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AI Software to diagnose Diabetic Retinopathy: चंडीगढ़ के इंजीनियरिंग कॉलेज का कमाल, अब सिर्फ आंखों की तस्वीर से पता चल जाएगी यह बड़ी बीमारी

अगर समय से Diabetes की पता न चले तो यह कई बड़ी बीमारियों की वजह बन सकती है. डायबिटीज में मरीज की आंखे भी प्रभावित होती हैं और उन्हें Diabetic Retinopathy नामक बीमारी हो सकती ह जिसके कारण कई बार आंखों की रोशनी चली जाती है.

Representational Image (Photo: Unsplash) Representational Image (Photo: Unsplash)

क्या आप सोच सकते हैं कि डॉक्टर आपकी फोटो देखें और आपको बता दें कि आपको डायबिटीज है या नहीं? यह बात सोचना तो दूर, सुनने में भी आपको मजाक लग रही होगी. लेकिन हम आपको बता दें कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से ऐसा मुमकिन होने जा रहा है. अब AI के जरिए एक फोटो को देखकर आसानी से पता चल पाएगा की मरीज को डायबिटीज है या नहीं. 

Artificial Intelligence यानी AI कैसे वरदान साबित हो सकता है, इसका उदाहरण दे रहा चंडीगढ़ में पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज. यह कॉलेज एक सॉफ्टवेयर बनाने जा रहा है जिसके जरिए मरीज़ को AI की मदद से कम समय और एक फोटो से आसानी से पता चल पाएगा कि वह मधुमेह यानी डायबीटीज से ग्रस्त है या नहीं. इस सॉफ्टवेयर के लिए इंजीनियरिंग कॉलेज ने 3 साल तक मेडिकल के क्षेत्र में लगभग 15 लाख फोटो को एनालाइज किया और अपने High End GPU's (Graphical Processing Units) की मदद से डाटा  तैयार किया है.  

कैसे काम करेगा यह सॉफ्टवेयर 
पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज की एसोसिएट प्रोफेसर पूनम सैनी ने बताया कि ब्लड शुगर यानी डाइबिटीज के मरीजों में ग्लूकोज बढ़ने के कारण लाइट सेंसिटिव टिश्यू पर असर पड़ने लगता है. ब्लड शुगर के कारण आंख की रेटिना जैसे कई अंग कमजोर पड़ने लगते हैं. ऐसी ही बीमारी है डाइबिटिक रेटिनोपैथी, जिसकी वजह से मरीज देख नहीं पाते हैं. 

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Associate Professor Poonam Saini

डायबिटीज का कई बार देरी से पता चलने के कारण मरीज आंखों की रोशनी ही खो देते हैं. इसी बीमारी के हल के लिए पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज ने 3 साल तक रिसर्च करके डाटा तैयार किया है जिससे आसानी से आंखों की एक फोटो खींचकर पता चल पाएगा की मरिज डायबीटिक रेटिनोपैथी से पीड़ित है और अब जल्द ही आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के जरिए तैयार टूल या एप से जल्द पता लगाकर इलाज संभव हो सकेगा.

99% है सक्सेस रेट 
डॉ पूनम सैनी ने बताया कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए इस बीमारी के निदान का सक्सेस रेट लगभग 99% है. आने वाले समय में बहुत ही आसानी और कम समय में बीमारी का पता चल सकेगा. जिससे डॉक्टर और मरीज, दोनों को इसका फायदा हो सकेगा. डॉक्टर सैनी ने बताया कि अभी मरीज को अस्पताल जाकर वही ट्रेडिशनल टेस्ट करवाने पड़ते हैं. जिसके बाद डॉक्टर मरीजों की जांच करता है और इस प्रोसेस में समय लगता है, साथ ही अस्पताल में भीड़ भी बढ़ती है. 

लेकिन जल्द ही सॉफ्टवेयर बनकर तैयार हो जाएगा. इसके बाद मरीज खुद आंखों की फोटो खींचकर, इसे सॉफ्टवेयर में डालकर पता कर सकेगा कि वह इस बीमारी से पीड़ित है या नहीं और इसके बाद सीधे डॉक्टर से सलाह ली जा सकती है.