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World Liver Day: मौत के मुहाने पर खड़ा था मरीज़, बहन ने अपनी परवाह छोड़ लीवर देकर बचाई भाई की जान... जानिए पूरा मामला

जब 30 वर्षीय मरीज को गंभीर हालत में अस्पताल लाया गया तो वायरल हेपेटाइटिस से उनकी आंखें बहुत ज्यादा पीली पड़ चुकी थीं. शरीर में एंजाइम्स का स्तर बढ़ा हुआ था. जरूरी जांच के दौरान मरीज की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही थी. ऐसे में जब बात लिवर डोनेट करने की आई, तो सबसे पहले बहन का नाम आया. लेकिन इसमें एक छोटी सी परेशानी थी.

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दिल्ली के पटपड़गंज में मौजूद मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल के डॉक्टरों की सूझ-बूझ और बहन के प्रेम ने 30 साल के एक मरीज को नई जिन्दगी दे दी है. वायरल हेपेटाइटिस के कारण मरीज का लिवर खराब हो गया था. सर्जरी के दौरान चुनौती इसलिए ज्यादा बढ़ गई थी क्योंकि मरीज के जीजा के लाइव लिवर डोनेशन को मंजूरी मिलने के इंतजार के दौरान मरीज को कार्डियक अरेस्ट भी हो गया था. 

ऐसे में जब मरीज़ को अस्पताल लाया तो वह तेज़ी से मौत की ओर बढ़ रहा था कि तभी उसकी बहन ने अपनी जान की परवाह किए बिना भाई के लिए डोनर बनने का फैसला किया. लिवर ट्रांसप्लांट एक सुरक्षित सर्जरी है. तो आखिर इससे बहन की जान को खतरा क्यों था? आइए जानते हैं क्या है पूरा मामला. 

क्यों था लिवर ट्रांसप्लांट मुश्किल?
जब 30 वर्षीय मरीज को गंभीर हालत में अस्पताल लाया गया तो वायरल हेपेटाइटिस से उनकी आंखें बहुत ज्यादा पीली पड़ चुकी थीं. शरीर में एंजाइम्स का स्तर बढ़ा हुआ था. जरूरी जांच के दौरान मरीज की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही थी. मरीज और उनके परिवार को लिवर ट्रांसप्लांट की तत्काल जरूरत के बारे में बता दिया गया था. 

सबसे पहले डॉक्टरों ने मरीज़ की बहन को डोनर के तौर पर देखा. वह भी डोनर बनने के लिए तैयार थीं लेकिन जांच में पता चला कि उनके लिवर का आकार जरूरत से छोटा है. ऐसे में बहन का लिवर नहीं लिया जा सकता था. इसके बाद परिवार ने मरीज के जीजा (सेकेंड डिग्री रिलेटिव) को डोनर बनाने की बात की. उनका लिवर बेहतर तरीके से मैच कर रहा था, हालांकि सेकेंड डिग्री रिलेटिव होने के कारण जीजा के लिवर को इस्तेमाल करने की मंजूरी मिलना मुश्किल था.

जब बिगड़े हालात, तो बढ़ा बहन का हाथ
मंजूरी का इंतजार करने के दौरान मरीज की स्थिति तेजी से खराब हो रही थी. उसी दौरान उन्हें कार्डियक अरेस्ट आ गया. क्रिटिकल केयर टीम की तरफ से समय पर प्रतिक्रिया, सीपीआर और दूसरी कोशिशों से मरीज को बचा लिया गया और वेंटिलेटर पर रखा गया. लेकिन समय बीतता जा रहा था. लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत हर सेकंड के साथ बढ़ रही थी. 

ऐसे में परिवार वालों से परामर्श के बाद डॉक्टरों की टीम ने बहन के लिवर से ही मरीज की जिंदगी बचाने का फैसला किया. मरीज की गंभीर स्थिति को ध्यान में रखते हुए हेपेटोबिलियरी सर्जन, एनेस्थीसिया एक्सपर्ट और इंटेंसिव केयर स्पेशलिस्ट की कुशल टीम ने सफलतापूर्वक लिवर ट्रांसप्लांट किया. 

इस मामले को लेकर मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल के एचपीबी सर्जरी एंड लिवर ट्रांसप्लांट के डायरेक्टर डॉ. अजिताभ श्रीवास्तव ने कहा, "यह सबसे ज्यादा चैलेंजिंग मामलों में से एक था. मरीज के बचने की संभावना सटीक को-ऑर्डिनेशन, तेज निर्णय और हमारी मल्टीडिसिप्लिनरी टीम की विशेषज्ञता पर निर्भर थी. एक्यूट लिवर फेल्योर तेजी से बिगड़ने वाली स्थिति है. इसमें हर सेकेंड मायने रखता है." 

उन्होंने कहा, "जब मरीज को कार्डियक अरेस्ट आया तो तुरंत कदम उठाना जरूरी था. हमारी टीम ने तत्काल सीपीआर के माध्यम से मरीज की स्थिति को संभाला और स्थिति को देखते हुए हमने बहन के लिवर से ट्रांसप्लांट के लिए आगे बढ़ने का फैसला किया. किसी भी तरह की देरी जानलेवा हो सकती थी. नौ घंटे की मुश्किल सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम दिया गया और अब मरीज की स्थिति पहले से बेहतर है." 

मरीज़ की बहन का लिवर समय के साथ रिकवर हो जाएगा, लेकिन फिलहाल डॉक्टरों की सूझबूझ ने मौत के दरवाज़े पर खड़े एक इंसान को नई जिन्दगी दे दी है.