अमेरिका में इन दिनों लोग सड़कों पर उतरे हैं. अमेरिका में गर्भपात कानून यानी अबॉर्शन लॉ को लेकर बवाल मचा हुआ है. दरअसल अमेरिका में सोमवार को पोलिटिको नाम के एक जर्नल ने अपनी रिपोर्ट से धमाका कर दिया. पोलिटिको ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया कि उसके पास सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का ड्राफ्ट है, जिसे औपचारिक तौर पर सुनाया जाना अभी बाकी है. पोलिटिको का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट गर्भपात पर 1973 के ऐतिहासिक रो बनाम वेड फैसले को 'पलटने' जा रहा है. यानी अब अमेरिका में भी गर्भपात करना बैन हो जाएगा.
खास बात ये है कि बेंच में जजों का बहुमत महिलाओं से ये अधिकार छीने जाने के पक्ष में है. ड्राफ्ट के मुताबिक कोर्ट ने अनचाहे गर्भ से छुटकारे को महिलाओं का संवैधानिक अधिकार बताया था. अब पोलिटिको इस रिपोर्ट के बाद गर्भपात के अधिकार के समर्थक और एंटी-अबॉर्शन एक्टिविस्ट अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर उतर आए. अब अगर जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक फैसला आता है तो लगभग 3.6 करोड़ महिलाओं से गर्भपात का अधिकार छिन जाएगा. तो चलिए आपको बताते हैं कि रो बनाम वेड फैसला आखिर क्या है.
क्या है रो बनाम वेड फैसला?
दरअसल ये ऐतिहासिक फैसला नॉर्मा मैककॉर्वी नाम की एक महिला की याचिका पर आया था. अदालती की कार्यवाही में उनका नाम जेन रो दिया गया था. मैककॉर्वी 1969 में अपना गर्भपात कराना चाहती थीं. उनके पहले से ही दो बच्चे थे. मैककॉर्वी टेक्सास में रहती थी, जहां पर अबॉर्शन कराना गैर कानूनी थी. कानून के मुताबिक इसकी इजाजत तभी दी जा सकती थी, जब महिला या बच्चे की जान को खतरा हो. मैककॉर्वी ने फेडरल कोर्ट में याचिका दाखिल कर दावा किया कि टेक्सास का गर्भपात कानून गैर-संवैधानिक है. इस मुकदमे में बचाव पक्ष में तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी हेनरी वेड का नाम था. उसके बाद जनवरी 1973 में सुप्रीम कोर्ट ने मैककॉर्वी के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि गर्भ का क्या करना है, गर्भपात कराना है या नहीं, ये तय करना महिला का अधिकार है. रो बनाम वेड का ये फैसला ऐतिहासिक रहा, जिससे अमेरिका में महिलाओं को सुरक्षित अबॉर्शन कराने का अधिकार मिला.
अमेरिका में क्यों मच रहा बवाल?
गर्भपात को लेकर अमेरिका में हंगामा मचा हुआ है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का ड्राफ्ट लीक होने के बाद लोग सड़कों पर उतर आए हैं. हालांकि राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इसे लेकर लोगों को सांत्वना दी है कि 'ये महिला का मौलिक अधिकार है कि वह तय कर सके कि वह अपने गर्भ का क्या करे.' वैसे अगर रो बनाम वेड फैसला पलटता है तो भी अमेरिका के सभी राज्यों में अबॉर्शन एकदम से गैरकानूनी नहीं हो जाएगा. ये राज्य खुद तय करेंगे कि उन्हें अपने यहां अबॉर्शन को गैरकानूनी रखा है या नहीं. लिहाजा अमेरिकी महिलाओं को चिंता करने की ज्यादा जरूरत नहीं है. हालांकि आशंका ये भी है कि अलबामा, जॉर्जिया, इंडियाना समेत 23 अमेरिकी राज्य गर्भपात को बैन करने वाले हैं.
16 देशों में पूरी तरह बैन है अबॉर्शन
अगर ये फैसला पलटता है तो अमेरिका भी उन-देशों में शामिल हो जाएगा जिसने गर्भपात को लेकर नियमों को सख्त किया है. 1994 के बाद से सिर्फ तीन देशों पोलैंड, अल सल्वाडोर और निकारगुआ ने ही गर्भपात कानूनों को सख्त किया है. वहीं मिस्र, इराक, फिलीपींस, लाओस, सेनेगल, निकारगुआ, अल सल्वाडोर, होंडुरास, हैती और डोमिनिकन रिपब्लिक समेत दुनिया के 16 देशों में गर्भपात पूरी तरह से बैन हैं. हालांकि 36 देश ऐसे भी हैं जहां गर्भपात बैन तो है लेकिन अगर मां की जान बचाने के लिए अबॉर्शन किया जा रहा हो, तो उसकी अनुमति है.
भारत में क्या है कानून?
भारत में गर्भपात को लेकर कानून सख्त नहीं है. भारत में अलग-अलग परिस्थितियों में महिलाओं को सुरक्षित गर्भपात का कानूनी अधिकार मिला हुआ है. मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (एमटीपी) एक्ट 1971 में पास हुआ. उसके बाद 2021 में इसमें संशोधन किया गया जिसके तहत कुछ विशेष श्रेणी की महिलाओं के मेडिकल गर्भपात के लिए गर्भ की समय सीमा को 20 सप्ताह (5 महीने) से बढ़ाकर 24 सप्ताह (छह महीने) कर दिया गया है.
भारत में 24 सप्ताह तक करा सकते हैं गर्भपात
संशोधित कानून के अनुसार रेप पीड़ित, नजदीकी रिश्तेदार द्वारा यौन उत्पीड़न की शिकार या नाबालिग 24 हफ्ते तक की प्रेग्नेंसी को मेडिकली टर्मिनेट करा सकती हैं. इसके अलावा वो महिलाएं जो गर्भावस्था के दौरान विधवा हो गई हो या तलाक हो गया हो उन्हें भी अबॉर्शन कराने की अनुमति है. अगर भ्रूण में कोई गंभीर बीमारी या विकृति हो जिससे मां या बच्चे की जान को खतरा हो तो या फिर उसके जन्म लेने के बाद उसमें मानसिक या शारीरिक विकृति आने, गंभीर विकलांगता का शिकार होने का खतरा हो तब भी महिला 24 हफ्ते के अंदर गर्भपात करा सकती है.