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Tulip Production: ट्यूलिप की खेती से बढ़ेगी किसानों की आय, जानिए विक्रम ठाकुर की कहानी, जिन्होंने पारंपरिक खेती छोड़ शुरू की फूलों की खेती

हिमाचल के लाहौल-स्पीति जिले के मुद्रण गांव के रहने वाले 29 साल के विक्रम ने ट्यूलिप की खेती की शुरूआत की है, जिससे उन्हें काफी फायदा हो रहा है. इस साल, ठाकुर जून में ट्यूलिप के 40,000 बल्बों की कटाई करने वाले है, जो नियमित फूलों का मौसम नहीं है.

ट्यूलिप की खेती से बढ़ेगी किसानों की आय ट्यूलिप की खेती से बढ़ेगी किसानों की आय
हाइलाइट्स
  • ट्यूलिप की खेती से होता है अच्छी कमाई

  • सरकार दे रही है किसानों को ट्यूलिप की खेती की ट्रेनिंग

भारत में आजकल कई सारे किसान ट्रेडिशनल फार्मिंग छोड़कर खेती में कई तरह के एक्सपेरिमेंट्स कर रहे हैं. हिमाचल के रहने वाले विक्रम ठाकुर भी एक ऐसे ही किसान हैं. जिन्होंने पारंपरिक खेती छोड़ के ट्यूलिप की खेती करनी शुरू की है. हिमाचल के लाहौल-स्पीति जिले के मुद्रण गांव के रहने वाले 29 साल के विक्रम ने सबसे पहले आलू की खेती से शुरुआत की थी. लेकिन कुछ दिनों में उन्हें ये समझ आ गया कि इससे कुछ फायदा नहीं होने वाला है. धीरे-धीरे उन्होंने फूलगोभी, मटर और प्याज जैसी फसलों को अपने खेत में उगाना बंद कर दिया. इसके बजाय उन्होंने फूलों की खेती की शुरुआत की, जिसमें खास तौर ट्यूलिप की खेती.

ट्यूलिप की खेती से होता है अच्छी कमाई
टाइम्स के हवाले से विक्रम बताते हैं कि, "मैंने सोचा कि मैं सब्जी बेचकर कितने ही पैसे कमा लूंगा? कुछ 20-25 रुपये प्रति किलो? जबकि फूलों को किसी रसायन या उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती है, उनमें किसी तरह की कोई बीमारी लगने का भी खतरा कम रहता है. अब अटल टनल के खुलने से ट्रांसपोर्टेशन में भी कम पैसे लगते हैं." ठाकुर कहते हैं, जो कहते हैं कि उन्हें दिल्ली के गाजीपुर फूल बाजार में ट्यूलिप की एक छड़ी के लिए 100 रुपये मिलते हैं. इस साल, ठाकुर जून में ट्यूलिप के 40,000 बल्बों की कटाई करने वाले है, जो नियमित फूलों का मौसम नहीं है. ठाकुर बताते हैं कि, ''राजधानी में सभी ऑफ सीजन ट्यूलिप और ओरिएंटल लिली लाहौल से आते हैं. हम पालमपुर, कश्मीर, मेघालय में भी बेचते हैं. ट्यूलिप की मांग हर साल बढ़ रही है.''

ट्यूलिप की खेती में होती है अच्छी कमाई
ट्यूलिप की बारे में एक बात कही जाती है कि 17वीं शताब्दी में नीदरलैंड में ट्यूलिप की खेती का काफी ट्रेंड था. उस वक्त कहा जाता था कि, ट्यूलिप के एक बल्ब को बेच कर हीरा खरीदा जा सकता है. ये बात सही है या गलत इस बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता है कि लेकिन एक बात तो तय है कि ट्यूलिप की खेती में काफी अच्छा पैसा मिलता है.

सरकार दे रही है किसानों को ट्यूलिप की खेती की ट्रेनिंग
ठाकुर मुद्रण के उस 20 किसानों में से एक हैं, जिन्हें काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च-इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोर-नेदर एंड सोर्स टेक्नोलॉजी (CISR-IHBT) के वैज्ञानिकों द्वारा ट्यूलिप की खेती में प्रशिक्षित किया गया है. विक्रम कहते हैं कि उन्हें उम्मीद है एक दिन भारत को नीदरलैंड्स से ट्यूलिप का आयात नहीं करना पड़ेगा. नीदरलैंड्स जो दुनिया में ट्यूलिप बल्ब का सबसे बड़ा उत्पादक निर्यातक है. मार्च मे्ं होने वाली जी 20 के विदेश मंत्रियों की बैठक मार्च में होनी थी, उससे पहले नीदरलैंड से लगभग 1.3 लाख ट्यूलिप बल्ब खरीदे गए और एनडीएमसी क्षेत्र में लगाए गए ताकि वे फरवरी के मध्य तक मिल सकें. अब अगले सीजन में पांच लाख ट्यूलिप बल्ब उगाने की योजना है. जिसके लिए भारतीय ट्यूलिप सप्लायर को प्रोत्साहित किया जा रहा है.

भारत के किसानों को मिल रही है ट्रेनिंग
डॉ. भव्य भारवा, वरिष्ठ वैज्ञानिक, फ्लोरीकल्चर, कृषि-प्रौद्योगिकी विभाग कहते हैं कि, "हम लेह, लाहौल और स्पीति को ट्यूलिप के लिए थोक उत्पादन क्षेत्र बनाना चाहते हैं. हमारा उद्देश्य भारत को ट्यूलिप उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाना है. पालमपुर में सीएसआईआर-आईएचबीटी पहले से ही पालमपुर को 'ट्यूलिप सिटी' के रूप में बनाने में मदद कर रहा है, जिसके चलते पिछले साल ट्यूलिप गार्डन का उद्घाटन हुआ था. इस साल भी करीब 40,000 ट्यूलिप खिले हैं, ये बल्ब लाहौल और स्पीति के किसानों द्वारा उगाए गए हैं. भारवा कहते हैं कि, "हमने हॉलैंड से कुछ बल्ब खरीदे और फिर अपने किसानों को उन्हें लगवाने के तरीके सिखाए. हॉलैंड से ट्यूलिप बल्ब मंगाने की लागत आमतौर पर 40 रुपये प्रति यूनिट होती है. अगर स्वदेशी बल्ब मंगाए जाएं तो यह कीमत आधी होगी." ट्यूलिप टेस्ट रन देश के कई हिस्सों जैसे हैदराबाद, आंध्र प्रदेश, साथ ही तमिलनाडु में ऊटी और तंजावुर में भी किए जा रहे है.