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मूक-बधिर कपल की बच्ची को बचाने के लिए मेडिकल स्टाफ ने सीखी सांकेतिक भाषा...कहानी आपका दिल छू लेगी

मूक-बधिर कपल के प्रीमेच्योर जुड़वां बच्चे हुए थे जिनका वजन एक किलोग्राम से भी कम था. बेटे की मृत्यु हो गई थी और बेटी कई समस्याओं की वजह से 76 दिनों तक अस्पताल में भर्ती थी.

Baby Baby

डॉक्टर किसी मसीहा से कम नहीं होता ये बात कई अर्थों में और कई जगह सिद्ध होती है. हैदराबाद के एक अस्पताल के डॉक्टरों ने भी कुछ ऐसा ही कारनामा किया जो वाकई काबिल-ए-तारीफ है.हैदराबाद के एक अस्पताल में डॉक्टरों ने एक नवजात शिशु को बचाने के लिए "sound barrier"को तोड़ दिया है. जी हां यहां एक अनोखे मामले में, नवजात शिशु वार्ड के सभी 11 डॉक्टरों और नर्सों ने एक मूक-बधिर कपल के साथ संवाद करने के लिए खुद सांकेतिक भाषा सीखी और फिर उनसे बातचीत की. बता दें कि कपल का इंफर्टिलिटी ट्रीटमेंट हुआ था जिसके बाद उन्हें ये बच्चा हुआ.
 
क्या थी दिक्कत
सरकारी कर्मचारी एम राज कुमार (55) और पत्‍नी भाग्यम्मा (47) को समय से पहले दो जुड़वां बच्चे हुए थे. बच्चों का वजन एक किलोग्राम से भी कम था. जुड़वा बच्चों में एक बेटे की मृत्यु हो गई और कई परेशानियों के साथ बेटी 76 दिनों तक अस्पताल में भर्ती रही. शुरुआती दौर में डॉक्टर्स को संवाद करने में काफी दिक्कतें हो रही थीं. KIMS, कोंडापुर के डॉक्टरों ने समझा कि यह दंपति के लिए माता-पिता बनने की खुशी का अनुभव करने का आखिरी मौका था. डॉक्टर्स को लगा कि अगर वो एक भाषा सीखकर किसी बच्चे को जिंदगी दे सकते हैं, तो ऐसा ही होगा.

डॉक्टरों ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि गर्भावस्था के दौरान मां को उच्च रक्तचाप था और गर्भ हाई बीपी की समस्या थी और गर्भ तक ब्लड अच्छे से पहुंच नहीं रहा था. बच्ची प्रीमेच्योर पैदा हुई थी और डिलीवरी के बाद बच्ची को दो महीने तक निगरानी में रखना पड़ा.

पहले इंटरप्रीटर की लेते थे मदद
केआईएमएस में नियोनेटोलॉजी की क्लिनिकल निदेशक डॉ. अपर्णा चंद्रशेखरन ने कहा, “शुरुआत में, राज कुमार ने अंग्रेजी में लिखकर हमसे बातचीत की. लेकिन वह नियमित रूप से अस्पताल नहीं आ सके और हम उनसे वीडियो कॉल के जरिए बात कर रहे थे.' एक रिश्तेदार जो सांकेतिक भाषा जानता था, उसने इंटरप्रीटर के रूप में काम किया क्योंकि हमारे लिए माता-पिता दोनों को यह बताना महत्वपूर्ण था कि बच्चा किन चिकित्सीय प्रक्रियाओं से गुजर रहा है और उसे कैसी देखभाल की आवश्यकता है.

कितना लगा समय
कुछ समय बाद, ट्रांसलेटर भी अनुपलब्ध था और डॉक्टरों को माता-पिता से सीधे बातचीत करने की जरूरत पड़ी. डॉक्टर्स जब भी कोई टेस्ट बताते थे वो घबरा जाते थे जबकि वो नियमित टेस्ट थे. इस वजह से डॉक्टर्स ने सांकेतिक भाषा सीखने का फैसला किया. वार्ड की शिफ्ट प्रभारी डी सुजाता ने कहा कि पिता ने उन्हें वर्णमाला, कैलेंडर और अन्य बुनियादी चीजें जल्दी सिखा दीं. समय के साथ, हमने दैनिक आधार पर माता-पिता दोनों के साथ संवाद करके अन्य चीजें भी सीखीं.

बच्ची की देखभाल कर रहे तीन डॉक्टरों, चार जूनियर डॉक्टरों और चार नर्सों को सांकेतिक भाषा समझने में लगभग दस दिन लग गए. कुछ डॉक्टर और नर्स सांकेतिक भाषा समझने में इतने अच्छे थे कि उन्होंने इसे टीम के अन्य सदस्यों को भी सिखाया. बता दें कि हाल ही में बच्ची को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई. उसका वजन 1.8 किलोग्राम था और अब उसे ऐसी कोई दिक्कत नहीं है. माता-पिता ने कहा कि उन्हें विश्वास है कि अब वो बच्ची की देखभाल अच्छे से कर सकेंगे.