ओरल रिहाइड्रेशन सॉल्यूशन, जिसे ओआरएस के नाम से जाना जाता है. कहने को तो यह बस एक घोल है लेकिन कम ही लोग जानते होंगे कि इस घोल ने साल 1971 में लाखों जिंदगियां बचाई थीं. और इस ORS को बनाने में अभुतपूर्व योगदान था डॉ दिलीप महालनोबिस का, जिनका बीते रविवार को निधन हो गया.
88 वर्षीय दिलीप को फेफड़ों की बीमारी थी और इसलिए उन्हें कोलकाता के ईएम बाईपास में अपोलो ग्लेनीगल्स अस्पताल में भर्ती कराया गया था. जहां उन्होंने रविवार को अपनी अंतिम सांस ली.
कलकत्ता मेडिकल कॉलेज से पूरी की डिग्री
साल 1934 में अविभाजित बंगाल के किशोरगंज में जन्मे, डॉ महालनोबिस ने 1958 में कलकत्ता मेडिकल कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और अस्पताल के बाल चिकित्सा विभाग में एक इंटर्न के रूप में शामिल हुए.
उन्हें इंग्लैंड में मेडिकल स्टडी करने का अवसर मिला क्योंकि ब्रिटिश सरकार ने 1950 के दशक में राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा शुरू की जिसके लिए उनका चयन किया गया था. लंदन और एडिनबर्ग में दो डिग्री हासिल करने के बाद, महालनोबिस लंदन में क्वीन एलिजाबेथ हॉस्पिटल फॉर चिल्ड्रन के रजिस्ट्रार के रूप में चुने जाने वाले पहले भारतीय बने.
ओरल रिहाइड्रेशन थेरेपी पर की रिसर्च
डॉ महालनोबिस ने जॉन्स हॉपकिन्स इंटरनेशनल सेंटर फॉर मेडिकल रिसर्च एंड ट्रेनिंग में हैजा और अन्य डायरिया संबंधी बीमारियों का अध्ययन किया. इस सेंटर को अमेरिकी सरकार ने कोलकाता के बेलियाघाटा संक्रामक रोग अस्पताल में स्थापित किया था.
1964 में महालनोबिस ने ओरल रिहाइड्रेशन थेरेपी पर अपना शोध शुरू किया. आपको बता दें कि ओआरएस एक घोल है जिसमें डायरिया संबंधी बीमारियों के इलाज के लिए टेबल सॉल्ट, बेकिंग सोडा और कमर्शियल ग्लूकोज का मिश्रण होता है.
बांग्लादेशी शरणार्थियों के लिए बने मसीहा
मुक्ति संग्राम के दौरान बांग्लादेश से आए शरणार्थियों के लिए कैंप लगवाए गए थे.इन कैंप्स में हैजा (कोलेरा) महामारी फैल गई. लोगों की हालत हर दिन खराब हो रही थी. महालनोबिस को भारत-बांग्लादेश सीमा के पासउत्तर 24 परगना जिले के बोंगांव में एक शरणार्थी शिविर में भेजा गया था.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, जब डॉ महालनोबिस यहां पहुंचे तो लोगों की हालत उनसे देखी नहीं गई. कैंप में आईवी सलाइन से लोगों का इलाज हो रहा था लेकिन इसकी भरी कमी थी. आईवी सलाइन के स्टॉक को खत्म होता देखकर महालनोबिस ने ORS इस्तेमाल करने का फैसला किया.
यह बहुत बड़ा कदम था लेकिन महालनोबिस को खुद पर भरोसा था और उनके भरोसे के कारण उस कैंप में मृत्यू दर 30% से घटकर 3% रह गई. उनके ORS घोल ने लाखों लोगों की जिंदगियां बचाईं.
देश-दुनिया में ORS को मिली पहचान
साल 1975 और 1979 के बीच, डॉ महालनोबिस ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के लिए अफगानिस्तान, मिस्र और यमन में हैजा नियंत्रण इकाइयों में काम किया. 1980 के दशक के दौरान, उन्होंने जीवाणु रोगों के प्रबंधन पर WHO सलाहकार के रूप में काम किया.
ओआरएस को मेडिकल क्षेत्र में 20वीं शताब्दी की महान खोज के रूप में सराहा जाता है. डॉ. महालनोबिस को 2002 में यूनिवर्सिटी ऑफ कोलंबिया ऐंड कॉरनेल में पोलिन पुरस्कार और 2006 में थाईलैंड सरकार ने उन्हें प्रिंस महिडोल अवॉर्ड से सम्मानित किया गया.