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Explainer: जानिए Dermatomyositis बीमारी के बारे में, जिस कारण हुई 19 साल की इस एक्ट्रेस की मौत

हाल ही में, बॉलीवुड की यंग एक्ट्रेस, सुहानी भटनागर की मात्र 19 साल की उम्र में मौत होने से हर कोई सदमे में है. दंगल फिल्म में आमिर खान के साथ काम करने वाली सुहानी की मौत की वजह Dermatomyositis नाम की दुर्लभ बीमारी है.

Suhani Bhatnagar Suhani Bhatnagar

आमिर खान अभिनीत फिल्म, दंगल में युवा बबीता फोगाट की भूमिका निभाने वाली एक्ट्रेस, सुहानी भटनागर का शुक्रवार को दिल्ली में 19 वर्ष की आयु में निधन हो गया. एक्ट्रेस डर्मेटोमायोसिटिस (Dermatomyositis) नाम की दुर्लभ बीमारी से जूझ रही थी. 7 फरवरी को सुहानी को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती कराया गया था, जहां उनका इलाज चल रहा था, लेकिन 16 फरवरी को उनकी मृत्यु हो गई.

सुहानी भटनागर के परिवार ने बताया कि उनके लक्षण दो महीने पहले दिखाई दिए थे, लेकिन उन्हें इस बीमारी का पता सिर्फ दस दिन पहले चला. अब सवाल है कि आखिर डर्मेटोमायोसिटिस बीमारी क्या है और इससे किस तरह बचाव कर सकते हैं. 

क्या है Dermatomyositis
डर्मेटोमायोसिटिस एक दुर्लभ ऑटोइम्यून बीमारी है जो त्वचा और मांसपेशियों दोनों को प्रभावित करती है, जिसमें सूजन के कारण मांसपेशियों में कमजोरी और स्किन पर रैशेज या चकत्ते हो जाते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि यह एक बहुत ही दुर्लभ बीमारी है जो "प्रत्येक 1 लाख की आबादी में 2-3 लोगों को होती है" और सबसे ज्यादा ध्यान देने योग्य लक्षणों में से एक है स्किन पर सामान्य से अलग रैशेज आना. यह दाने अक्सर चेहरे, पलकों, पोरों, कोहनियों, घुटनों, छाती और पीठ पर दिखाई देते हैं. 

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ये दाने लाल या बैंगनी रंग का हो सकता है और इसे अक्सर “हेलियोट्रोप” (Heliotrope) रैश के रूप में वर्णित किया जाता है. मांसपेशियों में ज्यादा कमजोरी के साथ पोर और कोहनी और घुटनों जैसी अन्य हड्डी के उभारों पर पपड़ीदार दिखाई देते हैं, जिन्हें हम गॉट्रॉन्स पपल्स (Gottron's Papules) कहते हैं. पहले माना जाता था कि यह बीमारी 40 से 60 साल की उम्र के लोगों को प्रभावित करती है, लेकिन अब यह युवाओं और बच्चों में भी देखी जा रही है. 

कैसे होती है यह बीमारी 
डर्मेटोमायोसिटिस के होने का सटीक कारण अभी तक सामने नहीं आया है, लेकिन यह मांसपेशियों के वायरल संक्रमण के कारण हो सकता है, ज्यादातर शरीर की इम्यूनिटी की समस्या के कारण जब सिस्टम गलती से अपनी ही मांसपेशियों और त्वचा के ऊतकों पर हमला करता है. इस बीमारी के अन्य कारण बैक्टीरियल इंफेक्शन, यूवी रेडिएशन, वायु प्रदूषक और कभी-कभी वैक्सीनेशन्स के साथ-साथ पर्यावरणीय कारक हो सकते हैं. यह बीमारी लगभग 30-40 प्रतिशत रोगियों में घातक हो सकती है. 

लक्षण कैसे पहचानें?
डर्मेटोमायोसिटिस के कुछ सामान्य लक्षणों में मांसपेशियों में कमजोरी, त्वचा पर लाल चकत्ते, कुछ भी निगलने में कठिनाई, थकान और मांसपेशियों में दर्द शामिल हैं. मांसपेशियों की कमजोरी डर्माटोमायोसिटिस की एक और प्रमुख विशेषता है. यह आम तौर पर शरीर के सबसे करीब की मांसपेशियों को प्रभावित करता है, जैसे कि कूल्हों, जांघों, कंधों, ऊपरी बांहों और गर्दन की मांसपेशियां. 

कमजोरी के कारण सीढ़ियां चढ़ना, बैठने के बाद खड़ा होना, वस्तुओं को उठाना या सिर के ऊपर तक पहुंचना जैसी रोजमर्रा की गतिविधियां करना मुश्किल हो सकता है. विशेषज्ञों का सुझाव है कि प्रभावित व्यक्ति को बाहों को कंधे के स्तर से ऊपर उठाने और कुर्सी या फर्श पर बैठने की स्थिति से उठने में भी कठिनाई होती है. गर्दन की मांसपेशियों में कमजोरी के कारण सिर अनैच्छिक रूप से आगे की ओर झुक सकता है, इस स्थिति को "ड्रॉप्ड हेड सिंड्रोम" (Dropped Head Syndrome) कहा जाता है. 

डर्मेटोमायोसिटिस से पीड़ित व्यक्तियों को निगलने में कठिनाई का अनुभव हो सकता है, जिससे दम घुट सकता है या दम घुट सकता है। इसके अलावा, लोगों को अत्यधिक थकान का अनुभव होता है जो आराम से दूर नहीं होती है और यह थकान दैनिक कामकाज और जीवन की गुणवत्ता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है. 

क्या है ट्रीटमेंट 
ट्रीटमेंट में आमतौर पर इम्यून सिस्टम की असामान्य गतिविधि को कम करने या रोकने के लिए दवाएं शामिल होती हैं, जैसे कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स, इम्यूनोसप्रेसेन्ट्स, और कभी-कभी इंट्रावेनस इम्युनोग्लोबुलिन (IVIG) थेरेपी. मांसपेशियों की ताकत और कार्यप्रणाली को बनाए रखने में फिजिकल थेरेपी और एक्सरसाइज से मदद मिलती है. हालांकि, बीमारी को बढ़ने से को रोकने के लिए समय रहते डायग्नोसिस और ट्रीटमेंट बहुत ज्यादा जरूरी है. 

यह बीमारी तब घातक होती है जब यह फेफड़े, हृदय या श्वसन प्रणाली जैसे महत्वपूर्ण अंगों को प्रभावित करती है. मरीज की मौत आम तौर पर डर्माटोमायोसिटिस के कारण नहीं होती है, बल्कि इसके कारण होने वाली दूसरी परेशानियों जैसे लंग्स मायोसिटिस के कारण होती है, जब कोई व्यक्ति सांस नहीं ले पाता है. इसके अलावा, इस बीमारी से कैंसर विकसित होने का खतरा भी बढ़ जाता है.