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Research: आपको पूरी रात अच्छी तरह सोने के बाद भी दिन में हमेशा आती है झपकी और नींद, हो सकता है न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर, जानें क्या कहता है रिसर्च?

न्यूरोलॉजिकल स्लीप डिसऑर्डर का कारण जानना और इसका सही इलाज करना बहुत जरूरी है. ताकि इससे पीड़ित लोगों की लाइफ क्वालिटी में सुधार हो सके. इसका पता स्लीप टेस्ट से लगाया जा सकता है. 

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हाइलाइट्स
  • 59 साल की उम्र के 792 लोगों के स्लीप डेटा की जांच 

  • न्यूरोलॉजिकल स्लीप डिसऑर्डर का इलाज जरूरी

शरीर को तमाम बीमारियों से बचाने के लिए हेल्‍दी नींद लेना बहुत जरूरी है. रात में आमतौर पर 7 से 9 घंटे की नींद लेना अच्‍छा माना जाता है. जब आप नींद पूरी करते हैं तो बेहतर तरीके से अपने काम कर पाते हैं. हालांकि अधिक नींद आना एक सामान्य समस्या है.  यदि आपको रात को अच्छी नींद लेने के बाद भी दिन में बार-बार झपकी ओर नींद आ रही है तो इसका मतलब है कि आपको आइडियोपैथिक हाइपरसोम्निया नामक न्यूरोलॉजिकल स्लीप डिसऑर्डर हो सकता है. आइए जानते हैं इस संबंध में रिसर्च क्या कहता है?

नींद टूटने पर भी उलझन में रहते हैं 
न्यूरोलॉजिकल स्लीप डिसऑर्डर से पीड़ित लोगों को ऐसा लगता है जैसे वे स्लीप डिप्राइव्ड हों या फिर नींद टूटने पर भी वे उलझन में रहते हैं. वे हमेशा झपकी लेते रहते हैं. हाल ही में हुए एक शोध के मुताबिक, यह बीमारी पहले सोचे जाने के मुकाबले कहीं ज्यादा कॉमन है. यह रोज की गतिविधियों को करना मुश्किल बना देती है और जीवन की क्वालिटी को खराब करती है. शोधकर्ताओं का कहना है कि इस बीमारी की पहचान और इलाज करना बेहद जरूरी है. इस शोध से इसके कारण और नए इलाज खोजने में मदद मिलेगी. 

792 लोगों के स्लीप डेटा की जांच 
इस बात का खुलासा विस्कॉन्सिन स्लीप कोहोर्ट स्टडी में आइडियोपैथिक हाइपरसोम्निया का प्रीवैलेंस एंड क्रॉस नामक एक अध्ययन में हुआ है. यह अमेरिकन एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजी की मेडिकल जर्नल न्यूरोलॉजी के इसी महीने ऑनलाइन अंक में प्रकाशित हुआ था. इस शोध में पाया गया कि ऐसी स्थिति आइडियोपैथिक हाइपरसोम्निया नामक न्यूरोलॉजिकल स्लीप डिसऑर्डर का संकेत हो सकती है. यह बीमारी इपिलेप्सी और स्किज़ोफ्रेनिया जितनी ही कॉमन है. इससे ग्रस्त लोगों को अक्सर स्लीप डिप्राइव्ड जैसा महसूस होता है. इसमें 792 लोगों के स्लीप डेटा की जांच की गई, जिनकी औसत उम्र 59 साल थी.

यह बीमारी मिर्गी, बाइपोलर डिसऑर्डर और स्किजोफ्रेनिया जितनी ही है कॉमन 
इस अध्ययन के प्रमुख लेखक डेविड टी प्लांट ने कहा, आइडियोपैथिक हाइपरसोम्निया कितना कॉमन है, ये पता लगाना मुश्किल रहा है. क्योंकि इसके लिए महंगे स्लीप टेस्ट कराने पड़ते हैं जो टाइम लेने वाले भी होते हैं. हमने एक बड़े स्लीप स्टडी के डेटा का विश्लेषण किया. इससे पता चला कि यह बीमारी पहले सोचे जाने के मुकाबले कहीं ज्यादा कॉमन है. यह मिर्गी, बाइपोलर डिसऑर्डर और स्किजोफ्रेनिया जितनी ही कॉमन है.

क्या है इलाज
शोधकर्ताओं का कहना है कि इस बीमारी का कारण जानना और इसका सही इलाज करना बहुत जरूरी है. ताकि मरीजों की लाइफ क्वालिटी में सुधार हो सके. इसका पता स्लीप टेस्ट से लगाया जा सकता है. इसे कई दवाओं से ठीक किया जा सकता है जो नींद खोलने में मदद करती हैं. ये दवाएं मरीज की लाइफ क्वालिटी को बेहतर बना सकती हैं. इस रोग में किसी को घबराना नहीं चाहिए और जरूरी भावनात्मक समर्थन और देखभाल की व्यवस्था करनी चाहिए. ऐसे मामलों में कई लोग ठीक भी हो जाते हैं. उम्र और स्थिति के हिसाब से इस बीमारी का इलाज किया जाता है. 

इस कारण हो सकती है ये बीमारी
डॉक्टरों के अनुसार बहुत अधिक नींद से जुड़ी बीमारियां अक्सर सामान्य स्वास्थ्य समस्याओं जैसे लीवर या किडनी की समस्याओं, या मस्तिष्क से संबंधित समस्याओं जैसे मनोभ्रंश और अवसाद जैसे मानसिक विकारों से आती हैं. पारिवारिक इतिहास और जीन इसके कारक हो सकते हैं.