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Faridabad: कलयुग का श्रवण कुमार! फरीदाबाद के Pranav Shukla चलाते हैं वृद्धाश्रम, 42 बुजुर्गों की कर रहे हैं सेवा

फरीदाबाद में प्रणव शुक्ला एक वृद्धाश्रम चलाते हैं. इसमें 42 बुजुर्ग रहते हैं. इस वृद्धाश्रम का खर्च एक गौशाला से चलता है. जिसे प्रणव खुद चलाते हैं. उस गौशाला में 200 गाय हैं. प्रणव डेयरी प्रोडक्ट्स बेचते हैं और उन पैसों से वृद्धाश्रम चलाते हैं.

Pranav Shukla in old age home in Faridabad Pranav Shukla in old age home in Faridabad

कभी हरिद्वार घुमाने के बहाने बच्चे रेलवे स्टेशन पर अपने बूढ़े मां-बाप को छोड़ देते हैं तो कभी घर के लालच में मां-बाप को घर से निकाल देते हैं. इस कलयुग में फरीदाबाद का एक श्रवण कुमार बेसहारा बुजुर्गों का सहारा बना है. प्रणव शुक्ला नाम के ये युवक अनादि नाम का एक वृद्धाश्रम चलाता है, जिसमें 42 बुजुर्ग रहते हैं.

प्रणव शुक्ला कलयुग का श्रवण कुमार-
प्रणव शुक्ला एक वृद्धाश्रम चलाते हैं. जिसमें बेसहारा बुजुर्ग अपनी जिंदगी जी रहे हैं. प्रणव अपने कॉलेज के दिनों में एक बुजुर्ग को रेलवे स्टेशन में भटकते हुए देखा था. उसी दिन सोच लिया था कि बुजुर्गों के लिए काम करेंगे. प्रणब ने साल 1996 में वृद्धाश्रम की शुरुआत की. उन्होंने तकरीबन तीन बुजुर्गों की जिम्मेदारी एक किराए के घर में ली थी. इस समय फरीदाबाद के पाली गांव के इस वृद्धाश्रम में 42 बुजुर्ग रह रहे हैं. 28 सालों में करीब 300 बुजुर्ग इस वृद्धावस्था में रह चुके हैं.

पैसे बचाकर शुरू किया था वृद्धाश्रम-
प्रणव जब 10000 की नौकरी करते थे तो उसमें से पैसे बचाकर बुजुर्गों की मदद करते थे.कुछ समय बाद प्रणव को अहसास हुआ कि सिर्फ आटा, दाल, चावल की मदद से काम नहीं चलेगा, इन बुजुर्गों को छत की जरूरत है. इसके बाद साल 1996 में अनादि वृद्धाश्रम की शुरुआत की. प्रणब ने अपनी सैलरी से पैसे बचाकर इन बुजुर्गों के लिए एक घर की व्यवस्था की.
 
नौकरी छोड़ वृद्धाश्रम पर किया फोकस-
साल 2017 तक प्रणव शुक्ला नौकरी के साथ आश्रम चला रहे थे. लेकिन इसी साल उन्होंने मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी छोड़ दी. इसके बाद प्रणव वृद्धाश्रम में रह रहे लोगों को अपना परिवार माना और उनकी सेवा में जुट गए. वृद्धाश्रम में बुजुर्गों की सेहत का भी ध्यान रखा जाता है. उनके इलाज की भी सुविधा है.

वृद्धाश्रम में खुशनुमा माहौल-
प्रणव के साथ ये 42 बुजुर्ग अपना हर दुख, दर्द भूलकर खुशी-खुशी रहते हैं, एक दूसरे को अपना परिवार मान हैं और प्रणव को अपना बेटा मानते हैं. इस आश्रम में समय-समय पर गाना-बजाना भी होता है. प्रणव की एक कोशिश रहती है कि वृद्धाश्रम में रहने वाला कोई भी बुजुर्ग उदास ना रहे. आश्रम का माहौल ऐसा हो कि हर कोई हंसता खेलता रहे.
 
गौशाला से निकलता है वृद्धाश्रम का खर्च-
प्रणव ने नौकरी छोड़ने के बाद आश्रम की पूरी जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली. वो एक गौशाला की मदद से वृद्धाश्रम का पूरा खर्च निकालते हैं. वो इस गौशाला में 200 गायों की देखरेख करते हैं. गया के दूध से घी बनता है. डेयरी प्रोडक्ट बेचकर वृद्धाश्रम की जिम्मेदारी निभाते हैं.

प्रणव की पत्नी भी करती हैं वृद्धाश्रम में सेवा-
प्रणव का कहना है कि उनके पास 42 बच्चे हैं, जिनकी देखरेख उनको करनी है. जितने भी बुजुर्ग उनके पास रह रहें हैं, उनके बच्चे होने के बावजूद वह बेसहारा है. ऐसे में प्रणव और उनकी पत्नी ने खुद के बच्चे पैदा नहीं करने और इन बेसहारा बुजुर्गों  का सहारा बनने का फैसला किया.

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