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लैंडफिल साइटों के पास रहने से महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य पर क्या पड़ रहा है असर, जानने के लिए दिल्ली महिला आयोग करेगी समिति का गठन

दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने इसी साल 29 अप्रैल को उत्तरी दिल्ली नगर निगम के आयुक्त को समन जारी कर घटना पर विस्तृत रिपोर्ट मांगी थी. जिसमें पता चला कि भलस्वा लैंडफिल साइट को संयुक्त दिल्ली नगर निगम  ने 1994 में चालू किया था.

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हाइलाइट्स
  • कुछ दिन पहले भलस्वा डेयरी में लैंडफिल साइट पर लग गई थी आग 

  • भलस्वा लैंडफिल साइट को 1994 में किया गया था चालू 

दिल्ली महिला आयोग एक विशेषज्ञ समिति बनाने जा रहा है जो राजधानी में लैंडफिल साइटों के आसपास रहने वाली महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव का पता लगाएगी. साथ-साथ लैंडफिल पर काम करने वाले दिल्ली नगर निगम के सफाई कर्मचारियों को भी इसमें शामिल किया जाएगा. समिति इस मुद्दे पर सरकार को एक रिपोर्ट सौंपेगी. 

कुछ दिन पहले भलस्वा डेयरी में लैंडफिल साइट पर लग गई थी आग 

दरअसल, 25 अप्रैल को दिल्ली के भलस्वा डेयरी में लैंडफिल साइट पर भीषण आग लग गई थी. इस घटना के बाद आस-पास के रिहायशी इलाकों को  हानिकारक जहरीली हवा ने अपनी चपेट में ले लिया, जिससे एक भयानक और विनाशकारी स्थिति पैदा हो गई. इसका आसपास के लोगों के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर अत्यधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ा. आयोग को पता चला कि साइट से भीषण आग लगने के कारण क्षेत्र के निवासियों को कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ा था. 

निवासियों ने आयोग को सूचित किया कि आग से उत्पन्न जहरीला धुंआ, जो कई दिनों तक चलता रहा, उनके घरों में घुस गया और क्षेत्र में महिलाओं और बच्चों सहित सभी निवासियों के स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित किया. दैनिक आधार पर, दिल्ली में लैंडफिल के आसपास रहने वाले लोग लैंडफिल साइटों के कारण जहरीले धुएं, असहनीय बदबू और जल प्रदूषण के शिकार होते हैं.

भलस्वा लैंडफिल साइट को 1994 में किया गया था चालू 

दरअसल, दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने इसी साल 29 अप्रैल को उत्तरी दिल्ली नगर निगम के आयुक्त को समन जारी कर घटना पर विस्तृत रिपोर्ट मांगी थी. नगर निगम के वरिष्ठ अधिकारी आयोग के सामने पेश हुए और मांगी गई जानकारी मुहैया कराई. पता चला कि भलस्वा लैंडफिल साइट को संयुक्त दिल्ली नगर निगम  ने 1994 में चालू किया था. साल 1994 से 2012 तक, साइट को संयुक्त दिल्ली नगर निगम द्वारा संचालित किया गया था, और उसके बाद साइट को उत्तरी दिल्ली नगर निगम द्वारा संचालित किया गया. अधिकारियों ने बताया कि नगर निगम द्वारा 1994 से 2019 तक 25 वर्षों तक डंप साइट को साफ करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया. अक्टूबर 2019 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश के बाद ही साइट को साफ करने के लिए बायो-माइनिंग/रिमेडिएशन का काम शुरू किया गया था.

भलस्वा साइट पर हर दिन 2200 मीट्रिक टन ठोस कचरा डाला जा रहा है

वर्तमान में, भलस्वा साइट पर दैनिक आधार पर 2200 मीट्रिक टन ठोस कचरा डाला जा रहा है. नॉर्थ एमसीडी ने कहा कि 2500 टीपीडी एमएसडब्ल्यू प्रसंस्करण संयंत्र स्थापित करने के लिए आईओसीएल के साथ एक एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए थे, लेकिन एकमात्र बोलीदाता से उच्च दर प्राप्त होने के कारण, जुलाई 2022 में नई निविदा आमंत्रित की जाएगी. तब तक, हर दिन, अधिक से अधिक कचरा जारी रहेगा लैंडफिल साइट में जोड़ा जाता रहेगा. 

