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पंजाब की बेटियों को आत्मनिर्भर बना रही हैं Roopsi Garg, कपास से कपड़ा बनाने का सीखा रही हैं हुनर

महात्मा गांधी के प्रेरित होकर बैंगलोर की बेटी पंजाब की विरासत को संभालने का काम शुरू किया है. रूपसी गर्ग ने खेती विरासत मिशन के जुड़कर फरीदकोट में बेटियों को आत्मनिर्भर बना रही हैं. वो लड़कियों और महिलाओं को कपास से कपड़ा बुनने का हुनर सीखा रही हैं.

पंजाब के फरीदकोट में बेटियों को आत्मनिर्भर बना रही बैंगलोर की बेटी रूपसी गर्ग पंजाब के फरीदकोट में बेटियों को आत्मनिर्भर बना रही बैंगलोर की बेटी रूपसी गर्ग

जहां चाह होती है, वहां राह होती है. बैंगलोर से पंजाब के फरीदकोट आई एक लड़की रूपसी गर्ग बुनकर पाठशाला चला रही है. छोटे से कस्बे जैतो में ये लकड़ी परंपरागत तरीके से खादी का कपड़ा बुनने का हुनर सीखा रही है. यहां लड़कियां और महिलाएं चरका चलाकर सूती कपड़ा तैयार कर रही हैं.

करीब 40 महिलाएं करती हैं काम-
बुनकरों की इस पाठशाला में 40 महिलाएं बारी-बारी से शिफ्ट में काम सीखने आती हैं. ये महिलाएं अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती हैं. रूपसी गर्ग ने इसकी शुरुआत कुछ साल पहले की थी. उन्होंने बिना किसी की मदद से गांव की महिलाओं को इकट्ठा किया. रूपसी ने महिलाओं को खादी का कपड़ा बुनने के लिए प्रेरित करती हैं. उन्होंने इसके लिए लकड़ी की खड़ीयां लगाई. इनके कपास से बुने कपड़ों की विदेशों में काफी डिमांड है.

महात्मा गांधी और टैगोर से मिली प्रेरणा-
इन महिलाओं को कपास से कपड़े बुनने में दिक्कत भी आ रही है. क्योंकि पंजाब में कपास की कम पैदावार होती है. कपड़े के अलावा दर्री, घर का साजो-सामान भी कपास से तैयार किया जाता है. महिलाओं का ये पूरा कामकाज एक छोटे से कमरे में चल रहा है. इसमें महिलाओं और लड़कियों को लकड़ी की खड्डी चलाना, चरखा चलाना और बुनाई का काम सिखाया जाता है. रूपसी गर्ग को पंजाब की इस कला और हुनर को जीवित रखने की प्रेरणा महात्मा गांधी और रविंद्रनाथ टैगोर से मिली है.

रूपसी कैसे पहुंचीं फरीदकोट-
रूपसी गर्ग बैंगलोर से पंजाब के फरीदकोट कैसे पहुंची? इस सवाल पर रूपसी गर्ग कहती हैं कि उनकी शुरुआत पढ़ाई पटियाला में हुई है. उसके बाद उन्होंने बायो टेक्नोॉलजी से बीटेक किया. इसके बाद उन्होंने डेवल्पमेंट स्टडी में बैंगलोर से मास्टर्स की डिग्री ली. उनका सारा परिवार बैंगलोर में रहता है. रूपसी गर्ग के पिता की एक छोटी से दुकान है. रूपसी साल 2018 में खेती विरासत मिशन से जुड़कर फरीदकोट आईं. वो 5 साल से फरीदकोट में काम कर रही हैं. रूपसी का कहना है कि महात्मा गांधी की एक किताब ग्राम स्वराज ने उनकी सोच बदल दी. इस किताब में भारत के गांवों की बात की गई है.
(फरीदकोट से प्रेम पासी की रिपोर्ट)

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