फिल्में देखना लगभग सभी को पसंद होता है. कई बार इमोशनल फिल्म देखने के बाद हम खुद को रोने से भी नहीं रोक पाते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं फिल्म देखकर रोने वालों की कम उम्र में मरने की संभावना ज्यादा होती है. ऐसा हम नहीं बल्कि एक रिसर्च में कहा गया है. यह सुनकर आपको थोड़ा अजीब लग सकता है, लेकिन इसके पीछे कई फैक्टर जुड़े हुए हैं.
इस भागदौड़ भरी जिंदगी में अक्सर लोग तनाव, चिंता और अन्य मानसिक समस्याओं से गुजरते हैं. कई बार हम अपने आसपास के लोगों के व्यवहार में चिड़चिड़ापन, चिंता, गुस्सा या फिर उदासी देखते हैं. हालांकि हम इसे सामान्य मानकर नजरअंदाज कर देते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन भावनाओं के साथ जुड़ी एक खास तरह की मानसिक स्थिति होती हैं. जिसे साइंस में ‘न्यूरोटिसिज्म’ कहते हैं? रिपोर्ट्स कहती हैं कि न्यूरोटिसिज्म के लक्षणों वाले लोगों में समय से पहले मौत का खतरा 10 प्रतिशत तक बढ़ सकता है.
क्या हैं ये न्यूरोटिसिज्म?
न्यूरोटिसिज्म एक प्रकार का व्यक्तित्व गुण (personality trait) है, जिसमें व्यक्ति को लगातार मानसिक तनाव, असुरक्षा, डर, और चिंता को समस्याएं होती हैं. ऐसे लोग अक्सर छोटी-छोटी बातों से जल्दी तनाव में आ जाते हैं. वे दूसरों के मुकाबले ज्यादा संवेदनशील होते हैं. ऐसे लोग अक्सर खुद को कमजोर समझने के साथ अपने भविष्य को लेकर भी परेशान रहते हैं.
रिसर्च में हुआ चौंकाने वाला खुलासा
अमेरिका के फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की एक टीम ने पांच लाख लोगों पर ये रिसर्च 17 साल तक की. जिसके सैंपल बायोबैंक से लिए गए. इन 17 सालों में, 5 लाख में से लगभग 43,400 लोगों की मौत हो गई है. इस डेटाबेस में उन लोगों की जानकारी मौजूद हैं जिनका न्यूरोटिसिज्म मूल्यांकन (Evaluation) 2006 से 2010 के बीच पूरी हुई थी. रिसर्च ने देखा कि इन लोगों की वाइटल स्टेटस यानी जीने-मरने का रिकॉर्ड और उनका न्यूरोटिसिज्म स्कोर क्या है? कहीं कम उम्र में मरने के पीछे कोई और जोखिम तो जिम्मेदार नहीं है.
डेटा के अनुसार, 5 लाख में से जिन 43,400 लोगों की मौत हुई उनकी मौत के समय औसत उम्र 70 साल थी और इनमें से ज्यादातर की मृत्यु का कारण कैंसर था. कैंसर के बाद मौत के दूसरे प्रमुख कारणों में तंत्रिका तंत्र (nervous system) की बीमारियां, सांस से जुड़ी बीमारियां (Respiratory system) और पाचन तंत्र (Digestive system) से जुड़ी समस्याएं भी शामिल थी. इनमें से 291 लोग ऐसे थे जिन्होंने अपनी हालातों के कारण सुसाइड कर जान गंवाई. ये लोग अक्सर खुद को दोषी महसूस करते थे, साथ ही उनके मूड में बार-बार बदलाव आते रहते थे और वे हमेशा तनाव में रहते थे. हालांकि ये वो लोग थे जिन्हें न्यूरोटिसिज्म की रिपोर्ट के अनुसार अकेलेपन में उच्च स्तर पर रखा गया था.
फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एंटोनियो टेर्राचियानो ने साइपोस्ट के एक इंटरव्यू में बताया कि "हमें यह देखकर हैरानी हुई कि अकेलापन, न्यूरोटिसिज्म के अन्य कारणों की तुलना में कहीं ज्यादा गंभीर असर डालता है. जो लोग अकेलापन महसूस करते हैं, उनमें मौत का खतरा उन लोगों से कहीं ज्यादा है जो सिर्फ चिंता या गिल्ट महसूस करते हैं.''