scorecardresearch

Explainer: दुनिया में कोरोना, एड्स की बजाय इस बीमारी से हो रही हैं ज्यादा मौतें, जानिए ट्यूबरक्लोसिस के बारे मे

कोरोना महामारी के बाद से लगातार टीबी के केस दुनिया भर में बढ़ते जा रहे हैं. सूडान और यूक्रेन जैसे देशो में इसका प्रकोप बढ़ता जा रहा है. कई जगहों पर इसका पता लगाना भी मुश्किल होता जा रहा है.

ट्यूबरक्लोसिस ट्यूबरक्लोसिस
हाइलाइट्स
  • शरीर के कई अंगों को नुकसान पहुंचाता है टीबी

  • ड्रग रेजिस्टेंट टीबी है बेहद खतरनाक

कोरोना महामारी के बाद से टीबी यानी ट्यूबरक्लोसिस लोगों के लिए एक बड़ी समस्या बना हुआ है. जो अब दुनियाभर में लोगों के लिए एड्स से ज्यादा खतरनाक साबित हो रहा है. यूक्रेन और सूडान जैसे देशों में इसके मामले और तेजी से बढ़ रहे हैं. इन जगहों पर बीमारी से पीड़ित लोगों को ट्रैक करना और नए पीड़ितों का पता लगा पाना मुश्किल हो जा रहा है. तो चलिए आपको इस बीमारी के बारे में विस्तार से बताते हैं.

क्या है ट्यूबरक्लोसिस?
ट्यूबरक्लोसिस बीमारी माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस (Mycobacterium Tuberculosis) नाम के बैक्टीरिया से होती है. ये बीमारी वैसे तो फेफड़ों को नुकसान पहुंचाती है, लेकिन ये शरीर के बाकी हिस्से जैसे- किडनी, ब्रेन, लीवर, स्पाइन को भी नुकसान पहुंचा सकती है. हालांकि ऐसा नहीं है कि हर वो व्यक्ति जिसके शरीर में ये बैक्टीरिया है, उसको टीवी के एक्टिव लक्षण होंगे. ऐसा इंफेक्शन जिसमें बीमारी के एक भी लक्षण न हो, उसे लेटेंट टीबी (Latent TB) कहते हैं.

क्या है ट्यूबरक्लोसिस के लक्षण?
ट्यूबरक्लोसिस के सबसे आम लक्षणों में से एक है बलगम आना, बलगम में खून आना, एकदम से वजन घटना, अचानक ठंड लगना. इस बीमारी के बारे में सबसे खतरनाक बात ये है कि ये हवा में फैलती है, जब एक बीमार व्यक्ति आपके सामने खांसता, या छिंकता या बोलता है तो आपको उससे खतरा हो सकता है. पलमोनरी टीबी सबसे ज्यादा खतरनाक टीबी मानी जाती है. जब इंफेक्टेड हवा में कोई स्वस्थ व्यक्ति सांस लेता है, तो वो आसानी से टीबी का शिकार हो सकता है. एक इन्फेक्टेड व्यक्ति सामानत: 5 से 15 लोगों को एक साल में बीमार कर सकता है.

कब ड्रग रेजिस्टेंट बन जाती है टीबी?
टीबी का एक प्रकार है ड्रग रेजिस्टेंट टीबी. इसका इलाज इसका इलाज 9 महीने से ऊपर और तब तक चलता है जब तक कि टीबी के बैक्टीरिया की पहचान के साथ ही सही इलाज नहीं मिल जाता है. आमतौर पर इसमें देखा जाता है कि सभी जरूरी जांचों के बावजूद बैक्टीरिया को मारने में 2 साल या उससे ज्यादा का समय लग जाता है, और मरीज को दवा पर रहना पड़ता है. इस टीबी में बैक्टीरिया किसी एंटीबायोटिक दवा के प्रति रेसिस्टेंट हो चुका होता है और इलाज चलते रहने के बावजूद उसका असर नहीं होता है और मरीज को बीमारी को फायदा नहीं मिलता है. 

कैसे लगा सकते हैं टीबी का पता?
टीबी को तीन तरीकों से डायग्नोस किया जा सकता है.
1. स्प्यूटम स्मीयर माइक्रोस्कोपी (Sputum Smear Microscopy)- इस तरीके में लंग से बलगम को सैंपल लेकर टेस्ट किया जाता है. इस सबसे स्टैंडर्ड तरीका है. हालांकि क्योंकि ये बीमारी धीरे-धीरे बढ़ने वाले बैक्टीरिया के कारण होती है, इसका रिजल्ट आने में 3 से 8 हफ्ते लग जाते हैं. या कई बार उससे ज्यादा भी समय लग जाता है. 

