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भारत में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी बीमारियों में हुई है 35% की वृद्धि, जानें आप कैसे कर सकते हैं अपना बचाव

मानसिक स्वास्थ्य के लिए स्वयं की देखभाल बेहद जरूरी है. हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि अगर आपका मानसिक स्वास्थ्य अच्छा है और अगर आपका मन शांत है तो आप अपने निजी जीवन में ज्यादा प्रोडक्टिव होंगे. अधिक उत्पादक होने की संभावना रखते हैं और दूसरों के लिए एक ज्यादा सोना या नींद न आना; रात के घंटों-घंटों तक जागना और फिर नींद ने आना, ज्यादा खाना या खाने का मन नहीं करना, ये सभी छोटी छोटी चीज़ें भी आपके लिए चिंता का विषय होना चाहिए.

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हाइलाइट्स
  • मानसिक स्वास्थ्य के लिए स्वयं की देखभाल बेहद जरूरी है

  • मानसिक बीमारियां अक्सर बातचीत और परामर्श से ही ठीक हो जाती हैं

हम अक्सर इंफेक्शन और बीमारियों को आमतौर पर केवल शारीरिक बीमारियों से जोड़ते हैं. लेकिन सच यह है कि शारीरिक बीमारी कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में हमारे मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी होती है. कोविड -19 महामारी के दौरान, संक्रमण और नए-नए वायरस के चलते मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ गई हैं. द लैंसेट नामक पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, 2020 में, एंजाइटी और डिप्रेशन जैसी मानसिक बीमारियों वाले मामलों में वैश्विक स्तर पर लगभग 25% और भारत में 35% की वृद्धि हुई.

बता दें, महामारी से पहले,  2015-16 के राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण में पाया गया था कि भारत की 12% आबादी में किसी न किसी रूप में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से ग्रस्त है. लेकिन अब ये लगातार बढ़ती जा रही है. 

कोविड-19 महामारी में इसका एक अलग रूप देखने को मिला 

हालांकि, इनमें से अधिकतर स्थितियां हल्की होती हैं लेकिन 2% आबादी में मानसिक स्वास्थ्य स्थितियां होती हैं जिन्हें नियमित उपचार की आवश्यकता होती है. कोविड-19 महामारी में इसका एक अलग रूप देखने को मिला है. उन लोगों के अलावा, जो लोग कोविड-19 पॉजिटिव थे, वायरस का डर, अनिश्चितता और सभी के बीच आशंका, बीमारी और प्रियजनों की मृत्यु, आय के कम स्रोत, उपचार की लागत और कई अन्य कारकों ने मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित किया है.

किस तरह करें ट्रीट 

2021 में, हमने व्यक्तिगत रूप से अपनी चिकित्सा पद्धति में इस वृद्धि को देखा है. इन मामलों में पुरानी समस्याएं फिर से उभरना और नई शिकायतें शामिल थीं, जिनमें बहुत हल्की से लेकर गंभीर स्थितियां भी शामिल थीं. साथ ही, ओमिक्रॉन के आने से लोगों में तनाव, आशंका और चिंता पैदा हो गई है. लेकिन हम मानसिक स्वास्थ्य जैसे चुनौतियों को किस तरह ट्रीट कर सकते हैं? इसका जवाब है; व्यक्तिगत स्तर पर, मानसिक स्वास्थ्य के विभिन्न पहलुओं के बारे में जागरूकता बढ़ाकर और सेल्फ केयर यानि आत्म-देखभाल का संकल्प लेकर.  मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच बढ़ाने के लिए सामाजिक स्तर पर हमें ठोस नीतियां बनाने की जरूरत है. 

सेल्फ केयर बेहद जरूरी 

याद रखने वाली पहली बात यह है कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए स्वयं की देखभाल बेहद जरूरी है. हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि अगर आपका मानसिक स्वास्थ्य अच्छा है और अगर आपका मन शांत है तो आप अपने निजी जीवन में ज्यादा प्रोडक्टिव होंगे. अधिक उत्पादक होने की संभावना रखते हैं और दूसरों के लिए एक ज्यादा सोना या नींद न आना; रात के घंटों-घंटों तक जागना और फिर नींद ने आना, ज्यादा खाना या खाने का मन नहीं करना, ये सभी छोटी छोटी चीज़ें भी आपके लिए चिंता का विषय होना चाहिए. 

