भारत देश एक विकासशील देश है. समय के साथ-साथ लगातार देश में विकास हो रहा है. विकास दर के साथ-साथ देश में फैक्ट्रीयां भी बढ़ रही हैं, और साथ ही प्रदूषण भी बढ़ रहा है. जिन जगहों पर जितनी ज्यादा फैक्ट्रीयां हैं वहां उतना ही प्रदूषण और बदबू भी है. इस बढ़ते प्रदूषण और बदबू को सिर्फ प्रकृतिक तरीके से रोका जा सकता है. उत्तराखंड वन विभाग ने इस ओर एक पहल की है. वन विभाग की रिसर्च विंग ने नैनीताल जिले के लालकुआं में एक 'एरोमेटिक गार्डन' (Aromatic Garden) खोला है.
क्या है Aromatic Garden?
3 एकड़ से अधिक के क्षेत्र में फैले इस उद्यान में पूरे भारत से सुगंधित पौधों की 140 विभिन्न प्रजातियां मौजूद हैं. जून 2018 में अनुसंधान सलाहकार समिति की मंजूरी के बाद वर्ष 2018-19 में परियोजना शुरू की गई थी. इस परियोजना का उद्देश्य है कि आम लोगों को इन प्रजातियों के बारे में जानकारी हो, इस रिसर्च को बढ़ावा मिले, साथ ही साथ इसे आजीविका से भी जोड़ा जा सके. बगीचे के बारे में एएनआई से बात करते हुए, मुख्य वन संरक्षक (अनुसंधान) संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि इस सुगंधित उद्यान की स्थापना का उद्देश्य विभिन्न सुगंधित प्रजातियों का संरक्षण है, इन प्रजातियों के बारे में जागरूकता पैदा करना, इन प्रजातियों के बारे में और शोध को बढ़ावा देना है. यह भविष्य में स्थानीय लोगों की आजीविका का साधन भी हो सकता है.
बदबू की समस्या से मिलेगा निजात
परियोजना को केंद्र सरकार की प्रतिपूरक वनीकरण निधि प्रबंधन और योजना प्राधिकरण (CAMPA) योजना के तहत फंड किया गया है. चतुर्वेदी ने बताया कि लालकुआं को साइट के रूप में चुना गया था क्योंकि यह कुछ औद्योगिक इकाइयों से आने वाली बदबू के कारण दुर्गंध की स्थायी समस्या के लिए जाना जाता है. अब इस उद्यान के खुलने से इस समस्या से छुटकारा मिलेगा.
कौन-कौन सी प्रजातियां मौजूद हैं?
मुख्य संरक्षक ने बताया कि सुगंधित उद्यान में एक तुलसी वाटिका है जिसमें तुलसी की 19 विभिन्न प्रजातियां शामिल हैं, जिनमें राम तुलसी, श्याम तुलसी, वन तुलसी, कपूर तुलसी के साथ-साथ अफ्रीकी, इतालवी और थाई तुलसी शामिल हैं.
सुगंधित उद्यान में तुलसी वाटिका के अलावा 8 अलग-अलग खंड हैं- सुगंधित पत्ते (नींबू बाम, मेंहदी, कपूर, और विभिन्न टकसाल प्रजातियां); सुगंधित फूल (चमेली, मोगरा, रजनीगंधा, केवड़ा); सुगंधित पेड़ (चंदन, नीम चमेली, नागलिंगम, पारिजात); सुगंधित प्रकंद (आमा हल्दी, काली हल्दी); सुगंधित बीज (कस्तूरी भिंडी, काली इलायची, तैमूर, अजवायन); सुगंधित घास (लेमनग्रास, जावा घास, खास घास); सुगंधित बल्ब (लाल अदरक, रेत अदरक) और सुगंधित जड़ें (पत्थरचूर, वच).
नीम चमेली, हजारी मोगरा, सोंटाका, चमेली, रात में खिलने वाली चमेली (रात की रानी), दिन में खिलने वाली चमेली (दिन का राजा) के अलावा दक्षिण भारत से चंदन, उत्तर पूर्व से अगरवुड, तटीय क्षेत्रों से केवड़ा और तराई क्षेत्र से पारिजात. इसके अलावा कुछ सबसे सुगंधित लोकप्रिय प्रजातियां भी मौजूद हैं. इसमें जैस्मीन की नौ अलग-अलग प्रजातियाँ, पुदीने की चार अलग-अलग प्रजातियाँ, हल्दी की चार प्रजातियाँ और अदरक की तीन अलग-अलग प्रजातियाँ भी हैं. इन सुगंधित पौधों के अर्क का उपयोग सौंदर्य प्रसाधनों में स्वाद और सुगंध के लिए किया जाता है. इसी तरह, ये पौधे मसाले, कीटनाशक और विकर्षक बनाने में बहुत उपयोगी होते हैं.