
छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में मौजूद ड्यूल्ड गांव में कुछ समय पहले तक लोग जाने की हिम्मत नहीं कर पाते थे. यह इलाका नक्सलियों का गढ़ हुआ करता था. गांव में किसी भी तरह की सुविधा न के बराबर थी. डर के साए में जीना गांव वालों की मजबूरी थी. लेकिन अब गांव कि फिजां बदल रही है. सीआरपीएफ का एक कैंप बनने के बाद से ड्यूल्ड गांव की तस्वीर बदलने लगी है.
सड़कें बनीं, नेटवर्क आया
ड्यूल्ड के ही रहने वाले हदमा टाटी समाचार एजेंसी पीटीआई के साथ खास बातचीत में कहते हैं कि सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स (CRPF) का कैंप बनने के बाद गांव को नक्सलवाद के दंश से मुक्ति मिली है और विकास अब गांव तक पहुंचने लगा है. टाटी कहते हैं, "हमारे गांव में सड़क आ गई है तो उससे लोग आना-जाना कहीं पर भी करते हैं. नेटवर्क आ गया है. लोगों के पास मोबाइल आ गया है."
टाटी बताते हैं कि नक्सलियों की तरफ से उनके गांव के ऊपर जो दबाव था, वह अब कम हो गया है. दशकों से अलग-थलग रहने वाले ड्यूल्ड गांव के लोगों में अब अमन-चैन और सुरक्षा का भाव मजबूत हो रहा है. वे बताते हैं कि उन्हें ना सिर्फ बुनियादी सुविधाओं का, बल्कि सरकारी योजनाओं का भी फायदा मिलना शुरू हो गया है.
गांव के एक अन्य निवासी कहते हैं, "कैंप नहीं आया था तो गांव में थोड़ी दिक्कत थी. स्कूल नहीं था, आंगनबाड़ी नहीं थी. जो भी सरकारी सुविधाएं थीं वे नहीं मिलती थीं. अब सुविधाएं भी बढ़ी हैं. कैंप आने से हमारे पास सामान भी बढ़ा है. साइकिल, कपड़ा, बर्तन, जो भी सामान था, सबकी सप्लाई है."
वे भी लौटे जो छोड़ चुके थे गांव
नक्सलियों के डर से कई लोगों ने गांव छोड़ दिया था. अब वे धीरे-धीरे वापस लौटने लगे हैं. गांव छोड़कर पलायन करने वालों में से एक कार्तिक मांडावी भी हैं. वह नक्सलियों के डर से गांव छोड़कर दंतेवाड़ा चले गए थे, लेकिन अब वह शांति बहाल होने के बाद लौट आए हैं. कार्तिक कहते हैं, "मैं 2011 में गांव छोड़कर चला गया था. उस वक्त माहौल ठीक नहीं था. मैं पिछले साल यहां लौटा हूं."
कार्तिक ने कहा कि सीआरपीएफ के आने के बाद गांव के माहौल में सुधार आया है. उधर सीआरपीएफ अधिकारियों ने बताया कि यहां जनवरी 2024 में कैंप बनाया गया था. उसके बाद से हालात बदलने शुरू हो गए हैं. ड्यूल्ड में सीआरपीएफ सेकेंड बटालियन के सेकेंड इन कमांड कहते हैं, "यहां जनवरी 2024 में कैंप बनाया गया. कैंप बनाने का मुख्य उद्देश्य यहां की स्थानीय जनता को भय मुक्त करना था."
उन्होंने कहा, "सरकार की नीतियों को लागू करवाना भी हमारा उद्देश्य था. इसके लिए हमारे डीआईजी ने हमारे कमांडेंट को बताया. कमांडेंट ने अपनी टीम को यहां निकाल कर यहां पर कैंप तैयार किया."
इलाके में टूट चुकी नक्सलवाद की कमर
सुरक्षा बल के अधिकारी बताते हैं कि इस इलाके में नक्सल विरोधी अभियानों में लगातार कामयाबी मिलती गई. और अब उनकी कमर टूट गई है. बस्तर के आईजी सुंदरराज पी. कहते हैं, "साल 2024 और 2025 में कुल 15 महीने के अवधि में देखा जाए तो बस्तर संभाग के अंतर्गत 350 के आसपास माओवादियों के शव अलग-अलग मुठभेड़ों के बाद मिले."
उन्होंने कहा, "उनमें से दंडकारण्य स्पेशल जोन कमेटी और डीबीसी इस प्रकार के सीनियर लेवल कैडर और पीएलजी फॉर्मेशन की डेड बॉडी रिकवर की गई थी. साथ-साथ इस अवधि में देखा जाए तो लगभग 1100 से अधिक माओवादी कैडर ने हिंसा त्याग कर आत्मसमर्पण किया. पुनर्वास पॉलिसी से प्रभावित होकर सरेंडर भी किया. लगभग 700 के आसपास कैडर गिरफ्तार भी हुआ. इन सब कार्रवाई के बाद से माओवादी संगठन काफी हद तक कमजोर हो गया तो उनकी संख्या बल काफी हद तक कम होती जा रही है.”
ड्यूल्ड गांव कभी नक्सली नासूर और भय का प्रतीक था। अब यहां उम्मीद और विकास की इबारत लिखी जा रही है.