एक शख्स के सीने में फंसी बुलेट को 16 साल बाद निकाला गया है. साकेत स्थित मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल (Max Super Speciality Hospital), के डॉक्टरों ने 45 साल के व्यक्ति के फेफड़े में फंसी हुई गोली को निकाल दिया है.
कानपुर के निवासी शैलेंद्र सिंह दिल के करीब फंसी हुई इस गोली के साथ जीवन जी रहे थे. उन्हें 2008 में ये गोली लगी थी. जब अचानक ये परेशान करने लगी तो उन्होंने तुरंत डॉक्टर की सलाह ली और इसे निकलवाया.
एक दशक से भी ज्यादा फंसी रही गोली
शैलेंद्र सिंह के ठीक होने का सफर किसी चमत्कार से कम नहीं है. एक दशक से भी अधिक समय तक, उनके शरीर में यह गोली मौजूद रही. हालांकि, पिछले साल उनकी सेहत बिगड़ने लगी. शैलेंद्र को छाती में तेज दर्द होने लगा, और इससे भी ज्यादा चिंताजनक था कि उन्हें खून की खांसी आनी शुरू हो गई थी. जब लक्षण गंभीर हो गए, तो उन्होंने दिल्ली के साकेत स्थित मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में चिकित्सा सहायता ली.
2008 में लगी थी सीने में गोली
शैलेंद्र की परेशानी 2008 में शुरू हुई, जब उनके सीने में गोली लगी. गोली उनके शरीर के पार जाने के बजाय, उनके बाएं फेफड़े में फंस गई, जो दिल के बेहद करीब थी. इस घटना के बाद, उन्होंने कानपुर में डॉक्टरों की विशेषज्ञता का सहारा लिया, लेकिन गोली की दिल के काफी पास थी इसलिए सर्जरी बहुत जोखिम भरी थी. कई विशेषज्ञों ने गोली को हटाने से मना कर दिया, क्योंकि यह दिल और फेफड़ों के पास थी. ऐसी में उन्होंने गैर-सर्जिकल इलाज को चुना.
कई साल तक, यह इलाज चलता रहा. शैलेंद्र सिंह को हालांकि कोई लक्षण नहीं दिख रहे थे, उनकी जिंदगी आराम से चल रही थी. हालांकि, यह शांति अस्थायी थी. 2023 में, गोली लगने के लगभग 15 साल बाद, शैलेंद्र की सेहत अचानक से बिगड़ गई. उन्हें छाती में अचानक दर्द महसूस होने लगा, साथ ही खून के साथ लगातार खांसी होने लगी. शैलेंद्र ने कई डॉक्टर्स से सलाह ली और वे सर्जरी को टालते रहे.
मैक्स अस्पताल में करवाया इलाज
आखिरकार, शैलेंद्र ने साकेत स्थित मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के विशेषज्ञों की टीम से बात की. इस टीम को थोरैसिक सर्जरी के एसोसिएट डायरेक्टर डॉ. शैवाल खंडेलवाल ने लीड किया. उन्होंने आखिरकार गोली को हटाने का निर्णय लिया. डॉ. शैवाल खंडेलवाल और उनकी टीम ने स्थिति की गंभीरता को तुरंत समझा. शैलेंद्र सिंह के लक्षण इतने बिगड़ चुके थे कि अब सर्जरी को टाला नहीं जा सकता था.
मामले की गंभीरता को देखते हुए लिया निर्णय
डॉ. खंडेलवाल ने उन्हें समझाया, "पिछले साल तक मरीज बिना लक्षण के रहा, लेकिन फिर उसे बाईं तरफ छाती में दर्द होने लगा और खून के साथ खांसी शुरू हो गई. खांसी में खून की मात्रा लगातार बढ़ती रही. तब हमने सीटी स्कैन किया तो हमें बाएं फेफड़े के हाइलेम में गोली दिखाई दी, जिसके कारण फेफड़े सिकुड़ गए थे.”
इस समय तक, डॉक्टरों को समझ में आ गया था कि गोली ने अपनी जगह बदलनी शुरू कर दी थी और ये फेफड़े के टिश्यू को नुकसान पहुंचा रही थी. ब्रोंकोस्कोपी से यह भी पता चला कि गोली अब शैलेंद्र की सांस की नली पर दबाव डाल रही थी.
डॉ. खंडेलवाल कहते हैं, "सर्जरी काफी मुश्किल थी. ऐसी गोलियां जो शरीर में फंसी होती हैं और उनसे कोई परेशानी नहीं होती, आमतौर पर उन्हें बिना इलाज के छोड़ दिया जाता है. लेकिन ये केवल तबतक होता है जबतक वे अपनी जगह न बड़े. या वे रियेक्ट न करें. जबतक जरूरी न तबतक सर्जरी टाल दी जाती है. लेकिन इस मामले में सर्जरी जरूरी थी."
अब सर्जरी के तुरंत बाद शैलेंद्र की स्थिति में सुधार देखा गया है. गोली और डैमेज हुए फेफड़े के टिश्यू को हटाने के बाद, उनके शरीर ने ठीक होना शुरू कर दिया. अस्पताल में कुछ दिनों तक उन्हें कड़ी निगरानी में रखने के बाद, छुट्टी दे दी है.