अलग-अलग रिसर्च से पता चलता है कि दुनिया भर में 10-30 प्रतिशत आबादी इनसोम्निया से परेशान है, जोकि हार्ट डिजीज के बढ़ते जोखिम से जुड़ा है. नींद की यह समस्या कई बार आपको न केवल आपकी खराब लाइफस्टाइल को सुधारने का संकेत देती है, बल्कि शरीर में गंभीर बीमारियों की दस्तक की आहट भी देती है. अगर ज्यादा समय तक आपकी नींद पूरी हो पाती है तो यह आपको हृदय को प्रभावित कर सकता है.
यूके में बायोबैंक संभावित कोहोर्ट रिसर्च ने 40 से 69 साल की उम्र के 5,00,000 वयस्कों को स्लीपिंग डिसऑर्डर होने का विश्लेषण किया. इसमें दिखाया गया है कि 5 घंटे से कम सोने वाले या 9 घंटे से अधिक सोने की अवधि वाले लोगों में कार्डियोवैस्कुलर मोरबिडिटी और मृत्यु दर की अधिक घटनाएं होती हैं. कई स्टडी में यह भी पता चला है कि नींद न पूरी होने के कारण हाई ब्लड प्रेशर, मोटापा, टाइप 2 डायबिटीज से जुड़ी हुई है, जोकि हृदय रोग, स्ट्रोक और दिल के दौरे का खतरा बढ़ा सकती है.
इनसोम्निया क्या है ?
इनसोम्निया एक ऐसी कंडीशन है, जिमसें इंसान सोने की कोशिश करता है, लेकिन उसे नींद नहीं आती है. कई बार नींद लाने के लिए व्यक्ति को दवाओं का सहारा भी लेना पड़ता है. इसका कारण टेंशन, डिप्रेशन, एंजायटी या प्रोफेशनल टेंशन हो सकती है. इसके मुख्य रूप से दो प्रकार होते हैं.
एक्यूट इनसोम्निया- यह इसका एक आम प्रकार होता है. यह समस्या कुछ दिनों या हफ्तों के लिए हो सकती है. इसके कारण बहुत ही सामान्य हो सकते हैं जैसे - काम का दवाब, कोई पारिवारिक चिंता, कोई घटना या अन्य कोई समस्या.
क्रॉनिक इनसोम्निया- यह समस्या गंभीर हो सकती है. यह महीने भर या उससे भी ज्यादा दिनों तक रह सकती है. ज्यादातर मामलों में यह सेकंडरी होती है. क्रॉनिक इंसोमनिया किसी अन्य समस्या के लक्षण या साइड इफेक्ट जैसे - कुछ चिकित्सा स्थितियां, दवाएं और अन्य स्लीपिंग डिसऑर्डर आदि की ओर इशारा करता है.
इनसोम्निया से उपाय के तरीके
1- लाइफस्टाइल में बदलाव यानी समय से सोना और नियमित रूप से व्यायाम या योग करना.
2- अगर आपको डॉक्टर द्वारा कोई दवाइयों दी गई है तो उसे समय से लेना.
3- सोने से पहले ज्यादा दिमाग पर जोर न देना और किसी परेशानी को लेकर ज्यादा न सोचना.
4- रात में समय से खाना खाने के बाद थोड़ी से खुली हवा में टहलने जाना, जिससे आपको फ्रेश फील होगा.
5- रोज रात को एक ही वक्त पर सोने जाना और सुबह एक निर्धारित वक्त पर उठने की आदत डालना.
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