scorecardresearch

Positive Story: चायवाले की बच्ची की जिंदगी बचाने में BHU अस्पताल ने खर्च किए लगभग 60 लाख रुपए, 547 दिन से है भर्ती

मासूम बच्ची को बचाने में 60 लाख रुपए भी खर्च हो चुके हैं. इसका परिणाम यह हुआ कि बच्ची की हालत में अब सुधार हो रहा है और उम्मीद है कि मौत के मुंह से लौटी बच्ची एक महीने बाद ठीक भी हो जाएगी.  

बच्ची की जिंदगी बचाने की पहल बच्ची की जिंदगी बचाने की पहल
हाइलाइट्स
  • BHU अस्पताल ने खर्च किए लगभग 60 लाख रुपए

  • 547 दिन से है भर्ती

सरकारी अस्पतालों में तमाम दिक्कतों, संसाधन की कमी और जगह के अभाव के बावजूद भी आज भी डॉक्टरों को ही भगवान के बाद दूसरा मसीहा माना जाता है. और इसके पीछे समय-समय पर कई ऐसी नजीर समाज में पेश होती है जो इस कथन को सिद्ध साबित करती है. ऐसा ही कुछ किया है वाराणसी के बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी ट्रॉमा सेंटर के चिकित्सकों ने भी जहां बिहार के एक गरीब चाय वाले की 10 साल की बच्ची का डॉक्टर पिछले 547 दिनों से इलाज कर रहें हैं. वो भी निशुल्क. मासूम बच्ची को बचाने में 60 लाख रुपए भी खर्च हो चुके हैं. इसका परिणाम यह हुआ कि बच्ची की हालत में अब सुधार हो रहा है और उम्मीद है कि मौत के मुंह से लौटी बच्ची एक महीने बाद ठीक भी हो जाएगी.  

शुरुआत में बच्ची को लगाए गए टांके  

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के चिकित्सा विज्ञान संस्थान स्थित ट्रॉमा सेंटर में 28 फरवरी 2022, को एक बच्ची प्रिया को भर्ती किया गया था. बिहार के रोहतास जिले के करगहर की रहने वाली बच्ची प्रिया 8 वर्ष की उम्र में स्कूल में गिर गई थी. जिससे उसकी सर्वाइकल स्पाइन में गंभीर चोट आई थी और खून बहने लगा था. शुरुआती इलाज में उसे पास के क्लिनिक में टांके लगाए गए. इसके बाद भी बच्ची की हालत में सुधार देखने को नहीं मिला था. उसकी कमजोरी बढ़ती चली गई और चलने-फिरने में दिक्कत आने लगी. बिहार स्थित सासाराम के अस्पताल में मरीज का सीटी-स्कैन और एमआरआई करने के पश्चात चिकित्सकों ने ऑपरेशन का सुझाव दिया.  इसके बाद मरीज को 28 फरवरी, 2022 को ट्रॉमा सेंटर, बीएचयू में लाया गया था. बच्ची को न्यूरो सर्जरी विभाग के प्रो. कुलवंत की निगरानी में भर्ती किया गया. 

बच्ची 8 महीने रही वेंटिलेटर सपोर्ट पर 

अप्रैल 2022 में ट्रॉमा सेंटर स्थित न्यूरो ओटी में बच्ची का ऑपरेशन किया गया, जिसके बाद उसे गहन चिकित्सा इकाई यानी ICU में स्थानांतरित कर दिया गया और वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया. सर्जरी के बाद यह बच्ची लगभग 8 महीने से वेंटिलेटर सपोर्ट पर रही और कोई गतिविधि नहीं कर पा रही थी. लेकिन चिकित्सकों की मेहनत, बेहतरीन उपचार और देखभाल के चलते बच्ची की हालत में काफी सुधार हुआ है और अब उसे 1-2 घंटे के लिए रुक-रुक कर ही वेंटिलेटर सहायता की आवश्यकता होती है. एनेस्थीसिया विभाग की प्रो. कविता ने बताया कि बच्ची न सिर्फ अपने माता पिता से संवाद कर पा रही है, बल्कि खाना भी खा रही है तथा व्हील चेयर की सहायता से गतिविधि भी कर पा रही है. उन्होंने बताया कि यह एक दुर्लभ मामला है जिसमें मरीज की इच्छाशक्ति और जज़्बे और चिकित्सकीय देखभाल और इलाज से आश्चर्यजनक रूप से बच्ची की हालत में सुधार देखने को मिला है.

बच्ची को अस्पताल में भी मिल रहा है खूब प्यार 

वहीं चाय विक्रेता मुन्ना बच्ची के इलाज से काफी खुश हैं. मुन्ना के मुताबिक वे डेढ़ साल से BHU के ट्रामा सेंटर में अपनी बच्ची का इलाज करा रहें, लेकिन कभी भी उन्हें दिक्कत नहीं आई. डॉक्टरों के इलाज के साथ ही उनकी बच्ची प्रिया को प्यार-दुलार भी अस्पताल से मिलता है. पैसे के अभाव के बावजूद कभी भी इलाज रुका नहीं. 

वहीं BHU ट्रॉमा सेंटर प्रभारी प्रो सौरभ सिंह की माने तो बेड, जांच, और इलाज को मिलाकर वेंटिलेटर पर रहने वाले मरीज के पीछ प्रतिदिन का खर्च औसतन 10 हजार रुपए आता है. प्रिया 18 महीने यानी 547 दिन वेंटिलेटर पर रही है. इस लिहाज से 55 लाख रुपए खर्च हो चुके हैं. तो वहीं लगभग 6 लाख रुपए बच्ची प्रिया के माता-पिता और परिजनों के रहने और खानपान में भी खर्च हुए है.