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Self Defense Camp: प्रयागराज में मूकबधिर बच्चों को सेल्फ डिफेंस सिखा रही यह महिला, जानिए कैसा है कैंप

Self Defense Camp in Prayagraj: समाज में लगातार बढ़ रही आपराधिक गतिविधियों से निपटने के लिए प्रयागराज के जॉर्जटाउन में बना मूकबधिर विद्यालय बच्चों को नि:शुल्क सेल्फ डिफेंस सिखा रहा है. कैंप में मूकबधिर बेटियों को खास तौर पर सेल्फ डिफेंस सिखाने पर जोर दिया जा रहा है.

Representational image. (Photo by Ashima Pargal, Unsplash) Representational image. (Photo by Ashima Pargal, Unsplash)

तेजी से बदल रहे आधुनिक युग में अपराध करने के तरीके भी बदल गए हैं. महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा यूं भी एक बड़ा मुद्दा है. लेकिन उन महिलाओं और बच्चों के लिए आत्मरक्षा ज्यादा मुश्किल है जो बोल या सुन नहीं पाते. इसी बात को ध्यान में रखते हुए प्रयागराज के जॉर्जटाऊन में बने मूकबधिर स्कूल के बच्चों को आत्मरक्षण (Self Defense) सिखाया जा रहा है. साथ ही बच्चों को गुड टच और बैड टच (Good touch and Bad touch) के बारे में भी बताया जा रहा है. 

एक साल के लिए लगेगा कैंप
समाज में लगातार बढ़ रही आपराधिक गतिविधियों से निपटने के लिए प्रयागराज के जॉर्जटाउन में बना मूकबधिर विद्यालय बच्चों को नि:शुल्क सेल्फ डिफेंस सिखा रहा है. प्रयागराज रोटरी क्लब मिडटाउन और रेड बेल्ट अकादमी की ओर से यह सेल्फ डिफेंस कैंप आयोजित किया गया है. यह कैंप एक साल तक चलेगाा जिसमें बच्चों को जूडो-कराटे सिखाया जाएगा. 

रेड बेल्ट अकादमी ने उठाया जिम्मा
मूकबधिर विद्यालय के बच्चों को ट्रेन करने का जिम्मा रेड बेल्ट अकादमी से जुड़ी स्मृति शांगलू ने उठाया है. स्मृति की ट्रेनिंग बच्चों को सेल्फ डिफेंस सिखाने तक सीमित नहीं है. वह उन्हें गुड टच और बैड टच के बारे में भी बता रही हैं. इस ट्रेनिंग में बच्चों को सिखाया जाता है कि एक अंजान व्यक्ति उनके शरीर के किन अंगों को छू सकता है और किन अंगों के छुए जाने पर उन्हें खतरा महसूस करना है. प्रशिक्षण शिविर हफ्ते में एक दिन लगाया जाता है. 

"बच्चों में आत्मविश्वास पैदा करना है."
कैंप में मूकबधिर बेटियों को खास तौर पर सेल्फ डिफेंस सिखाने पर जोर दिया जा रहा है. स्मृति कहती हैं कि कैंप के जरिए वह बच्चों में आत्मविश्वास पैदा करना चाहती हैं. 

स्मृति कहती हैं, "इस कैंप का मकसद यही है कि इन लड़कियों में आत्मविश्वास आ सके. वे  इन कमियों के चलते खुद को असहाय न समझें. साथ ही लड़कियों के अंदर का डर निकाल जाए और वे समाज में आंख उठाकर चल सकें. ऐसे बच्चे भले ही अपनी आवाज न उठा सकें लेकिन उनके दिमाग में इतनी ताकत होनी चाहिए कि वे विपरीत परिस्थितियों में फंस जाएं तो खुद को बचा सकें." 

स्मृति कहती हैं कि इस तरह के बच्चों को समझाने में थोड़ा समय लगता है इसलिए यह कोर्स एक साल का है. वह कहती हैं कि ईश्वर ने इन बच्चों को सुनने और बोलने की शक्ति नहीं दी है लेकिन ये उत्साह से लबरेज़ होकर ट्रेनिंग ले रहे हैं. उनका उद्देश्य इन बच्चों को आत्मनिर्भर बनाना है. इस काम में स्कूल भी रेड बेल्ड अकादमी का सहयोग कर रहा है. 
(प्रयागराज से आनंद राज की रिपोर्ट)