दुनिया की अलग-अलग लैब्स में कोविड-19 के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन के प्रभाव को कम करने के लिए काम चल रहा है. इसी कड़ी में अब वैज्ञानिकों को एक बड़ी सफलता मिली है. वैज्ञानिकों ने ऐसी एंटीबॉडी की पहचान की है जो ओमिक्रॉन और कोरोनावायरस के दूसरे वेरिएंट्स के प्रभाव को बेअसर कर देती है. इसमें शरीर की कुछ ऐसी साइट्स को टारगेट किया जायेगा जिनपर वायरस के म्यूटेट होने का कोई फर्क नहीं पड़ता है.
नेचर जर्नल में प्रकाशित इस रिसर्च से वैक्सीन और एंटीबॉडी ट्रीटमेंट को डिज़ाइन करने में मदद मिल सकती है. ये न केवल ओमिक्रॉन के ऊपर बल्कि भविष्य में आने वाले नए कोरोना वायरस के वेरिएंट्स के खिलाफ प्रभावी होंगे.
कंजर्व्ड साइटों को किया जायेगा टारगेट
यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन स्कूल ऑफ मेडिसिन में एसोसिएट प्रोफेसर डेविड वेस्लर कहते हैं, "यह खोज हमें बताती है कि स्पाइक प्रोटीन पर इन कंजर्व्ड साइटों को टारगेट करने वाली एंटीबॉडी पर ध्यान केंद्रित करके हम ओमिक्रॉन के प्रभाव को निष्क्रिय कर सकते हैं.”
ओमिक्रॉन वेरिएंट की अगर बात करें, तो इसमें स्पाइक प्रोटीन में लगभग 37 म्यूटेशन की संख्या अधिक होती है. इन्हीं की मदद से वायरस किसी भी इंसान की सेल्स में प्रवेश करता है और फिर संक्रमित कर देता है.
एंटीबॉडीज को कैसे करता है ओमिक्रॉन प्रभावित?
वेस्लर ने आगे बताया कि इस रिसर्च के दौरान हम जिस मुख्य सवाल का जवाब ढूंढ रहे थे, वह यह था कि आखिर ओमिक्रॉन वेरिएंट के स्पाइक प्रोटीन में जो म्यूटेशन हो रहा है वह सेल को बांधने और इम्यून सिस्टम द्वारा जो एंटीबॉडीज बनाई जा रही है उसकी क्षमता को कैसे प्रभावित करता है.
प्रभाव जानने के लिए बनाया स्यूडोवायरस
सबसे पहले इस म्यूटेशन को जानने के लिए शोधकर्ताओं ने स्यूडोवायरस (फेक वायरस) बनाया जो इसकी सतह पर स्पाइक प्रोटीन बना सके. ये ठीक ऐसा ही था जैसे कोरोना वायरस स्पाइक प्रोटीन बनाता है. इसके बाद उन्होंने स्यूडोवायरस बनाया जिसमें ओमिक्रॉन म्यूटेशन के साथ स्पाइक प्रोटीन थे.
शोध में उन्होंने पाया कि महामारी की शुरुआत में अलग किए गए वायरस में पाए जाने वाले स्पाइक प्रोटीन की तुलना में ओमिक्रॉन वेरिएंट का स्पाइक प्रोटीन 2.4 गुना बेहतर ढंग से सेल को बांधता है.
रिसर्च में क्या आया सामने?
इसके बाद शोधकर्ताओं ने यह देखा कि वायरस के पहले के आइसोलेट्स के खिलाफ एंटीबॉडी कितनी अच्छी तरह से ओमिक्रॉन वेरिएंट से सुरक्षित है.
इसमें उन रोगियों की एंटीबॉडीज का उपयोग किया गया जो या तो वायरस के पुराने वेरिएंट से संक्रमित थे, या फिर वायरस के पहले के वेरिएंट के खिलाफ उन्हें वैक्सीन दी गई थी, या जो लोग पहले इन्फेक्टेड हो गए थे और बाद में उन्हें टीका लगाया गया था.
टीम ने पाया कि उन लोगों की एंटीबॉडी जो पहले के वायरस से संक्रमित थे या जिन्हें वैक्सीन लगाई जा चुकी थी सभी की वायरस के संक्रमण को रोकने की क्षमता कम हो गई थी.
जो लोग संक्रमित होकर ठीक हो गए थे, और फिर उन्हें वैक्सीन दी गई थी, उन लोगों में भी एंटीबॉडीज कम हो गई थीं. हालांकि, एंटीबॉडीज में लगभग पांच गुना तक कमी आई थी.
आखिर में, वे लोग जिन्हें मॉडर्न और फाइजर द्वारा बनाई गई एमआरएनए वैक्सीन की तीसरी डोज मिली थी, उनकी केवल 4 गुना ही एंटीबॉडीज में कमी आयी थी.
वेस्लर कहते हैं, "इससे पता चलता है कि एक तीसरी डोज वास्तव में, ओमिक्रॉन वेरिएंट के खिलाफ प्रभावी है.
सोट्रोविमैब नामक एंटीबॉडी का लगाया पता
शोधकर्ताओं ने कहा कि उन्हें सोट्रोविमैब नाम की एक एंटीबॉडी मिली है, जो ओमिक्रॉन के प्रभाव को कम कर सकती है. हालांकि, जब उन्होंने एंटीबॉडी के एक बड़े पैनल का टेस्ट किया जो वायरस के पुराने वेरिएंट्स के खिलाफ उत्पन्न हुई थीं, तो शोधकर्ताओं ने एंटीबॉडी के चार वर्गों की पहचान की जिनमें ओमिक्रॉन को बेअसर करने की क्षमता है. वेस्लर ने आखिर में कहा कि इस शोध से ये पता चलता है कि ये एंटीबॉडी वायरस को न्यूट्रलाइज कर सकती हैं.
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