कोविड-19 महामारी से लोगों को बचाने के लिए एक ओर जहां प्रशासन, डॉक्टर्स, सरकारें सभी जुटी हुई हैं, वहीं देश के कुछ आमजन भी हैं जो निस्वार्थ भाव से दूसरे लोगों की मदद करने में लगे हैं. लॉकडाउन में जब लोग रेमडेसिवीर इंजेक्शन, ऑक्सीजन सिलिंडर और अस्पतालों में बेड के लिए परेशान हो रहे थे तब आसपास के न जाने कितने लोग बिना किसी फायदे के सोशल मीडिया के माध्यम से मदद के लिए जुटे हुए थे. अब ट्विटर ने इन्हीं लोगों को सम्मान देने का सोचा है.
निस्वार्थ भाव से मदद कर रही महिलाओं के प्रयासों और ऑनलाइन कम्यूनिटी के माध्यम से कोविड रिलीफ में उनके योगदान को पहचान देने के लिए ट्विटर इंडिया (Twitter India) और महिला अधिकार संगठन ब्रेकथ्रू (INBreakthrough) साथ आये हैं. उन्होंने इन महिलाओं को सम्मानित करने के लिहाज से ‘कोविड-शीरोज' (Covid Sheroes) के नाम से पहचान दी है.
किन महिलाओं को किया गया सम्मानित?
दरअसल, साल की शुरुआत में, ट्विटर इंडिया ने ब्रेकथ्रू के साथ मिलकर, उन महिलाओं को सम्मान देने का आह्वान किया था, जिन्होंने महामारी के दौरान लोगों की सहायता करने के लिए अलग-अलग प्रयास किये. ये वे महिलाएं थीं जिन्होंने ट्विटर का इस्तेमाल लोगों को कोविड-19 से जुड़े संसाधनों से जोड़ने, एसओएस कॉल्स को बढ़ाने और जमीनी स्तर पर सहायता प्रदान करने के लिए किया था।
आपको बता दें, ट्विटर इंडिया और ब्रेकथ्रू के साथ मिलकर छह महिलाओं को नामांकित किया है. इसमें अर्पिता चौधरी, फथाहीन मिस्बाह, मैगी इम्बामुतिहा, मिथिला नाइक, सबिता चंदा और सीमा मिश्रा शामिल हैं.
चलिए विस्तार से जानते हैं इन कोविड शीरोज के बारे में:
1. प्रो. सीमा मिश्रा
गाज़ियाबाद में रहने वाली 47 वर्षीय सीमा मिश्रा रजिस्ट्रार और आईसीआर आईएलएएम में अकादमिक प्रमुख हैं. सीमा कई स्टार्टअप की पैनल एडवाइजर और मेंटोर हैं. सीमा ने डेवलप इंडिया फाउंडेशन एनजीओ की स्थापना की जिसके माध्यम से वे एजुकेशन ईकुअलिटी, सशक्तिकरण और पर्यावरण की दिशा में बड़े पैमाने पर काम कर रही हैं. कोविड-19 महामारी के दौरान, सीमा ने कुछ वालंटियर्स के साथ मिलकर जिन लोगों को मेडिकल रिसोर्सेज की जरूरत थी उनकी मदद करने के लिए काम किया. अपनी टीम के साथ, उन्होंने ट्विटर पर अपने नेटवर्क का फायदा उठाकर लोगों को खाना, ब्लड प्लाज्मा और अस्पताल में बेड दिलवाने में मदद की. उन्होंने लॉकडाउन के दौरान फंसे हुए प्रवासियों की बड़े पैमाने पर मदद की.
2. सबिता चंदा
दिल्ली की रहने वाली सबिता चंद्रा, एक करियर कोच हैं, जो अपना ज्यादातर समय जरूरतमंद लोगों को सहायता देने में बिताती हैं. उन्होंने माइग्रेंट वर्कर मूवमेंट शुरू किया, 8000 से अधिक प्रवासियों को खाना और राशन सहायता की. ये वो लोग थे जो बेघर हो गए थे और महामारी के कारण भूख से मर रहे थे. उन्होंने कई ऐसे बच्चों की स्मार्टफोन और लैपटॉप के माध्यम से ऑनलाइन कक्षाओं तक पहुंचने में मदद की जिन्हे जरूरत थी. 40 वर्षीय सबिता ने लोगों को मेडिकल हेल्प दिलवाने में मदद की, जिसमें उन्होंने 1200 से ज्यादा लोगों को ब्लड प्लाज्मा दिलवाया.
3. मिथिला नाइक
मिथिला 25 साल की हैं और मुंबई में रहती हैं. यह एक कम्युनिकेशन कंसलटेंट हैं और यूनिसेफ इंडिया प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं. वह ‘खाना चाहिए फाउंडेशन’ (@khaanachahiye) के साथ भी वालंटियर के रूप में काम कर रही हैं. यहां वे इसकी डिजिटल आउटरीच को देखती हैं. ट्विटर के माध्यम से, मिथिला ने हामारी के दौरान, लोगों को बेड्स, मेडिकल फैसिलिटी और ऑक्सीजन पहुंचाने में मदद की.
