कोरोना के बढ़ते हुए मामलों के बीच एक अच्छी खबर आई है. AIIMS के शोध के अनुसार बीसीजी का टीका कोरोना को भी रोकने में कारगर है. शोध में विश्व स्वास्थ्य संगठन से जुड़े 168 देशों के टीबी रजिस्ट्री और बीसीजी टीका लगाने के आंकड़े शामिल किए गए. जिन देशों में टीबी का रोग ज्यादा था और बीसीजी के टीके अधिक लगवाए गए थे वहां कोरोना के मामले कम देखने को मिले. एक अन्य अध्ययन में यह सामने आया था कि जिन देशों में टीबी के लिए बीसीजी का टीका अनिवार्य है, वहां पर कोरोना वायरस का प्रकोप कम देखने को मिला.
बीसीजी का टीका क्या है
बीसीजी वैक्सीन को बेसिल कालमेट ग्युरिन (Bacille Calmette-Guerin) के नाम से जाना जाता है. टीबी और सांस संबंधी बीमारियों को रोकने के लिए बीसीजी का टीका लगवाया जाता है. इस वैक्सीन को 1921 में विकसित किया गया था. बीसीजी का टीका दुनिया के कई देशों में लगाया जाता है. यह टीका दिमागी बुखार और टीबी जैसी गंभीर बीमारियों से बचाने का काम करता है और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है.
कब लगाया जाता है बीसीजी का टीका?
भारत में शिशु टीकाकरण में बीसीजी के टीके का इस्तेमाल किया जाता है. यानी की बच्चे के जन्म के बाद लगने वाले कुछ टीकों में बीसीजी का टीका भी है. इस टीके की पहली खुराक बच्चे के जन्म के 24 घंटे के भीतर लगाई जानी चाहिए. आमतौर पर बीसीजी का टीका जन्म के 6 महीने तक लगाना सही माना जाता है लेकिन अगर जन्म के यह टीका बच्चे को नहीं लग पाया है तो उसे 5 साल की उम्र तक यह टीका लगवाया जा सकता है.
15 साल तक असरदार रहता है बीसीजी का टीका
भारत के टीकाकरण कार्यक्रम के अनुसार देश में जन्म लेने वाले सभी शिशुओं को जन्म लेने के 24 घंटे के भीतर बीसीजी का टीका, पोलियो की जीरो खुराक और हेपेटाईटिस बी का टीका लग जाना चाहिए. बीसीजी के टीके की मदद से लोगों में ऐसी रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित की जा सकती है, जो अन्य बीमारियों से लड़ने में मददगार साबित हो. बीसीजी का टीका इसके दिए जाने के समय से लेकर 15 वर्ष बाद तक टीबी की गंभीर बीमारी से बचाता है.