमी राजस्थान में उगाई जाने ये फसलें अमेर‍िका और जापान में पहुंच रही हैं. योगेश आने वाले कुछ ही वर्षों में अपने टर्नओवर को एक अरब तक पहुंचाने की कोशिश में जुटे हैं. हालांकि साल 2009 में जीरे के साथ शुरुआत करने वाले योगेश को पहले साल ही घाटा हुआ था, और लागत तक नहीं निकल पाई थी.

योगेश जोशी ने कहा कि देश के बाकी युवाओं की तरह मेरे घर वाली भी नहीं चाहते थे कि मैं खेती करूं. मैंने स्नातक के बाद ऑर्गेनिक फॉर्मिंग में डिप्लोमा किया था. वो चाहते थे अगर खेती में रुचि है तो खेती से जुड़ी नौकरी कर लूं लेकिन किसानी तो बिल्कुल नहीं. लेकिन मैं ठान चुका था, आखिरकार 2009 में जीरे की जैविक खेती कराई लेकिन घाटा हुआ. 

ऑर्गेनिक खेती को लेकर अपने शुरुआती द‍िनों को याद करते हुए योगेश बताते हैं, 'उस समय जैविक खेती का इतना महत्व नहीं था. मैंने 2 बीघे जीरे की खेती से शुरुआत की थी. लेकिन अनुभव न होने के कारण घाटा हुआ. लेकिन हिम्मत नहीं हारी और दूसरी बार ज्यादा जानकारी के साथ काम किया.' 

योगेश राजस्थान में जिस इलाके से ताल्लुक रखते हैं वो जीरे का गढ़ कहा जाता है. जीरा नगदी फसल है और अच्छा उत्पादन होने पर मुनाफा भी खूब होता है. योगेश बताते हैं, 'शुरुआत में नुकसान अनुभव और सलाह न होने के चलते हुआ था, इसलिए काजरी के जैविक कृषि वैज्ञानिक डॉ. अरुण के शर्मा की मदद ली. उन्होंने मेरे साथ कई और किसानों को गाँव आकर ट्रेनिंग दी, जिसके बाद हम लोगों ने फिर जीरा उगाया और मुनाफा भी हुआ" 

योगेश कहते हैं, "दूसरी बात की खेती से ये समझ बनी थी कि अकेले के बजाय समूह में खेती करना ज्यादा फायदेमंद है, लेकिन शुरुआत में किसानों को जोड़ना आसान नहीं था, तो सिर्फ सात किसानों का साथ मिला. क्योंकि सवाल ये भी था कि बिना यूरिया, डीएपी और पेस्टीसाइड खेती हो भी सकेगी क्या?" 

सात किसानों से शुरू हुआ कारवां 12000 तक पहुंचा
योगेश ने काजरी के वैज्ञानिकों की मदद से जैविक खाद और फसल रक्षा के लिए दवाइयां बनानी सीखीं। उनके प्रयोग से अच्छे परिणाम मिले थे और सात किसानों से शुरू हुआ कारवां 12000 तक पहुंच गया. योगेश बताते हैं, "रसायनमुक्त खेती को व्यवसायिक रूप देने के लिए मैंने रैपिड ऑर्गेनिक कंपनी बनाई. जिसके जरिए मेरी कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा किसानों को इसमें जोड़ा जाए और उन्हें अच्छा मुनाफा दिलाया जा सके. ये हमारी लिए उपलब्धि है कि पिछले 5-7 वर्षों में हमारे समूह के 3000 किसान जैविक प्रमाण पत्र प्राप्त कर चुके हैं, 1000 किसान कन्वर्जन-2 में हैं, शेष 1000 किसान साथी सी-3 फेज में हैं." 

योगेश की कंपनी ने सभी किसानों के लिए जैविक प्रमाणीकरण के खर्च को खुद उठाया और समूह के किसानों के लिए लगातार प्रशिक्षण का इंतजाम किया. योगेश के मुताबिक हमारे साथ जुड़े किसान आर्थिक रूप से शुरुआत में सक्षम नहीं थे, इसलिए ऐसे सभी खर्च खुद उठाए.

योगेश के साथ मिलकर खेती करने वाले ईश्वर सिंह ने बताया कि योगेश जोशी ने जैविक खेती का फार्मूला लाया तब से उनके साथ मिलकर खेती कर रहा हूं. मुझे जोशी की कंपनी ही बीज उपलब्ध करवाती है और जैविक दवाई घर पर ही तैयार की जाती है. साथ ही बुवाई के समय हमारी फसल का भाव तय हो जाता है ओर हमें कम खर्च में ज्यादा मुनाफा मिल रहा है.

(नरेश सरनाऊ (बिश्नोई) की र‍िपोर्ट)