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दूध उत्पादन में हो रही है लगातार गिरावट के बीच मिली आशा की किरण, ICAR-NCRE ने तैयार की लंपी वायरस की पहली स्वदेशी वैक्सीन

भारत के राजस्थान, पंजाब और गुजरात जैसे राज्यों में गाय, भैंस, बैल और ऊंट आदि में Lumpy Skin Disease तेजी से फैल रही है. जिस कारण हजारों की संख्या में मवेशियों की मौत हो रही है. इस समस्या का हल करने के लिए ICAR-NCRE ने LSD वायरस के खिलाफ वैक्सीन तैयार की है.

LSD leading to decrease in milk production LSD leading to decrease in milk production
हाइलाइट्स
  • LSD से गायों के दूध में गिरावट की रिपोर्ट

  • ICAR-NCRE ने बनाई वैक्सीन 

भारत के कई राज्यों में पशुओं में 'लंपी स्किन डीजीज' (Lumpy Skin Disease) आने वाले महीनों में भारत में दूध उत्पादन की मात्रा का कम करने वाला है. इस बीमारी से जूझ रहे राजस्थान, गुजरात और पंजाब जैसे राज्य पहले से ही गायों के दूध में गिरावट की रिपोर्ट दे रहे हैं.

इस बीमारी से न केवल गायों, बल्कि भैंसों, और बैलों की भी मृत्यु हो रही है. अगर टीकाकरण में और देरी की गई तो दूध की पैदावार गंभीर रूप से प्रभावित हो सकती है.राजस्थान के नागौर जिले के पांच गांवों में एक दिन में 100 से अधिक गायों की मौत हुई है.

जिले के एक स्थानीय पशुपालक, धीरज गौर ने बताया, “एक जेसीबी मशीन तो सिर्फ उन मवेशियों के लिए गड्ढा खोदने के लिए खड़ी है, जो लंपी स्किन डीजीज (एलएसडी) के कारण मरे हैं और इन्हें सभी राजमार्गों और खुले क्षेत्रों में दबाया गया है. वास्तव में, हजारों गाय/बैल इस वायरस से संक्रमित हो रहे हैं और मृत्यु दर 40-50% है. जबकि अन्य रिपोर्टों में संख्या 5-10 हजार के आसपास है और मृत्यु दर 5-6% है.”

ICAR-NCRE ने बनाई वैक्सीन 
हालांकि, राहत की बात यह है कि हिसार में इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च, नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन इक्वाइन (आईसीएआर-एनसीआरई) ने आईसीएआर इज्जतनगर, बरेली, यूपी के सहयोग से लंपी स्किन डीजीज के लिए पहली स्वदेशी वैक्सीन बना ली है. जिसे अभी 'लम्पी प्रो वैक' कहा जा रहा है.

फिलहाल, एलएसडी के लिए सिर्फ एक वैक्सीन उपलब्ध है और वह है गोट पॉक्स और शीप पॉक्स वायरस के खिलाफ प्रयोग की जाने वाली वैक्सीन. यह LSD बीमारी से सुरक्षा प्रदान करने में केवल लगभग 70% प्रभावी है, और ज्यादातर मामलों में यह अप्रभावी पाया गया है.

हाल के उदाहरणों से पता चलता है कि संक्रमण अब भैंसों, और बैलों में फैल रहा है, जिनकी पहले इस रोग के प्रति प्रतिरोधी होने की उम्मीद थी, और यहां तक ​​​​कि घोड़ों और ऊंटों के संक्रमित होने के कुछ मामले सामने आए हैं. हरियाणा के हिसार जिले के हिसार बोवाइन स्पर्म सेंटर में, लोगों ने बीमारी फैलने के डर से 46 बैलों का टीकाकरण किया है. 

LSD वैक्सीन है प्रभावी 
हिसार बोवाइन स्पर्म सेंटर के तकनीकी प्रमुख, डॉ वी के मुंजाल ने बताया कि उन्हें अभी इस टीके के साइड इफेक्ट के बारे में पता नहीं है. इसलिए उन्होंने 13 अगस्त को 46 सांडों को इंजेक्शन लगाया है. अभी तक इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं हुआ है और सांड के वीर्य की गुणवत्ता में भी कोई समस्या नहीं है. वह टीकाकरण के एक महीने बाद एंटीबॉडी टाइट्रे के परीक्षण के लिए भी जाएंगे.

वहीं, एक फार्म के मालिक, रमेश जिंदल ने बताया कि गोट पॉक्स का टीका अभी भी बीमारी को रोक नहीं रहा है और हमें लगा कि नया एलएसडी टीका अधिक प्रभावी है. जानवरों में एलएसडी, इंसानों में कोरोना की तरह है, अगर कोई जानवर नहीं खाता है तो वह दूध नहीं देगा, और आखिरकार मर जाएगा. वह नहीं जानते कि यह बीमारी कितना प्रभावित कर रही है. कुछ मामलों में यह मौत का कारण भी बन रही है. सिर्फ गाय ही नहीं, भैंसें भी संक्रमित हो रही हैं.

क्यों जरूरी है वैक्सीन 
इस बीमारी के दूध उत्पादन प्रभावित रहेगा और कुछ समय के लिए बहुत कम रह सकता है क्योंकि प्रभावित जानवर भी प्रजनन नहीं करेंगे. इसके लक्षण मवेशी को इतने दुर्बल करने वाले होते हैं कि दूध उत्पादन पर सीधा प्रभाव पड़ता है. डॉ नवीन कुमार, प्रधान वैज्ञानिक, भाकृअनुप, एनसीआरई संस्थान हिसार ने कहा, "एलएसडी के लक्षण तेज बुखार और त्वचा की गांठों का विकास है, जिससे कमजोरी होती है और इसलिए गायों की दूध उत्पादन में भारी कमी आती है. गर्भवती गायों का गर्भपात हो जाता है और बैल बाँझ हो जाते हैं."

वहीं, डॉ बी एन त्रिपाठी, उप महानिदेशक, पशु विज्ञान, आईसीएआर ने बताया कि उन्होंने वैक्सीन के लिए एक आपातकालीन उपयोग प्राधिकरण के लिए भी व्यक्त किया है. 2296 मवेशियों को विभिन्न खेतों में टीका लगाया गया है. यह स्तनपान कराने वाले, गर्भवती और दुधारू पशुओं के साथ-साथ कुछ सांडों को दिए जाने के लिए सुरक्षित पाया गया है. गुजरात, पंजाब और राजस्थान जैसे राज्य अधिक टीकों की मांग कर रहे हैं क्योंकि यहां मृत्यु ज्यादा हो रही है. 

(मिलन शर्मा की रिपोर्ट)

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