भारत की 70 प्रतिशत से ज्यादा आबादी गांव में रहती है. लेकिन आज भी कई जगह ऐसी हैं जहां हॉस्पिटल या डॉक्टर के आभाव में लोगों की मौत हो जाती है. हालांकि, पिछले कुछ समय से देशभर में टेलीमेडिसिन (Telemedicine) का कॉन्सेप्ट उभर रहा है. केवल शहरों में ही नहीं बल्कि गांवों में भी ये पहुंच गया है. मध्य प्रदेश के डॉ विशेष कासलीवाल (Dr. Vishesh Kasliwal) और उनकी पत्नी रचिता कासलीवाल (Rachita Kasliwal) ग्रामीण भारत में मेडिकल फैसिलिटीज (Medical Facilities) पहुंचाने का काम कर रहे हैं. इसके लिए उन्होंने ‘मेडीसेवा’ (Medyseva) नाम की टेलीमेडिसिन सर्विस शुरू की है. भारत में मौजूदा समय में 120 मेडीसेवा सेंटर (Medyseva Centre) खोले जा चुके हैं.
दरअसल, जब भी मेडिकल ट्रीटमेंट की बात आती है तो ग्रामीण भारत में लोगों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. उन्हें इलाज के लिए या तो पास के शहरों में जाने में बहुत सारा पैसा और समय खर्च करना पड़ता है या स्थानीय डॉक्टरों पर निर्भर रहना पड़ता है. लेकिन मेडीसेवा उन्हें इन समस्याओं से उबरने में मदद कर रही है.
कोविड महामारी में शुरू हुआ मेडीसेवा का सफर
कई स्टार्टअप कहानियों की तरह ही मेडीसेवा की यात्रा भी Covid-19 महामारी के दौरान शुरू हुई. डॉ विशेष को एहसास हुआ कि ग्रामीण इलाकों में उनके दोस्तों और रिश्तेदारों के पास अच्छे डॉक्टरों तक पहुंच नहीं है. इतना ही नहीं बल्कि वे मोबाइल ऐप्स के बारे में जानते भी नहीं हैं. बस तभी मेडीसेवा का जन्म हुआ. ये एक तरह से फिजिकल सेंटर के माध्यम से वीडियो कंसल्टेशन देती है. एक तरह से ये ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों का मिश्रण है. डॉ विशेष बताते हैं कि जुलाई 2021 में, मध्य प्रदेश में दो मेडीसेवा केंद्र लॉन्च किए गए थे और तब से करीब 8 राज्यों में इसके सेंटर्स खोले जा चुके हैं.
डॉ विशेष ने GNT डिजिटल को बताया, “हमने मेडीसेवा ग्रामीण भारत के लिए शुरू किया था. आज हम लोगों ने अलग-अलग गांव में मेडीसेवा क्लिनिक शुरू किए हैं, जहां पर मरीज आते हैं और उन्हें वीडियो कॉल के माध्यम से शहरों से डॉक्टर्स से परामर्श मिलता है. इससे ये फायदा होता है कि गांव के झोलाछाप डॉक्टर्स के पास उन्हें नहीं जाना पड़ता है. क्योंकि आपको शहर के पढ़ें-लिखे डॉक्टर्स से परामर्श मिलता है. अधिकतर गांव से लोगों को शहर जाना पड़ता है जिसमें ज्यादा खर्चा होता है और समय ज्यादा लगता है, लेकिन मेडीसेवा की मदद से मरीज को जल्दी इलाज मिल जाता है. और उसे परेशान नहीं होना पड़ता.”
उबर कार वाले मॉडल की तरह है मेडीसेवा फैसिलिटी
डॉ विशेष कहते हैं, “हमने ये सर्विस एकदम उबर मॉडल जैसी शुरू की है. जैसे आपको कहीं जाना होता है तो आप उबर बुला लेते हैं. उसी तरीके से हमने इसमें भी एक सिस्टम बनाया है. मान लीजिए सेंटर पर कोई मरीज आया है और वहां डॉक्टर्स चाहिए तो ऐसे में जो सेंटर चला रहे हैं वो बटन दबाते हैं और मरीज का नोटिफिकेशन डॉक्टर के पास जाता है. जो भी डॉक्टर फ्री होते हैं वो उसे एक्सेप्ट कर लेते हैं और वीडियो कॉल शुरू हो जाती है. इससे ये होता है कि अस्पतालों के जैसे मरीज को इंतजार नहीं करना पड़ता है. मरीज को एकदम से इलाज मिल जाता है. मरीज के सेंटर पर आने से लेकर जाने तक का एक एवरेज टाइम है 11 मिनट. यानि कुल 11 मिनट में मरीज को डॉक्टर से कंसल्टेशन मिल जाता है.
डॉ विशेष कहते हैं, “इतना ही नहीं इसके अलावा हम लोकल पैथोलॉजी लैब्स से भी कॉलाबोरेशन करके रखते हैं. जब मरीज को डॉक्टर कहते हैं कि आपको खून की जांच करवानी है तो तुरंत पैथालॉजी लैब से सैंपल कलेक्ट किया जाता है और वे जल्द ही रिपोर्ट जनरेट करके दे देते हैं. इसके अलावा, अगर डॉक्टर कहते हैं कि सिटी स्कैन या एमआरआई स्कैन करवाना है तो जो भी नजदीकी हॉस्पिटल होता है हमारा उससे टाइअप होता है तो मरीज के टेस्ट सस्ते में और बिना इंतजार किए हो जाते हैं.”
