
झारखंड हाई कोर्ट ने मेंटल हेल्थ से जुड़े मेडिकल खर्च को लेकर एक फैसला सुनाया है. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मानसिक बीमारी के इलाज के खर्च की भरपाई से इनकार नहीं किया जा सकता, और इसे शारीरिक बीमारी की तरह ही मान्यता दी जानी चाहिए.
यह फैसला संतोष कुमार वर्मा बनाम भारत कोकिंग कोल लिमिटेड एवं अन्य के मामले में आया, जिसमें न्यायमूर्ति आनंद सेन ने कोल इंडिया लिमिटेड की सहायक कंपनी भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (BCCL) को निर्देश दिया कि वह अपने एक रिटायर्ड एम्प्लोयी की पत्नी के मेंटल हेल्थ ट्रीटमेंट पर हुए खर्च की प्रतिपूर्ति करे.
मानसिक और शारीरिक बीमारी में भेदभाव नहीं
जस्टिस आनंद सेन ने अपने आदेश में कहा, "मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 की धारा 21 को देखते हुए, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि मानसिक और शारीरिक बीमारी के इलाज की प्रतिपूर्ति में कोई भेदभाव नहीं हो सकता."
कोर्ट ने कहा कि यह एक्ट मानसिक और शारीरिक रोगियों के बीच किसी भी प्रकार के भेदभाव को खत्म करता है और उन्हें समान स्तर पर रखता है. हाई कोर्ट ने विशेष रूप से धारा 21(4) का जिक्र किया, जिसमें कहा गया है कि हर इंश्योरेंस प्रोवाइडर को मानसिक बीमारी के इलाज के लिए उसी तरह से प्रावधान करना होगा जैसे वह शारीरिक बीमारी के लिए करता है.
बीमा कंपनियों को मेंटल हेल्थ कवर देना होगा
कोर्ट ने कहा, "मेंटल हेल्थकेयर एक्ट की यह धारा सभी हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियों को मानसिक बीमारी के इलाज को शारीरिक बीमारी के समान मानकर कवर देने के लिए बाध्य करती है. इसमें समानता की बात कही गई है. इसमें कहा गया है कि मानसिक रोगियों के इलाज में भेदभाव नहीं किया जा सकता है. किसी भी बीमा पॉलिसी में मानसिक रोगों के इलाज को बाहर करने का प्रावधान अब स्वीकार्य नहीं होगा."
कोल इंडिया लिमिटेड की पॉलिसी पर कोर्ट की आपत्ति
यह मामला कोल इंडिया लिमिटेड की 'कंट्रीब्यूटरी पोस्ट रिटायरमेंट मेडिकेयर स्कीम फॉर एग्जीक्यूटिव्स' (CPRMS) के प्रावधानों को चुनौती देने से जुड़ा था. इस प्लान के क्लॉज 6.3(i) में मेंटल हेल्थ ट्रीटमेंट के खर्च की प्रतिपूर्ति से इनकार किया गया था, जिसे कोर्ट ने मेंटल हेल्थकेयर एक्ट, 2017 के प्रावधानों के खिलाफ बताया.
कोर्ट ने यह भी कहा कि कोल इंडिया लिमिटेड और उसकी सहयोगी कंपनियां संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत "राज्य" की श्रेणी में आती हैं और उनकी पॉलिसी किसी भी कानूनी प्रावधान का उल्लंघन नहीं कर सकतीं. अगर उनकी कोई पॉलिसी संसद द्वारा पारित किसी कानून के खिलाफ पाई जाती है, तो वह खुद ब खुद ही अमान्य हो जाएगी.
मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के अधिकार की जीत
कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि CPRMS को 2008 में लागू किया गया था, जो कि मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 2017 के आने से पहले की बात है. इसलिए, इस अधिनियम के लागू होने के बाद मेंटल हेल्थ ट्रीटमेंट के खर्च को योजना से बाहर रखने वाला प्रावधान गलत है.
इस फैसले को मानसिक स्वास्थ्य के अधिकारों की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है. अब मानसिक रोगियों को भी वही सुविधाएं और फायदे मिलने चाहिए जो किसी भी शारीरिक बीमारियों के मरीजों को मिलते हैं. इस आदेश से उन सभी को जागरूकता मिलेगी, जिनके मेंटल हेल्थ ट्रीटमेंट के खर्च को अब तक बीमा कंपनियां या एम्प्लॉयर कवर करने से इनकार करती थीं.