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डेल्टा, ओमिक्रॉन ..अब IHU... जानिए कैसे रखे जाते हैं कोरोना के वैरिएंट्स के नाम

जब किसी बीमारी के नाम के आगे 'एन' शब्द लिख दिया जाता है तो समझ लें कि वह बीमारी घातक है और डॉक्टरों के लिए उसका इलाज करना मुश्किल होता है. नोवल शब्द के लिए एन लिखा जाता है. नोवल शब्द का इस्तेमाल तब किया जाता है जब किसी बीमारी का पैथोलॉजिकल रिकॉर्ड नहीं होता और उसका पूरा एलगोरिदम नया होता है यानी शोधकर्ताओं को बिल्कुल शुरुआत से बीमारी को समझना पड़ता है.

जिनके नाम के आगे लिखा होता है 'N' कैसा होता है यह रोग जिनके नाम के आगे लिखा होता है 'N' कैसा होता है यह रोग
हाइलाइट्स
  • नये वैरिएंट्स को आसान नॉन-साइंटिफिक नाम दिया जाना चाहिए

  • ताकि दुनियाभर में लोग आसानी से इससे बचाव को लेकर जागरुकता फैला सकें

  • आइसीडी किसी बीमारी का नाम रखने में बहुत सतर्क रहता है

कोरोना वायरस पर काबू पाने की उम्मीद एक बार फिर फीकी पड़ती नजर आ रही है. आए द‍िन कोरोना के नए नए वैर‍िएंट सामने आ रहे हैं. पहले डेल्टा, फ‍िर ओम‍िक्रॉन और अब IHU. आख‍िर इन वैर‍िएंट्स के नाम कैसे रखे जाते हैं. इनकी प्रक्र‍िया क्या होती है. दक्षिण अफ्रीका में पनपे COVID-19 के वैरिएंट ओम‍िक्रॉन का नाम ग्रीक वर्णमाला के 15वें अक्षर से शुरू होता है. भारत में जो संस्करण उभरा वह B.1.617.2 के तौर पर नहीं जाना जाता है. बल्कि इसे डेल्टा के नाम से जाना जाता है, जो ग्रीक वर्णमाला का चौथा अक्षर है. बीच के कुछ एल्‍फाबेट जैसे Nu तथा Xi को छोड़ दिया गया क्‍योंकि Nu को New (नया) तथा Xi  को चीन का प्रचलित सरनेम समझा जा सकता था.

ओमिक्रॉन के साथ अब वैज्ञानिकों ने दक्षिणी फ्रांस में COVID-19 के एक नए स्ट्रेन की पहचान की है.  'IHU' नाम वाले इस, B.1.640.2 वेरिएंट की जानकारी IHU Mediterranee के शोधकर्ताओं की तरफ से दी गई और कम से कम 12 मामलों की जानकारी मिली है. साथ ही इस वेरिएंट की ट्रैवल हिस्ट्री अफ्रीकी देश कैमरून जोड़ी गई है, यानी कैमरून से वेरिएंट सामने आने की आशंका है.

नॉन-साइंटिफिक होते है  नये वैरिएंट्स के नाम

WHO के अनुसार, कोरोना वायरस के नये वैरिएंट्स को आसान नॉन-साइंटिफिक नाम दिया जाना चाहिए ताकि दुनियाभर में लोग आसानी से इससे बचाव को लेकर जागरुकता फैला  सकें. इसके लिए संगठन ने फैसला किया कि हर नये वैरिएंट का नाम, ग्रीक शब्‍दावली के एल्‍फाबेट के नाम पर रखा जाएगा. ग्रीक शब्‍दावली में अल्‍फा, बीटा, गामा, और डेल्‍टा जैसे एल्‍फाबेट हैं जिनपर वायरस के वैरिएंट को नाम दिया जा रहा है.

ऐसे पड़ा ओमिक्रॉन नाम

भारत में पाए गए B.1.617.2 वैरिएंट को इसी आधार पर डेल्‍टा वायरस नाम दिया गया था. यह वायरस का चौथा वैरिएंट था. अब नए B.1.1.529 वेरिएंट को ओमिक्रॉन  नाम दिया गया है. यह असल में ग्रीक शब्‍दावली का 15वीं लेटर है. बीच के कुछ एल्‍फाबेट जैसे Nu तथा Xi को छोड़ दिया गया क्‍योंकि Nu को New (नया) तथा Xi को  चीन का प्रचलित सरनेम समझा जा सकता था. 

नाम रखने में किस तरह की सावधानी बरती जाती है

आइसीडी किसी बीमारी का नाम रखने में बहुत सतर्क रहता है.  डब्ल्यूएचओ के मानक के मुताबिक किसी बीमारी के नाम से किसी धर्म, नस्ल, देश और इलाके की भावनाओं को आहत करने वाली न हो. साथ ही बीमारी के लिए किसी देश, नस्ल, इलाके को किसी बीमारी के लिए जिम्मेदार ठहराने वाले नाम भी नहीं रखा जा सकता है. 

तो क्या 2015 से पहले दिए गए बिमारियों के नाम नियमों को तोड़ने वाले हैं ? 

कुछ बीमारियों के नाम उनकी भौगोलिक स्थिति का उल्लेख करते हैं, इसमें शहर, देश या क्षेत्र या यूं कहें कि जहां भी कोई बीमारी पहली बार पनपती हो. इस लिस्ट में इबोला वायरस का नाम आता है. जिसकी पहली पहचान कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में यंबुकु में की गई थी, जो इबोला नदी से 100 किमी दूर है. इसी तरह जीका वायरस का नाम युगांडा के जीका वन से लिया गया है. बता दें कि ये वायरस सबसे पहले 1947  में  बंदरों में पाया गया और पांच साल बाद युगांडा और तंजानिया में मनुष्यों में फैल गया. ठीक इसी तरह  जापानी इंसेफेलाइटिस का नाम पड़ा, जिसका पहला मामला 1871 में  दर्ज किया गया. 

कुछ बीमारियों का नाम उस व्यक्ति के नाम पर पड़ता है  जिसने सबसे पहले इस बीमारी की पहचान की थी.  चागास रोग का नाम ब्राजील के चिकित्सक कार्लोस चागास के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने 1909 में इस बीमारी की खोज की थी.  इसी तरह, क्रूट्ज़फेल्ड-जेकोब रोग उन व्यक्तियों को की तरफ इशारा करता है  जिनमें ये बीमारी पाई गई. 

कुछ बीमारियों में जानवरों का नाम होता है - बर्ड फ्लू (H5N1) और स्वाइन फ्लू (H1N1).  2009 H1N1 महामारी को आमतौर पर स्वाइन फ्लू के रूप में जाना जाता था.  यह ध्यान रखना जरूरी  है कि 2009 में पनपा एचवन एनवन वायरस पूरी तरह से सूअर से नहीं निकला था, वायरस में पक्षी, स्वाइन और मानव फ्लू के जीन का संयोजन था.  

'एन' बनाता है बीमारी को घातक

जब किसी बीमारी के नाम के आगे 'एन' शब्द लिख दिया जाता है तो समझ लें कि वह बीमारी घातक है और डॉक्टरों के लिए उसका इलाज करना मुश्किल होता है.  नोवल शब्द के लिए एन लिखा जाता है. नोवल शब्द का इस्तेमाल तब किया जाता है जब किसी बीमारी का पैथोलॉजिकल रिकॉर्ड नहीं होता और उसका पूरा एलगोरिदम नया होता है यानी शोधकर्ताओं को बिल्कुल शुरुआत से बीमारी को समझना पड़ता है.