गुजरात के बनासकांठा में डीसा के पास एक गांव की तीन साल की बच्ची ने पिछले साल अक्टूबर में हुई एक दुर्घटना में अपना पैर खो दिया था. लेकिन अब वह अपने पैरों पर फिर से चल पा रही है. बताया जा रहा है कि खेत में खेलते समय मशीन में फंसने के कुछ ही सेकंड बाद लड़की के पैर कट गए.
इस घटना ने बच्ची के माता-पिता का दिल दहला दिया लेकिन उन्होंने भरोसा नहीं छोड़ा. बच्ची के माता-पिता सर्जरी के विकल्प तलाशने के लिए मेहसाणा के एक अस्पताल में चले गए. अहमदाबाद के ज़ाइडस हॉस्पिटल के ऑन्कोप्लास्टिक सर्जन डॉ. रघुवीर सोलंकी ने कहा कि बच्ची के माता-पिता ने समझदारी दिखाई और बिना समय गंवाए बच्ची को मेडिकल हेल्प के लिए केर आए.
डॉक्टरों ने की सर्जरी
मेहसाणा के सर्जन ने इस मामले को समझा और बच्ची को अहमदाबाद के ज़ाइडस अस्पताल में रेफर कर दिया. धूल से सने बच्ची के पैर पॉलिथीन बैग में थे. सावधानी और आशा के साथ, डॉक्टरों ने घटना के छह घंटे बाद रात 11 बजे सर्जरी शुरू की. सर्जरी डॉ. सोलंकी और डॉ. जतिन भोजानी के नेतृत्व वाली टीम ने की. आज, दुर्घटना के चार महीने बाद, लड़की ने चलना शुरू कर दिया है, जिससे सर्जन काफी संतुष्ट हैं.
डॉ. सोलंकी ने इसे आयु वर्ग के लिए सफल बाइलेटेरल फुट रिप्लांटेशन का एक दुर्लभ मामला बताया. उन्होंने और उनकी टीम ने इससे पहले शहर में एक सड़क दुर्घटना में घायल हुए एक युवक के पैर दोबारा जोड़े थे.
क्या है इन मामलों में चुनौती
डॉक्टरों का कहना है कि ऐसे मामलों में चुनौती नस ग्राफ्ट का उपयोग करके और नसों को जोड़कर सूक्ष्म रक्त वाहिकाओं (माइक्रो ब्लड वेसल्स) को फिर से जोड़ना है ताकि सेंसेशन फिर से आ सके. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि डॉक्टरों को यह सुनिश्चित करना था कि जैसे-जैसे वह बड़ी हो, उसके पैर भी बढ़ते रहें. स्थिरता के लिए एक हड्डी का निर्धारण भी जोड़ा गया था.
विशेषज्ञों ने कहा कि एम्प्यूटेशन के मामले में, कटे हुए अंग को संरक्षित करने के लिए अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि एक्सपोज्ड पार्ट संक्रमित न हो. उन्होंने कहा कि जब संक्रमण ब्लड स्ट्रीम के माध्यम से फैलता है तो मुश्किलें होती हैं.