देश भर में जब कोरोना महामारी फैली तो उससे निजात पाने के लिए वैक्सीन बनी. वैक्सीन लगने वाले हर व्यक्ति को उसके साथ एक सर्टिफिकेट मिलता है. ये सर्टिफिकेट आपको कई जगह जमा भी करना पड़ता है. लेकिन क्या आपने सोचा है कि ये सर्टिफिकेट का इतिहास क्या है. या दुनिया का पहला वैक्सीन सर्टिफिकेट कैसा दिखता होगा. अगर नहीं तो आज जान लीजिए. दरअसल गूगल इंडिया ने अपने ट्विटर हैंडल पर एक पोस्ट शेयर किया है. विश्व टीकाकरण सप्ताह शुरू होने वाला है. इस मौके पर Google India ने अब तक के सबसे पुराने वैक्सीन सर्टिफिकेट में से एक को शेयर किया है.
गूगल ने शेयर किया पहला वैक्सीन सर्टिफिकेट
इस वैक्सीन सर्टिफिकेट में अंग्रेजी डॉक्टर एडवर्ड जेनर एक बच्चे की ऊपरी बांह पर वैक्सीन लगाते हुए नजर आ रहे हैं. उस बच्चे के साथ उसकी मां भी है, जो संरक्षक देवी हाइजिया को पकड़े हुए हैं. वो कह रही हैं, "चित्रा, स्वस्थ, और संरक्षित जीवन." ग्रीक धर्म में, हाइजिया स्वास्थ्य की देवी है. गूगल ने रविवार को वैक्सीन सर्टिफिकेट शेयर किया है. क्या आप जानते हैं कि ये सर्टिफिकेट किस बीमारी का है. दरअसल ये सर्टिफिकेट है चेचक यानी स्मॉल पॉक्स का. चेचक की उत्पत्ति कहां से हुई इस बात की जानकारी किसी को नहीं है.मिस्र की ममियों पर चेचक जैसे चकत्ते पाए गए, जिससे पता चलता है कि चेचक कम से कम 3,000 वर्षों से मौजूद है.
चेचक का इतिहास
चेचक यानी स्मॉल पॉक्स वेरोला वायरस के कारण होने वाला एक गंभीर संक्रामक रोग था. चेचक में आमतौर पर व्यक्ति को बुखार आता है और शरीर पर लाल चकत्ते हो जाते हैं. सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार, चेचक एक भयानक बीमारी थी क्योंकि इससे औसतन हर 10 में से तीन लोगों की मृत्यु हो रही थी. इस बीमारी को नियंत्रित करने के लिए वैरायलेशन का इस्तेमाल किया जाता था, जिसका नाम वेरोला वायरस के नाम पर रखा गया था. इस प्रक्रिया में जिन लोगों को कभी चेचक ना हुआ हो उनमें इम्यून बढ़ाने के लिए चेचक वाले लोगों के संपर्क में लाया जाता था, जिससे उन्हें एक बार चेचक हो जाए और वो अपने शरीर में इसका इम्यून बना लें. हालांकि इस तरीके में कई बार लोगों की जान भी चली जाती थी.
उसके बाद 1796 में पहली बार चेचक की वैक्सीन पर चर्चा होने लगी. एडवर्ड जेनर ने पहली बार चेचक की वैक्सीन बनाई. जेनर की वैक्सीन को अनिवार्य करने वाला पहला देश बवेरिया का साम्राज्य था. 26 अगस्त, 1807 को, रॉयल बवेरियन गवर्नमेंट गजट ने "सभी प्रांतों में कानून द्वारा चेचक के टीकाकरण के संबंध में" एक डिक्री प्रकाशित की. जिसमें लिखा था कि 1 जुलाई, 1808 तक 3 साल की उम्र के सभी लोग जिन्हें अभी तक चचेक नहीं हुआ हैं. उन्हें ये टीका लगवाना अनिवार्य है.
धीरे-धीरे चेचक का प्रकोप कम होने लगा और आखिरकार 8 मई 1980 को वर्ल्ड हेल्थ असेंबली ने ये साफ कर दिया कि अब दुनिया से चेचक खत्म हो चुका है.
चाकू से चिरा मारकर लगाई जाती थी वैक्सीन
आज कल एक सुई के जरिए शरीर में दवा डालकर वैक्सीन लगा दी जाती है, लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था. पहले के समय में टीकाकरण एक अनुभवी डॉक्टर ही करता था. दरअसल इसका तरीका भी कुछ अलग ही था. ये टीकाकरण भी एक चाकू से किया जाता था. कुछ देर के लिए इस चाकू को दवा में डूबा कर रखा जाता था. उसके बाद इस चाकू से शरीर में दो कट लगाए जाते थे. जिसका निशान काफी दिन तक शरीर पर रहता है.