गांव के मरीज शहर में अस्पतालों में जाने से बचते हैं
मेडीसेवा कैसे शुरू हुआ इसको लेकर डॉ विशेष बताते हैं कि ये कोविड-19 के समय में शुरू हुआ था. जब हमने देखा कि गांव में मेडिकल फैसिलिटी की हालत बहुत खराब है तब हमने सोचा कि ऐसा कुछ शुरू करना चाहिए. हमने डॉक्टर्स और मरीजों के बीच के पुल बनने का काम किया.
शहर में जो अस्पताल होते हैं उनमें ज्यादातर गांव के मरीज होते हैं. तो जो गांव के लोग होते हैं वो बीमारियों को रोककर रखते हैं. जब तक उनकी हालत ज्यादा खराब नहीं हो जाती है वे तबतक अस्पताल के चक्कर काटना पसंद नहीं करते हैं. वे शुरुआत में खुद ठीक करने की कोशिश करते हैं. ऐसे में जब सही इलाज नहीं मिलता है तब वह शहर की तरफ बढ़ता है. ऐसे में मेडीसेवा सेंटर पर आकर वो लोग शुरुआत में ही परामर्श ले लेते हैं. हालांकि, इसके लिए हम गांव लोगों को जागरूक कर रहे हैं. सबसे बड़ी परेशानी है कि गांव में डॉक्टर नहीं हैं. अगर वे मौजूद होंगे तो मरीज वहां जाने में हिचकिचाएगा नहीं. अगर सस्ता ट्रीटमेंट मिलेगा तो वे सबसे पहले बीमार होने पर वहां जाएंगे.
मेंटल हेल्थ को लेकर लोग हो रहे हैं जागरूक
हालांकि, सरकार ने भी पीएचसी सेंटर्स खोले हुए हैं लेकिन डॉक्टर्स के आभाव के कारण सभी लोगों को इलाज नहीं मिल पाता है. अगर इस प्रोसेस को थोड़ा आसान और छोटा कर दिया जाए तो गांवों से बीमारियों को आसानी से खत्म किया जा सकता है.
डॉ विशेष ने बताया कि गांव में लोग अब मेंटल हेल्थ को भी समझने लगे हैं. और परेशानी होने पर डॉक्टर्स के पास जा रहे हैं. वे कहते हैं, “गांव में जहां कई सारी गंभीर बीमारियों को भूत आना, माता आना जैसी चीजें कहकर साइड कर दिया जाता है ऐसे में अब लोग इनके बारे में जागरूक हो रहे हैं. लोग मेंटल हेल्थ को लेकर भी आने लगे हैं. मरीज खुद आकर हमें कहते हैं कि हमने साइकेट्रिस्ट से बात करनी है हमने परेशानी हो रही है. कई मामले हमारे पास ऐसे आए हैं जिसमें पता चला है कि उन्हें सुसाइडल विचार आते हैं. लोग अब मेंटल हेल्थ पर ध्यान देने लगे हैं. ऐसे में बस उन्हें सही इलाज मिलना जरूरी है. इतना ही नहीं महिलाओं की अगर बात करें तो महिलाओं की हेल्थ इस वक्त सबसे बड़ी चीज है. क्योंकि गांवों में अक्सर उन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है. हमलोग काफी सारी आंगनवाड़ी वर्कर्स के साथ काम कर रहे हैं. हम लोग स्कूल और कॉलेज में जाकर लड़कियों को उनकी हेल्थ के लिए जागरूक करते हैं.”
टेलीमेडिसिन हो सकता है एक बेहतर विकल्प
दरअसल, गांव से लोगों इलाज के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है. इमरजेंसी में बात जीवन और मृत्यु के बीच तक आ जाती है. ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्र अक्सर डॉक्टरों, नर्सों और हेल्पर्स की कमी से जूझते हैं. ऐसे में टेलीमेडिसिन एक अच्छा विकल्प बनकर सामने आ रहा है. भारत की लगभग 75 प्रतिशत आबादी जो ग्रामीण गांवों में रहती है, उन्हें महानगरीय शहरों से बाहर के डॉक्टरों की जरूरत है और लगभग 62 करोड़ ग्रामीण भारतीयों को बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच की आवश्यकता है.
स्वास्थ्य मंत्रालय की रिर्पोट के मुताबिक, भारत सरकार हेल्थकेयर पर लगभग 0.9 प्रतिशत खर्च करती है, और इसका केवल एक हिस्सा दूरदराज के क्षेत्रों में मेडिकल फैसिलिटी देने के लिए खर्च किया जाता है. भारत में डॉक्टर-मरीज का रेश्यो प्रति डॉक्टर पर लगभग 1456 भारतीय नागरिक है, यानि 1:1456 है. जबकि अकेले ग्रामीण क्षेत्रों में यह अनुपात और भी ज्यादा है. चूंकि ग्रामीण भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती स्वास्थ्य सेवा तक उनकी पहुंच है, ऐसे में टेलीमेडिसिन ही इसका उत्तर हो सकता है.
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