scorecardresearch

World Marathon Challenge: खेलों से नाता टूटा तो डिप्रेशन में चला गया था यह आदमी, अब सात दिन में सात मैराथन दौड़ जीता वर्ल्ड मैराथन चैलेंज... जानिए Paul Holborn ने कैसे किया यह कारनामा

हॉलबोर्न पहले पेशे से एक बॉक्सर थे. लेकिन फिटनेस और खेलों से दूर होने के बाद वह डिप्रेशन में चले गए थे. ऐसे में उनके मन में सवाल उठा, वह क्या सबसे मुश्किल काम कर सकते हैं? इस सवाल के जवाब ने उन्हें दुनिया का सर्वश्रेष्ठ मैराथन धावक बना दिया.

Photo: Instagram/pauly_holborn Photo: Instagram/pauly_holborn
हाइलाइट्स
  • वर्ल्ड मैराथन चैलेंज जीतने वाले पहले ब्रिटिशर बने

  • 40 की उम्र में जीता यह खिताब

सात दिनों से भी कम समय में सात महाद्वीपों में सात मैराथन दौड़ना. यह सुनने में असंभव लग सकता है लेकिन सैन एंटोनियो के रहने वाले पॉल हॉलबोर्न ने फरवरी में वर्ल्ड मैराथन चैलेंज (World Marathon Challenge) पूरा किया और जीता है. हॉलबोर्न मूल रूप से यूनाइटेड किंगडम के रहने वाले हैं. अपने जीवन में एक समय पर हॉलबोर्न डिप्रेशन से जूझ रहे थे. लेकिन उन्होंने डिप्रेशन को मात देकर इस कारनामे को अंजाम दिया है.

खेलों से दूर होने के बाद हुए डिप्रेस्ड
हॉलबोर्न बताते हैं कि वह पहले पेशे से एक बॉक्सर थे. लेकिन फिटनेस और खेलों से दूर होने के बाद वह डिप्रेशन में चले गए थे. ऐसे में उन्होंने मैराथन के ज़रिए फिटनेस की ओर लौटने का फैसला किया. 

केसैट के साथ एक खास बातचीत में हॉलबोर्न कहते हैं, "मैंने गूगल पर दुनिया की सबसे कठिन चुनौती खोजी और वर्ल्ड मैराथन चैलेंज सामने आया. सात मैराथन, सात महाद्वीप, सात दिन. मैंने सोचा, यह असंभव है. ऐसा कौन कर सकता है? यह नामुमकिन है. लेकिन मैं इसे तीन दिनों तक अपने दिमाग से नहीं निकाल सका. मुझे महसूस हुआ कि मुझे यह करने की ज़रूरत है."

सम्बंधित ख़बरें

19 महीने तक की तैयारी
हॉलबोर्न ने कहा कि जब उन्होंने चुनौती लेने का फैसला किया, तो उन्होंने कभी मैराथन दौड़ नहीं लगाई थी. ऐसे में उन्होंने 19 महीने पहले ट्रेनिंग शुरू की. उन्होंने टेक्सस के सैन एंटोनियो में अपनी पहली मैराथन दौड़ी. हॉलबोर्न ने कहा, "मैंने अपने जीवन में कोई दौड़ नहीं लगाई थी. मैं 27 साल की उम्र तक एक बॉक्सर था इसलिए फिटनेस से जुड़ा हुआ था." 

Paul Holborn
पुरुषों की कैटेगरी में वर्ल्ड मैराथन जीतने के बाद पॉल हॉलबोर्न

अब 40 साल के हो चुके हॉलबोर्न ने कहा कि सैन एंटोनियो रॉक-एन-रोल मैराथन सात मैराथन दौड़ने के स्तर तक पहुंचने के लिए एक अहम कदम था. लेकिन वर्ल्ड मैराथन चैलेंज असली चुनौती थी. वह कहते हैं, “एक बार जब आप दौड़ खत्म कर लेते हैं और बाकी लोग भी मैराथन पूरी कर लेते हैं तो आपको बस में लौटना होता है. आधे घंटे में आप हवाई अड्डे पर होते हैं."

अंटार्टिका से शुरू हुआ चैलेंज, अमेरिका पर खत्म
इस चुनौती में पॉल की पहली मैराथन 31 जनवरी को अंटार्कटिका में थी. इसके बाद उन्होंने साउथ अफ्रीका के केप टाउन, ऑस्ट्रेलिया के पर्थ, एशिया के दुबई, यूरोप के मैड्रिड, साउथ अमेरिका के फोर्टालेज़ा और नॉर्थ अमेरिका के फ्लोरिडा में मैराथन में हिस्सा लिया. इस तरह वह सात महाद्वीपों की सात मैराथन में शामिल हुए. 

यह चुनौती पांच फरवरी को सुबह चार बजे फ्लोरिडा के साउथ बीच पर खत्म हुई. हॉलबोर्न ने अलग-अलग महाद्वीपों में मैराथन दौड़ने के अनुभव पर कहा, "कभी-कभी आपको पता नहीं चलता कि यह कौन सा दिन है. आप सोचेंगे कि यह रविवार था, लेकिन यह मंगलवार की सुबह होगी. आपको नहीं पता होता कि वक्त क्या है. इसलिए कुछ दौड़ें सुबह दो बजे थीं. उनमें से कुछ रात के आठ बजे भी थीं.” 

ऐसे किया सात समंदर पार का सफर
हॉलबोर्न ने बताया कि इस चैलेंज में हिस्सा लेने वाले सभी 60 धावक एक ही प्राइवेट जेट पर थे. वे एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप तक उड़ान भर रहे थे. इस तरह वे तेजी से दुनिया भर में घूम सके और उन्हें आराम करने के लिए पर्याप्त वक्त भी मिला. हॉलबोर्न ने कहा कि इससे उन्हें फ़ायदा हुआ होगा क्योंकि उनके पास अपने शरीर को "दर्द" देने का समय नहीं था.