4. मैगी इम्बामुतिहा
45 वर्षीय बेंगलुरु में रहने वाली मैगी सोशल वेलफेयर के लिए काम करती हैं. वह इस वक़्त पपेटिका इंडिया के साथ काम कर रही हैं. इसके साथ वे भारत में क्षेत्रीय भाषाओं में प्रवचनों को बढ़ावा देने के लिए मंदराम नाम की एक एनजीओ भी चलाती है. कोविड-19 में उन्होंने दक्षिण बैंगलोर में वालंटियर्स की एक टीम का नेतृत्व किया. इस टीम के साथ मिलकर वह हर दिन 40 से ज्यादा SOS रिक्वेस्ट से डील करती थी. ट्विटर के माध्यम से वे इन अनुरोधों और एसओएस कॉल की खोज करती थी. इस दौरान उन्होंने और उनकी टीम ने मिलकर कई लोगों को बेड्स, ईएमसीओ मशीन, प्रेग्नेंट महिलाओं को उपयुक्त मेडिकल फैसिलिटी पहुंचाने में मदद की.
5. फथाहीन मिस्बाह
मैसूर में रहने वाली 35 साल की फथाहीन, आईटी क्षेत्र में काम करती हैं. ट्विटर पर उन्होंने अपनी रीच का इस्तेमाल जरूरतमंद लोगों को संसाधनों से जोड़ने में किया. उन्होंने ब्लड प्लाज्मा की व्यवस्था करने से लेकर हॉस्पिटल बेड, दवाओं और दवाओं की उपलब्धता के बारे में जानकारी साझा करने तक - फतहीन ने लोगों में उम्मीद जगाने का काम किया.
6. अर्पिता चौधरी
अर्पिता इन सभी शीरोज में सबसे छोटी हैं. 20 साल की अर्पिता दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन कर रही हैं और जज्बात नाम के फाउंडेशन की फाउंडर हैं. भारत में दूसरी लहर के दौरान कोविड-19 से जुडी मदद पहुंचाने के लिए उन्होंने 21 अप्रैल को #LetsFightCovidTogether पहल की शुरुआत की. इसमें उन्होंने अस्पताल के बेड, ऑक्सीजन की आपूर्ति, मेडिकल हेल्प, सहित कई संसाधनों के बारे में जानकारी के लिए एक लाइव डेटाबेस बनाया. 60 दिनों के भीतर, अर्पिता ने अपने दोस्तों आरुषि राज (कमला नेहरू कॉलेज) और शिवानी सिंघल (कालिंदी कॉलेज) के साथ मिलकर एक हजार से अधिक लोगों की मदद की. ट्विटर का उपयोग करते हुए, उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि लोगों को रीयल-टाइम और सही लीड मिल सके.
ट्विटर इंडिया और ब्रेकथ्रू मिलकर दे रही है महिलाओं को पहचान
ट्विटर इंडिया की पायल कामत कहती हैं कि जब भारतीय COVID-19 की दूसरी लहर से लड़ने के लिए एक साथ आए, तो सभी क्षेत्रों में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी देखना काफी सुखद था. उन्होंने मदद मांगने वालों को राहत पहुंचाई. ओपन इंटरनेट और पब्लिक कन्वर्सेशन की ताकत के लिए शुक्रिया, लोग इसकी मदद से खुद आज खुद एक्शन ले सकते हैं, और इस प्रकार हम इन कोविड शीरोज को सेलिब्रेट कर रहे हैं. ब्रेकथ्रू के साथ साझेदारी में, इन महिलाओं को पहचानकर सम्मानित करते हुए हमें गर्व हो रहा है, और उम्मीद है कि इन सबकी उपलब्धियां कई और लोगों को बदलाव के लिए प्रेरित करेंगी.
इन महिलाओं को पहचानना हमारे लिए सम्मान की बात : CEO, ब्रेकथ्रू
वहीं, ब्रेकथ्रू की सीईओ, ओहिनी भट्टाचार्य कहती हैं कि हमने लोगों को सबसे खराब समय से उबरने में मदद करने के लिए समुदाय और भाईचारे की ताकत देखी है. कोविड-19 के दौरान, हमने मानवता को मरते हुए देखा है. लेकिन इंटरनेट की शक्ति, विशेष रूप से ट्विटर, ने कई पीड़ितों को बचाया इस दौरान मानवता, दया और सामुदायिक समर्थन की जो लहर उभरी, वह काफी प्रेरक थी. हमने देखा कि जिस तरह से ट्विटर पर कुछ महिलाओं ने मदद करने के लिए इस मंच और अपनी पहुंच का उपयोग किया है, वह उनके नेतृत्व की भावना का प्रमाण है. इन महिलाओं का पहचानना, सम्मान करना और समाज को एक बेहतर जगह बनाने के लिए जारी उन्हें प्रोत्साहित करना हमारे लिए सम्मान की बात है."
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