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Australia social media ban: मेंटल हेल्थ से लेकर नींद, मोटापा, प्रेशर... जानें सोशल मीडिया बैन का क्या पड़ेगा बच्चों पर असर? फायदा होगा या नुकसान? 

लंबे समय तक सोशल मीडिया का उपयोग बच्चों के लाइफस्टाइल को काफी धीमा बना देता है. वे ज्यादा समय अपना फोन पर बिताते हैं. रील्स और अपडेट्स की लत अक्सर बच्चों को घर के अंदर ही बांधे रखती है, जिससे उनकी फिजिकल एक्टिविटी कम होती जाती है.

Australia Ban Australia Ban
हाइलाइट्स
  • मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है

  • बेहतर होगा नींद का पैटर्न

ऑस्ट्रेलिया ने 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर बैन लगा दिया है. ऐसा करने वाला ये पहला देश बना है. इस कानून को देशव्यापी बहस और विचार-विमर्श के बाद पारित किया गया है. बड़ी टेक कंपनियों जैसे मेटा (फेसबुक और इंस्टाग्राम की मालिक) और टिकटॉक को इसमें निशाना बनाया गया है. साथ ही यह भी कहा गया है कि कानून का उल्लंघन करने वाली पर कंपनियों को A$49.5 मिलियन ($32 मिलियन) तक के जुर्माने का सामना करना पड़ सकता है. इसे अगले साल पूरी तरह से लागू किया जाएगा.
 
हालांकि, जहां एक ओर यह कदम बच्चों की मेंटल हेल्थ के लिए जरूरी समझा जा रहा है, वहीं कई लोग हैं जो इसकी आलोचना भी कर रहे हैं. कुछ लोगों का मानना है कि यह बैन बच्चों की क्रिएटिविटी और उनके जुनून पर लिमिट लगा सकता है. 

सोशल मीडिया का बच्चों पर बढ़ता प्रभाव
पिछले कई सालों से, हेल्थ एक्सपर्ट सोशल मीडिया के ज्यादा उपयोग के बच्चों पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों को लेकर चिंता जता रहे हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, शोध बताते हैं कि इंस्टाग्राम, स्नैपचैट और टिकटॉक जैसे प्लेटफॉर्म बच्चों की मेंटल, फिजिकल और इमोशनल हेल्थ पर गहरा प्रभाव डाल सकते हैं.

मानसिक स्वास्थ्य पर असर
जामा साइकियाट्री (2021) में पब्लिश एक रिपोर्ट के मुताबिक, जो बच्चे रोजाना तीन घंटे से ज्यादा सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं, उनमें स्ट्रेस, डिप्रेशन और आत्मसम्मान की कमी का जोखिम बढ़ जाता है.

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इसके अलावा, यूके की रॉयल सोसाइटी फॉर पब्लिक हेल्थ (RSPH) की रिपोर्ट ने यह बताया गया है कि इंस्टाग्राम और स्नैपचैट जैसे ऐप्स खासकर छोटी लड़कियों में उनकी बॉडी इमेज को लेकर इंसिक्योरिटी को बढ़ावा देते हैं. 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाकर, ऑस्ट्रेलिया अपने युवाओं को इन हानिकारक प्रभावों से बचाने का प्रयास कर रहा है.

बेहतर नींद का पैटर्न
स्क्रीन टाइम और खराब नींद के बीच का रिलेशन सभी जानते हैं. सोशल मीडिया की नशे की लत अक्सर बच्चों को देर रात तक जगाए रखती है, जिससे उनकी नींद का पैटर्न खराब हो जाता है. इसके अलावा, स्क्रीन से निकलने वाली नीली रोशनी मेलाटोनिन प्रोडक्शन को रोकती है, जो नींद को कंट्रोल करने वाला हार्मोन है.

नेशनल स्लीप फाउंडेशन के अनुसार, किशोरों को हर रात 8-10 घंटे की नींद की जरूरत होती है, लेकिन देर रात तक स्क्रॉलिंग के कारण कई बच्चे इस जरूरत को पूरा नहीं कर पाते. इन प्लेटफार्मों की पहुंच को लिमिट करके, नया कानून नींद की कमी को दूर करने और किशोरों के लिए एक हेल्दी रूटीन को बढ़ावा देने के लिए लाया जा  रहा है.

फिजिकल एक्टिविटी को बढ़ाना 
लंबे समय तक सोशल मीडिया का उपयोग बच्चों के लाइफस्टाइल को काफी धीमा बना देता है. वे ज्यादा समय अपना फोन पर बिताते हैं. रील्स और अपडेट्स की लत अक्सर बच्चों को घर के अंदर ही बांधे रखती है, जिससे उनकी फिजिकल एक्टिविटी कम होती जाती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, 5-17 साल के बच्चों को हर दिन कम से कम एक घंटे फिजिकल एक्टिविटी करनी चाहिए. 

इतना ही नहीं बल्कि सोशल मीडिया अक्सर सामाजिक दबाव को बढ़ाता है. इन प्लेटफार्मों से बच्चों को बचाकर, उन्हें स्ट्रेस से दूर रखा जा सकता है.