सोमवार को 15-18 आयु वर्ग के 40 लाख से अधिक बच्चों को कोविड -19 वैक्सीन की पहली डोज़ दी गई. लेकिन पहले दिन ही बहुत से बच्चों को 'एक्सपायर्ड' कोवैक्सिन दिए जाने की बातें सामने आ रही हैं. वैक्सीन की एक्सपायरी तारीख को लेकर उठे मुद्दे पर स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक स्पष्टीकरण जारी किया है.
मंत्रालय ने इन दावों को "झूठा और भ्रामक" बताया है. मंत्रालय का कहना है कि लोगों को इस बारे में पूरी जानकारी नहीं है और वे सिर्फ अफवाह फैला रहे हैं. उनका कहना है कि 15 से 18 वर्ष के बच्चों को सिर्फ कोवैक्सीन दी जानी है.
और इस वैक्सीन की ‘शेल्फ लाइफ’ नवंबर के महीने में उचित नियामक जांच के बाद बढ़ा दी गया थी. इसलिए कोवैक्सीन की सभी खुराकों का प्रयोग एकदम सुरक्षित है और ये उतनी ही असरदार हैं जितनी की कोई अन्य वैक्सीन.
क्या है मुद्दा:
कोवैक्सीन की डोज़ के एक्सपायर होने का मुद्दा तब उठा, जब कई लोगों ने कहा कि नवंबर में समाप्त होने वाले टीके के बैच सोमवार को युवा बच्चों को दिए जा रहे थे. हालांकि सरकार ने बाद में स्पष्ट किया कि नवंबर में ही इन टीकों की शेल्फ लाइफ नौ महीने से बढ़ाकर 12 महीने कर दी गई थी.
और इसलिए इन बैचों में कुछ भी गलत नहीं था. परिजनों को डर है कि उनके बच्चों को एक्सपायरी तारीख की वैक्सीन लगने से कहीं कुछ अनहोनी हो गई तो? लेकिन उन्हें यह जानकारी नहीं है कि नवंबर के महीने में ही सभी जांच-पड़ताल के बाद वैक्सीन की शेल्फ लाइफ बढ़ा दी गई है.
स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों द्वारा दिखाए गए स्थिरता अध्ययन डेटा के व्यापक विश्लेषण और परीक्षण के आधार पर राष्ट्रीय नियामक, केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन या सीडीएससीओ द्वारा टीकों की शेल्फ लाइफ बढ़ाई जाती है.
आखिर क्या है वैक्सीन की शेल्फ लाइफ:
‘शेल्फ लाइफ’ का मतलब बहुत स्पष्ट है कि वैक्सीन की लाइफ. वह टाइम पीरियड जिस दौरान आप उस वैक्सीन को इस्तेमाल में ले सकते हैं. यह शेल्फ लाइफ पूरी होने के बाद वैक्सीन को एक्सपायर मान लिया जाता है. वैक्सीन की शेल्फ लाइफ उसे बनाने वाली कंपनी विभिन्न मानकों के आधार पर तय करती है.
बाद में इस शेल्फ लाइफ को रेगुलेटरी अथॉरिटी द्वारा चेक किया जाता है. और उनके एप्रूवल के बाद ही शेल्फ लाइफ तय की जाती है. शेल्फ लाइफ से पता चलता है कि वैक्सीन को बनाने में जिन मटेरियल का इस्तेमाल हुआ है, वे कितने दिन तक कारगर रहते हैं.
एक समय के बाद यह मटेरियल अपनी क्षमता खोने लगता है और धीरे-धीरे वैक्सीन एक्सपायर हो जाती है. वैक्सीन को बनाते समय ही सभी मटेरियल की क्षमता चेक की जाती है कि यह कितने दिन तक कारगर रहेंगे और इसके आधार पर शेल्फ लाइफ और एक्सपायरी तारीख तय होती है.
नौ से 12 महीने की गई कोवैक्सीन की शेल्फ लाइफ:
कोवैक्सिन के निर्माता भारत बायोटेक के एक आवेदन के जवाब में, सीडीएससीओ ने 25 अक्टूबर, 2021 को इस स्वदेशी रूप से विकसित वैक्सीन की शेल्फ लाइफ को मैन्युफैक्चरिंग तारीख से 9 से 12 महीने तक बढ़ाने को मंजूरी दे दी थी.
कंपनी ने CDSCO को वैक्सीन से संबंधित अतिरिक्त "स्टेबिलिटी डेटा" उपलब्ध कराया था और इसकी जांच-पड़ताल के आधार पर कोवैक्सीन की शेल्फ लाइफ बढ़ा दी गई. शेल्फ-लाइफ बढ़ने से अस्पताल वैक्सीन के उस स्टॉक का उपयोग कर सकते हैं जो पहले एक्सपायर होने के करीब था.
शेल्फ लाइफ बढ़ने से काफी ज्यादा मात्रा में वैक्सीन की बर्बादी भी रुकी है. 15-18 आयु वर्ग के लगभग 10 करोड़ लोगों को पूरी तरह से टीका लगाने के लिए अनुमानित 20 करोड़ वैक्सीन खुराक की आवश्यकता है.