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फिनलैंड के वैज्ञानिकों की अनोखी पहल, लैब में उगाई 'बिना पौधों के कॉफी'

फिनलैंड की एक प्रयोगशाला में कॉफी तैयार की गई है, बिना खेती किए. इसका स्वाद और खुशबू असली कॉफी जैसी है. पर इसके सामने अभी कई चुनौतियां हैं.

लैब में बनी कॉफी- स्वाद और खुशबु एकदम रियल कॉफी जैसा लैब में बनी कॉफी- स्वाद और खुशबु एकदम रियल कॉफी जैसा
हाइलाइट्स
  • प्रयोगशाला में तैयार हुई बिना पौधों की कॉफी

  • खुशबू और स्वाद भी एकदम रियल कॉफी जैसी

बदलते वक्त के साथ हमनें बहुत सी आदतें अपनाई हैं, या यूं कहें कि वक्त की मांग ने हमें ऐसा करने पर मजबूर कर दिया. उदाहरण के तौर पर AC का इस्तेमाल, मोबाइल फोन पर गेम खेलते हुए या सोशल मीडिया पर वक्त बिताना हमारी आदत बन गई है. एक बहुत ही साधारण सा उदाहरण कॉफी पीने की आदत भी है. हम सभी ने ये आदतें ये जानते हुए अपनाई  कि ये इन आदतों से हमारे पर्यावरण पर गहरा और विपरीत असर पड़ेगा. अब तो सहित्य में भी पर्यावरण संकट को दिखाया जाने लगा है, फिल्म कौन कितने पानी में हो या साल 2017 में आई फिल्म कड़वी हवा इन फिल्मों में पर्यावरण संकट का चलचित्र दिखाया गया है, जो वाकई में असल संकट है. 

कुछ फसलें ऐसी हैं जिनकी खेती पर्यावरण के लिए नुकसानदायक है. जैसे कि कॉफी. लेकिन फिनलैंड के वैज्ञानिकों ने कॉफी उगाने की एक ऐसी तकनीक खोज निकाली है जो पर्यावरण के लिए अच्छी होने के साथ साथ स्वाद में भी एकदम रियल कॉफी जैसी लगेगी. फिनलैंड के इन वैज्ञानिकों ने यह कॉफी ‘सेल कल्चर्स' तकनीक का इस्तेमाल करके बनाई है और दावा किया जा रहा है कि इसका स्वाद और गंध दोनों ही असल कॉफी से मिलती जुलती हैं. फिनलैंड के वीटीटी टेक्निकल रिसर्च के शोधकर्ताओं का कहना है शायद उन्हें पर्यावरण के लिए कम नुकसानदायक कॉफी बनाने की तकनीक मिल गई है. इस तकनीक के जरिए कॉफी बीन्स की खेती किए बगैर ही कॉफी बनाई जा सकती है.

कैसे बनी लैब में कॉफी?

यह तकनीक सेल कल्चर्स पर आधारित है. इसके जरिए बायो रिएक्टर्स में न सिर्फ कृषि के बल्कि जानवरों से मिलने वाले उत्पाद भी तैयार किए जा सकते हैं. वीटीटी में इस प्रक्रिया की निगरानी करने वाले शोधकर्ता हाएकी ऐसाला कहती हैं कि हो सकता है इस तरह से बनाई गई कॉफी अभी लोगों को उतनी लजीज ना लगे लेकिन इसमें अरबों डॉलर के कॉफी उद्योग के लिए विशाल संभावनाएं हैं.

स्वाद भी एकदम असली कॉफी जैसा 

शोधकर्ता हाएकी ऐसाला कहती हैं कि इस कॉफी का स्वाद एकदम कॉफी जैसा भी नहीं होगा और होगा भी, क्योकि इसका स्वाद ऐसा है जैसे कई तरह की कॉफी मिला दी गई हो. व्यवसायिक कॉफी बनाने में हमें अभी पूरी कामयाबी नहीं मिली है लेकिन इतना तय है कि यह कॉफी जैसी है.”

वीटीटी में रिसर्च टीम की प्रमुख हाइको रिषर कहते हैं कि लैब में तैयार प्रक्रिया पर्यावरण के लिए ज्यादा फायदेमंद कॉफी बनाने का रास्ता खोलती है क्योंकि बहुत ज्यादा मांग के चलते विभिन्न देश बहुत बड़े पैमाने पर धरती का इस्तेमाल कॉफी की खेती के लिए कर रहे हैं और इस कारण जंगल काटे जा रहे हैं. प्रयोगशाला में तैयार कॉफी में कीटनाशकों व खाद का इस्तेमाल कम होता है और इसे दूर देशों के बाजारों तक ले जाने का परिवहन बचता है. जिससे पर्यावरण के साथ संसाधनों की खपत भी कम होगी. 

आगे की चुनौतियां 

सबसे बड़ी चुनौती है कि क्या कॉफी के दिवाने इसे पंसद करेगें? लेकिन जिस तरह से कॉफी के सारे कुदरती संसाधन खत्म हो रहे हैं,उसको देखते हुए यह कहना गलत भी नहीं होगा कि ये तरीका अपनाना ही पड़ेगा. इसका स्वाद और खुश्बू कॉफी जैसी होने की वजह से ये राह उतनी भी मुश्किल नहीं होगी. फिनलैंड की राजधानी हेलसिंकी में एक कैफे चलाने वाले सातू कहते हैं कि किसी दिन तो वह राह पकड़नी ही होगी. दूसरी चुनौती यूरोप में बाजार में उतारे जाने से पहले उसे ‘नोवल फूड' के तौर पर अनुमति लेनी होगी.

हालांकि प्रयोगशाला में तैयार कॉफी के सामने काफी चुनौतियां होंगी. जैसे कि यूरोप में बाजार में उतारे जाने से पहले उसे ‘नोवल फूड' के तौर पर अनुमति लेनी होगी.और सबसे बड़ी चुनौती तो यह है कि कॉफी के दीवाने क्या इसे पसंद भी करेंगे. फिनलैंड की राजधानी हेलसिंकी में एक कैफे चलाने वाले सातू कहते हैं कि किसी दिन तो वह राह पकड़नी ही होगी.