बातचीत और परामर्श 

मानसिक बीमारियां अक्सर बातचीत और परामर्श से ही ठीक हो जाती हैं. ज्यादातर मामलों में किसी प्रकार के मेडिकेशन या ट्रीटमेंट की जरूरत नहीं पड़ती है. टेलीकंसल्टेंसी की मदद से मानसिक रोगी डॉक्टर से परामर्श ले सकता है, बात कर सकता है और अपनी परेशानी और हल बता और जान सकता है. ये माध्यम सबसे ज्यादा फायदेमंद उन लोगों के लिए है जो गोपनीयता चाहते हैं और सभी से अपनी बातें शेयर करने से बचते हैं.

बच्चों में जागरूकता 

किसी भी बीमारी के बारे में जानने के लिए जरूरी है कि उसे लेकर समाज में जागरूकता लाई जाए. इसकी शुरुआत बचपन से ही स्कूलों के माध्यम से होनी चाहिये. इसकी मदद से बच्चे बचपन में ही इसके ट्रीटमेंट और परेशानियों के बारे में जान पाएंगे. कई बच्चे मानसिक रोग से जूझ रहे होते हैं लेकिन उनके बारे में उनके आसपास और करीबियों को भी नहीं पता होता है, जिसकी वजह से बाद में जाकर वह ट्रामा बन जाता है और बड़े होकर परेशानी करता है. इसलिए जरूरी है कि बच्चों को इसे लेकर जागरूक किया जाए. 

जनरल अस्पतालों में भी हों मेंटल हेल्थ यूनिट

बड़े-बूढ़े अक्सर अपनी परेशानियां बताने में झिझकते हैं. वे लोग चुप चाप सब सहन करते रहते हैं. इसका बहुत बड़ा कारण भी जागरूकता ही है. कई लोग मानसिक बीमारियों वाले अस्पतालों में जाने से डरते हैं. उन्हें लगता है कि दूसरे लोग उन्हें जज करेंगे और पागल बुलाएंगे. अगर सामान्य अस्पतालों में मेंटल हेल्थ यूनिट होगी तो वे लोग इसे नॉर्मल समझेंगे और किसी भी अन्य बीमारी की तरह इसका ट्रीटमेंट करवाएंगे.

क्या हो सकते हैं सिम्पटम्स?

इसके कई सिम्पटम्स हो सकते हैं. जैसे पहले जिस काम में आपका मन लगता था अब नहीं लगना, ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई, बार-बार नकारात्मक विचार, दिन भर चलने वाली उदासी, और लगातार कम एनर्जी फील करना. अगर इनमें से कोई भी या ज्यादा लक्षण 10 दिनों या उससे अधिक समय तक रहते हैं, तो आपको मेंटल हेल्थ कंसलटेंट से सलाह लेनी चाहिए.  

कहते हैं ‘प्रिवेंशन इज बेटर देन क्योर’ यानि किसी बीमारी की रोकथाम, इलाज से बेहतर है. ये कहावत दोनों शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर लागू होती है. नियमित व्यायाम या फिजिकल एक्टिविटी, स्वस्थ भोजन करना, सोने का समय निर्धारित करना और सोने के लिए पर्याप्त घंटे, ये सभी तनाव से लड़ने और कम करने में मदद करते हैं. होने स्क्रीन टाइम को कम करें, प्राणायाम, योग और किसी भी प्रकार का ध्यान करना, और परिवारों और दोस्तों के साथ जुड़े रहना, ये सभी आपको मानसिक तौर पर स्वस्थ रहने में मदद कर सकते हैं. 

(नोट: यहां दिए गए सभी उपाय आपको फायदा पहुंचाएंगे, लेकिन कुछ भी अपनाने से पहले डॉक्टर से परामर्श  की सलाह दी जाती है)