कितना बजट हुआ है आवंटित?

इसके अलावा, पिछले 4 साल में, साइट को साफ करने के लिए नॉर्थ एमसीडी ने 69.99 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं. साल 2019-20, 2020-21, 2021-22 और 2022-23 में भलस्वा डंपसाइट को साफ करने के लिए बजट आवंटन क्रमशः 5 करोड़ रुपये, 25 करोड़ रुपये, 25 करोड़ रुपये और 14.99 करोड़ रुपये था. पिछले साल, लैंडफिल को साफ करने के लिए बजट को बिना किसी कारण के काफी कम कर दिया गया. 

आज तक नॉर्थ एमसीडी ने साइट के आसपास रहने वाले निवासियों या अपने स्वयं के श्रमिकों, विशेष रूप से लैंडफिल साइटों में काम करने वाली महिलाओं के स्वास्थ्य और सामाजिक आर्थिक स्थिति पर प्रभाव का आकलन करने के लिए कोई अध्ययन या जांच नहीं की है. वास्तव में, नॉर्थ एमसीडी से प्राप्त उत्तर के अनुसार, उन्होंने कहा है कि, भलस्वा डंपसाइट अनधिकृत कॉलोनियों / झुग्गी बस्तियों से घिरा हुआ है, जो कि डंप साइट के बहुत करीब है, इसको  मुख्य रूप से कूड़ा कचरा बीनने वालों द्वारा आजीबिका के लिए कब्जा कर बसाया गया है. उन्हें डंप साइट से बेदखल करने के प्रयास अतीत में सफल नहीं रहे हैं.

आयोग दूसरी लैंडफिल साइटों के बारे में भी इसी तरह का विवरण मांगने के लिए एकीकृत एमसीडी को नोटिस जारी कर रहा है. आयोग इस मामले में अपनी जांच जारी रखते हुए, राजधानी में बढ़ती लैंडफिल के आसपास रहने वाली महिलाओं और बच्चों के साथ-साथ एमसीडी के सफाई कर्मचारियों के स्वास्थ्य प्रभाव पर एक अध्ययन भी शुरू कर रहा है और इसके लिए स्वास्थ्य, पर्यावरण और सामाजिक विशेषज्ञों से सहायता मांगेगा.  

यह एक गंभीर मुद्दा है- स्वाति मालीवाल 

दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने कहा, “यह एक बहुत ही गंभीर मुद्दा है. प्रथम दृष्टया, हमने पाया है कि राजधानी में बढ़ते हुए लैंडफिल के रूप में एक संवेदनशील मुद्दे से निपटने के लिए नगर निगम ने एक गैर संवेदनशील  रवैया अपनाया है. लोग कई वर्षों से लैंडफिल साइटों के आसपास रह रहे हैं. वे नर्क जैसी स्थिति में रहने को मजबूर हैं और इस के कारण उनका स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित हो रहा है. यह ध्यान देने योग्य बात है कि संयुक्त और उत्तरी दिल्ली नगर निगम ने 2019 में एनजीटी के आदेश तक लैंडफिल साइट की सफाई के लिए कोई प्रयास नहीं किया.  इसके अलावा, 70 करोड़ रुपये के खर्च के बावजूद लैंडफिल की स्थिति हर दिन बदतर होती जा रही है. इसके अलावा, एमसीडी ने ठोस अपशिष्ट प्रबंधन या लैंडफिल के स्वास्थ्य पर प्रभाव पर कोई अध्ययन करने की कभी जहमत नहीं उठाई.  वास्तव में, नगर निगम द्वारा समस्या का समाधान केवल उन लोगों को उनके घरों से बेदखल करना प्रतीत होता है जो कई वर्षों से डंप साइट के आसपास रह रहे हैं. आयोग इस मुद्दे पर गहन अध्ययन करेगा और सरकार को एक रिपोर्ट देगा."

(राम किनकर सिंह की रिपोर्ट)