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क्या कोरोना वैक्सीन लगवाने में हिचकिचाहट के पीछे है बचपन से जुड़ा कोई ट्रॉमा? क्या कहती है स्टडी?

जितने ज्यादा ट्रॉमा उन्होंने बचपन में झेले थे, लोगों को उतना ही कम देश के हेल्थ सिस्टम पर भरोसा था. ऐसे लोगों ने कहा कि महामारी के दौरान सरकारी प्रतिबंध अनुचित थे और मास्क लगाना भी अनिवार्य नहीं होना चाहिए.

कोरोना वैक्सीन से डर कोरोना वैक्सीन से डर
हाइलाइट्स
  • बचपन में ट्रॉमा से गुजरे लोग नहीं लगवाना चाहते कोविड वैक्सीन.

  • बचपन में ट्रॉमा से गुजरे लोगों को देश के हेल्थ सिस्टम पर कम भरोसा.

कोरोना का खतरा अभी टला नहीं है. ऐसे में इस महामारी से बचाव ही प्रभावी इलाज है. कोविड संक्रमण से बचने के लिए जहां ज्यादातर देशों ने टीकाकरण शुरू कर दिया है. ऐसे में सबसे जरूरी है कि वैक्सीन की सभी प्रभावी डोज ली जाएं, पर अभी भी कई लोग ऐसे हैं जिन्होंने काओविद वैक्सीन नहीं लगवाई है और उसे लेने से डर रहे हैं. ऐसे में सवाल ये उठता है कि इस भयानक महामारी के खतरे को देखते हुए भी लोग आखिर वैक्सीन क्यों नहीं लगवाना चाहते हैं? इसके पीछे क्या वजह है? 

बचपन में डॉक्टर के हाथ में इंजेक्शन देखते ही कैसे भागकर मम्मी के पीछे चुप जाते थे. ज्यादातर बच्चों को सुई से डर लगता है.  पर कई बार ये डर उम्र बढ़ने के साथ भी खत्म नहीं होता और ताउम्र बरकरार रहता है. इन दिनों कोरोना वैक्सीन लगवाने से इनकार करने वालों की संख्या को देखते हुए ये सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर महामारी की भयवाहता को देखते हुए भी लोग आखिर वैक्सीन लेने से डर क्यों रहे हैं. एक अध्ययन से पता चलता है कि टीकाकरण से इनकार या अनिच्छा बचपन में घटी किसी दर्दनाक घटना से जुड़ी हो सकती है, जैसे कि उपेक्षा, घरेलू हिंसा या परिवार में किसी के मादक द्रव्यों का सेवन करने की आदत.

बचपन में ट्रॉमा से गुजरे लोग नहीं लगवाना चाहते थे वैक्सीन 

BMJ ओपन जर्नल में प्रकाशित निष्कर्ष बताते हैं कि जिन लोगों ने बचपन में चार या उससे ज्यादा तरह के ट्रॉमा का अनुभव किया था, उनमें वैक्सीन लगाने को लेकर हिचकिचाहट उन लोगों की तुलना में तीन गुना ज्यादा थी, जिन्होंने ऐसा कोई बुरा अनुभव बचपन में नहीं देखा था.  Bangor University, UK के शोधकर्ताओं और उनके सहयोगियों ने विश्लेषण किया कि क्या बचपन के  ट्रॉमा को हेल्थ सिस्टम पर भरोसा, COVID-19 प्रतिबंधों के पालन, और संक्रमण के खिलाफ टीकाकरण करने के इरादे से जोड़ा जा सकता है?

सर्वे में शामिल लोगों ने बताए अपने अनुभव 

उन्होंने दिसंबर 2020 और मार्च 2021 के बीच वेल्स, यूके में रहने वाले वयस्कों पर एक टेलीफोनिक सर्वे किया. इस दौरान 2,285 लोगों को अंतिम विश्लेषण में शामिल किया गया था. सर्वे में शामिल लोगों से 18 साल की उम्र से पहले झेले गए किसी भी तरह के ट्रॉमा के बारे में पूछा.  ये ट्रॉमा शारीरिक, मौखिक और यौन शोषण, माता-पिता का अलगाव, घरेलू हिंसा, मानसिक बीमारी, शराब और नशीली दवाओं के दुरुपयोग या जेल में बंद घर के सदस्य के साथ रहने से जुड़ा हुआ था.  

साथ ही सर्वे में व्यक्तिगत विवरण, दीर्घकालिक स्वास्थ्य स्थितियों के अनुभव, COVID-19 पर स्वास्थ्य सेवा की जानकारी में विश्वास और कोरोना प्रतिबंधों और टीकाकरण के प्रति दृष्टिकोण पर  राय ली गई. पब्लिक हेल्थ वेल्स और लिवरपूल होप यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं सहित टीम ने पाया कि 5 में से 1 उत्तरदाताओं ने कहा कि उन्होंने बचपन एक तरह के ट्रॉमा का अनुभव किया है. 6 में से एक लोगों ने दो-तीन तरह का ट्रॉमा झेला था और 10 में से 1 ने कई तरह का ट्रॉमा बचपन में झेला था.  

बचपन में ट्रॉमा से गुजरे लोगों को देश के हेल्थ सिस्टम पर कम भरोसा

जितने ज्यादा ट्रॉमा उन्होंने बचपन में झेले थे, लोगों को उतना ही कम देश के हेल्थ सिस्टम पर भरोसा था. ऐसे लोगों ने कहा कि महामारी के दौरान सरकारी प्रतिबंध अनुचित थे और मास्क लगाना भी अनिवार्य नहीं होना चाहिए. शोधकर्ताओं के अनुसार, बचपन में ट्रॉमा से जुड़े हुए लोग सोशल डिस्टेंसिंग के नियम को भी खत्म करना चाहते थे. अध्ययन में पाया गया कि टीके से हिचकिचाहट उन लोगों में तीन गुना ज्यादा थी, जो बचपन में कई तरह के ट्रॉमा से गुजरे थे. हालांकि, शोधकर्ताओं का कहना है कि यह एक ऑब्जर्वेशन स्टडी है और इसके आधार पर कोई पुख्ता निर्णय नहीं दिया जा सकता है. टेलीफोनिक सर्वे के ये निष्कर्ष व्यक्तिगत यादों पर निर्भर थे.  शोधकर्ताओं ने कहा कि महिलाओं ने भी सर्वे में हिस्सा लिया था जबकि अल्पसंख्यकों की संख्या कम थी.