बदलते मौसम के चलते कई लोग सर्दी और खांसी के दौरान मतली, उल्टी, बुखार, शरीर में दर्द जैसी बीमारियों से जूझ रहे हैं. इसके साथ ही लोगों में H3N2 इन्फ्लूएंजा वायरस का भी खतरा बढ़ रहा है. मामूली दिखने वाली इन बीमारियों ने धीरे-धीरे सैकड़ों लोगों को अपने चपेट में ले लिया है. इस बीच इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने मौसमी सर्दी और खांसी के दौरान मतली, उल्टी, बुखार, शरीर में दर्द जैसे लक्षणों वाले रोगियों के बीच एंटीबायोटिक दवाओं के सेवन को लेकर अहम सलाह दी है.
IMA की तरफ लोगों के लिए जारी की गई सलाह के मुताबिक जिन लोगों को बुखार होने के बाद तीन दिनों के अंत में तीन सप्ताह तक लगातार खांसी के साथ बढ़ती जाती है तो उनमें से अधिकतर मामलों में H3N2 इन्फ्लूएंजा वायरस के लक्षण हो सकते हैं. साथ ही उन्होंने सर्दी और खांसी होने पर उसे ठीक करने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं को लेने से बचने के सुझाव दिया है. यह भी कहा है कि सर्दी-खांसी होने पर पहले यह पुष्टि करें कि ये वायरस किस प्रकार का है और इससे कितना खतरा हो सकता है.
पहले कराएं जांच फिर लें दवा
IMA ने लोगों को सख्त हिदायत देते हुए कहा है कि जब भी बदलते मौसम में सर्दी, खांसी या बुखार से पीड़ित हो तो सबसे पहले डॉक्टर से सम्पर्क करें. उनके द्वारा बताई गई दवाइयों का ही सेवन करें. हालांकि लोग जब बदलते मौसम में सर्दी-खांसी से पीड़ित होते हैं तो एज़िथ्रोमाइसिन और एमोक्सिक्लेव आदि जैसे एंटीबायोटिक लेना शुरू कर देते हैं, वह भी किसी डॉक्टर को दिखाए बिना. जबकि ऐसा नहीं करनी चाहिए. इतना ही जब लोगों को बीमारी से निजात मिल जाती है तो दवाओं का कोर्स पूरा किए बिना ही अपने मन से दवा खाना बंद कर देते हैं. इसके साथ ही आईएमए ने बयान में कहा कि लोगों को ऐसा करने से अपने आपको रोकना चाहिए क्योंकि इससे एंटीबायोटिक प्रतिरोध होता है. जब भी एंटीबायोटिक दवाओं का वास्तविक उपयोग होगा. वे प्रतिरोध के कारण काम नहीं करेंगी.
बिना लक्षण के भी दी जा रही दवाएं
IMA ने अपने सुझाव में बताया कि वायरस के सटीक लक्षण नहीं होने के बावजूद डॉक्टरों के द्वारा एंटीबायोटिक दवाएं दी जा रही है. इसमें से करीब 70 फीसद डायरिया के मामले हैं. जिसमें डॉक्टर मरीजों को एंटीबायोटिक दवाएं लिख रहे हैं. इन एंटीबायोटिक दवाओं से सबसे ज्यादा एंटीबायोटिक एमोक्सिसिलिन, नॉरफ्लोक्सासिन, सिप्रोफ्लोक्सासिन, ओफ़्लॉक्सासिन, लेवोफ़्लॉक्सासिन शामिल है. जबकि इनका इस्तेमाल डायरिया और यूटीआई (मूत्र पथ के संक्रमण) के इलाज के लिए दिया जाता है.