2. रेखा-जांच परख (Line-Probe Assays)- ये विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से सुझाया गया पहला मॉलिक्यूलर टेस्ट है. इस टेस्ट का रिजल्ट आने में मात्र से 2 से तीन दिन लगते हैं. इसमें मरीज के फेफड़ों से सैंपल लिया जाता है और स्ट्रिप्स पर टेस्ट किया जाता है, जिसे Assays कहते हैं.

3. ट्रनेट/सीबीनैट (TrueNat/CBNAAT)- डब्ल्यूएचओ द्वारा सुझाए गए इस टेस्ट में मरीज के बलगम का न्यूक्लिक-एसिड एम्प्लीफिकेशन टेस्ट कराया जाता है. इस रिजल्ट के सही आने के काफी ज्यादा चांसेस होते हैं. ये केवल टीबी का पता नहीं लगाते बल्कि इससे ड्रग रेजिस्टेंट टीबी का भी पता लगाया जा सकता है.

किस टीबी के क्या हैं लक्षण?
1. प्लयूरल टीबी- ये टीबी आम तौर पर फेफड़ों के बाहर एक पतले टिशू की टीबी को कहते हैं. इसमें सांस लेने की तकलीफ, सीने में दर्द, बलगम आना और वजन कम होना है.

2. ब्रेन टीबी- इस टीबी में ब्रेन में टीबी हो जाता है, जिसमें सिरदर्द, फोटोफोबिया, बदलती मानसिक स्थिति, गर्दन में अकड़न, मितली आना, उल्टी होना जैसे लक्षण होते हैं.

3. रीनल टीबी- टीबी के इस प्रकार में यूरिन में पस का आना या खून आना सबसे बड़ा लक्षण है. इसके अलावा बार-बार पेशाब लगना और पेट में दर्द होना जैसे लक्षण होते हैं.

4. गैस्ट्रो-इंटेस्टाइनल टीबी- इस टीबी में डायरिया, कब्ज, वजन घटना और भूख का मरना कुछ आम समस्या है. इसके अलावा पेट में दर्द, पेट में निचले हिस्से में गांठ जैसे लक्षण भी दिखते हैं.

5. बोन टीबी- इस टीबी में जोड़ों में सूजन, अकड़न, रीढ़ की हड्डी का अकड़ना, रीढ़ की हड्डी में तेज दर्द होना, और मांसपेशियों में कमजोरी होना कुछ आम समस्या है.

भारत में टीबी का इलाज
टीबी बैक्टीरिया के कारण होता है. बीमारी का पता चलते ही आइसोनियाजिड और रिफाम्पिसिन की दवा दी जाती है. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक टीबी के शुरुआती इलाज में आइसोनियाजिड और रिफैम्पिसिन दवा ठीक से काम नहीं करती तो फिर सेकंड लाइन की दवा दी जाती है जिसका कोर्स 9 महीने से लेकर 20 महीने तक का होता है. हालांकि इलाज भी कई तरह के होते हैं.

1. स्टैंडर्ड टीबी- इस तरह से टीबी का इलाज करने में 24 हफ्तों का समय लग जाता है. इसका इलाज सरकारी अस्पताल में 7 हजार से 8 हजार रुपए के बीच हो जाता है. लेकिन प्राइवेट अस्पतालों में आपको लगभग 20 हजार रुपए खर्च करने होंगे. नॉर्मल टीबी को ऐसे ठीक किया जा सकता है. 

2. एक्सडीआर टीबी (Extensively Drug Resistant TB)- क्योंकि इस ड्रग रेजिस्टेंट टीबी में मरीज को किसी एक तरह के ड्रग से फायदा नहीं होता है. इसको ठीक होने में कितना समय लगेगा, इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता है, क्योंकि ये केस से केस में फर्क करता है. इसको कराने का खर्च भारत में करीब 7 लाख रुपए तक आता है.

3. एमडीआर टीबी (Multi-Drug Resistant TB)- इस टीबी में आपको एक से ज्यादा ड्रग से रेजिस्टेंस हो जाती है, यानी आपके शरीर पर एक से ज्यादा ड्रग का असर नहीं होता है. इसके इलाज में 24 से 27 हफ्तों का समय लगता है. इसके इलाज में आमतौर 4.7 लाख तक का खर्च आता है. 

4. ओरल टैबलेट-  1. बेडाक्वीलिन- बेडाक्वीलिन एक तरह की ओरल टैबलेट है, जिससे टीबी के ठीक होने में 6 महीने का समय लगता है. हालांकि इसके साइड इफेक्ट्स भी हैं. जैसे- सीने में दर्द, बलगम में खून, दिल की धड़कन का तेज होना.

2. डेलामानिड- डेलामानिड भी ओरल टैबलेट है, इससे टीबी के ठीक होने में 6 महीने का समय लगता है. ये बैक्टीरिया की सेल वॉल को बनने नहीं देता है. हालांकि इसके साइड इफेक्ट्स में मितली आना, चक्कर आना, सिर दर्द शामिल है.