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दुनियाभर में बढ़ रहा भारत की जेनेरिक दवाओं का निर्यात... सस्ती तो हैं क्या ब्रांडेड जितनी ही असरदार हैं? एक्सपर्ट से जानें

इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स के मुताबिक, जेनेरिक दवाओं के उपयोग से मरीजों को उच्च गुणवत्ता की दवाएं किफायती कीमतों पर मिल रही हैं. यही वजह है कि कई देशों में भारतीय जेनेरिक दवाओं की मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. भारत की फार्मा इंडस्ट्री की ये सस्ती दवाएं भी उतनी ही प्रभावी और सुरक्षित हैं जितनी महंगी ब्रांडेड दवाएं.

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जब भी हम बीमार होते हैं, डॉक्टर हमें दवाइयां लिखकर देते हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि वही दवाई, जो ब्रांडेड पैकेजिंग में महंगे दामों पर मिलती है, एक दूसरी कंपनी की तरफ से सस्ते दाम में भी मिल सकती है? क्या सस्ती जेनेरिक दवाएं उतनी ही असरदार होती हैं जितनी महंगी ब्रांडेड दवाएं?

दरअसल, भारत की फार्मा इंडस्ट्री दुनिया की सबसे बड़ी जेनेरिक दवा निर्माता है. US FDA के अनुसार, जेनेरिक दवा वह होती है जिसे पहले से बाजार में उपलब्ध ब्रांडेड दवा के समान बनाया जाता है- इसमें डोज, सेफ्टी, पावर, एडमिनिस्ट्रेशन का तरीका, गुणवत्ता, परफॉर्मन्स और उपयोग का उद्देश्य सब कुछ समान होता है. FDA की मानें, तो "किसी भी जेनेरिक दवा को शरीर में उसी तरह रिएक्शन करना चाहिए जैसा कि ब्रांडेड दवा करती है.”

Ornate Labs Pvt Ltd के संस्थापक संजीव राय, जो पिछले 25 सालों से फार्मा इंडस्ट्री में सक्रिय हैं, ने कहा, "जेनेरिक दवाएं सीधे ग्राहक को दी जाती हैं और इन पर कोई प्रिस्क्रिप्शन की आवश्यकता नहीं होती. मैन्युफैक्चरिंग, एनालिसिस, टेस्टिंग- इन सभी में ब्रांडेड और जेनेरिक दवाओं के पैरामीटर एक समान होते हैं. बस प्रमोशन का फर्क होता है."

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संजीव राय कहते हैं, “जब भी किसी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट में इंस्पेक्शन होता है, इंस्पेक्टर केवल प्रोडक्ट के मानकों पर ध्यान देते हैं, यह नहीं देखते कि दवा को जेनेरिक के रूप में बेचा जा रहा है या जनरल के रूप में. यही वजह है कि भारतीय बाजार में दवाओं की गुणवत्ता में कोई समझौता नहीं होता.”

क्या सच में जेनेरिक दवाइयों और ब्रांडेड में फर्क होता है?
दरअसल, अक्सर यह भ्रांति रहती है कि ब्रांडेड दवाएं बेहतर होती हैं. हालांकि, फार्मा इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स और डॉक्टर्स की राय कुछ और है. उनके मुताबिक, जेनेरिक दवाएं उन्हीं एक्टिव इंग्रेडिएंट्स और स्टैंडर्ड क्वालिटी पर खरी उतरती हैं. FDA के अनुसार, किसी भी दवा का प्रभाव और सुरक्षा उसके एक्टिव इंग्रेडिएंट्स पर निर्भर करता है, न कि उसके ब्रांड नाम पर. भारतीय जेनेरिक दवाओं और ब्रांडेड दवाओं में केवल प्रमोशनल तरीकों में अंतर होता है.

नई दिल्ली के मैक्स हॉस्पिटल के मेडिकल ओन्कोलॉजी डायरेक्टर डॉ. कुमारदीप दत्त चौधरी कहते हैं, "भारत के जेनेरिक दवाओं के बारे में जो भ्रांतियां हैं, वे ठोस सबूतों पर आधारित नहीं हैं. हमारे देश में ऐसे कई प्रोडक्ट्स हैं जो FDA और WHO, GMP मानकों को पूरा करते हैं. खासकर कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों के इलाज में, जेनेरिक दवाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं क्योंकि वे किफायती होने के साथ-साथ हाई क्वालिटी की भी होती हैं."

उन्होंने यह भी जोर दिया कि नियमित इंस्पेक्शन और ट्रांसपेरेंसी से भारत की मेडिसिन इंडस्ट्री को और बेहतर बनाया जा रहा है जिससे वैश्विक स्तर पर मरीजों का विश्वास बढ़ा है.

दवाओं की गुणवत्ता में कोई समझौता नहीं होता
Praxis Global Alliance के फार्मा एंड लाइफसाइंस के मैनेजिंग पार्टनर और CEO मधुर सिंघल ने भी इसे लेकर विस्तार से बताया. उन्होंने कहा, “भारत में जेनेरिक दवा बनाने की प्रक्रिया कई चरणों में की जाती है, जिसमें गुणवत्ता, सुरक्षा और प्रभावशीलता पर विशेष ध्यान दिया जाता है. रिसर्च, फार्मूलेशन, बायोइक्विवेलेंस रिसर्च, और GMP के तहत मैन्युफैक्चरिंग – यह सब मिलकर यह सुनिश्चित करते हैं कि जेनेरिक दवा ब्रांडेड दवाओं के बराबर ही हो."
उन्होंने यह भी बताया कि Regulatory Compliance के तहत CDSCO (Central Drugs Standard Control Organization) से मिलने वाले clearances और निरंतर निगरानी के कारण, हर दवा का परीक्षण एक ही मानक पर किया जाता है. यही वजह है कि चाहे दवा जनरल हो या जेनेरिक, दोनों में गुणवत्ता का अंतर नहीं होता, केवल प्रमोशनल तरीके में ही फर्क होता है.

McKinsey & Company की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की जेनेरिक दवाओं का निर्यात 9% की दर से बढ़ रहा है, जो वैश्विक औसत से लगभग दोगुना है. यह वृद्धि दिखाती है कि भारतीय कंपनियां न केवल घरेलू बाजार में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी अपनी पहचान मजबूत कर रही हैं. अमेरिका, यूके, यूरोप और अन्य देशों में भारतीय दवाओं की मांग लगातार बढ़ रही है.

जेनेरिक दवा बनने की प्रक्रिया

  1. रिसर्च और डेवलपमेंट- पहले उन ब्रांडेड दवाओं की पहचान की जाती है जिनका पेटेंट खत्म हो चुका हो.
  2. फॉर्मूलेशन- दवा को ब्रांडेड वर्जन की तरह तैयार किया जाता है ताकि यह उसी तरह असर करे.
  3. बायो-एक्विवेलेंस टेस्टिंग- जेनेरिक दवा का असर शरीर पर ब्रांडेड दवा के समान हो, यह सुनिश्चित किया जाता है.
  4. गुणवत्ता परीक्षण- GMP (Good Manufacturing Practices) के तहत हर बैच की गुणवत्ता जांची जाती है.
  5. मार्केटिंग और प्रमोशन- जेनेरिक दवाएं सीधे अस्पतालों, सरकारी संस्थानों और फार्मेसियों को बेची जाती हैं.

होमियो अमिगो के फाउंडर और CEO करण भार्गव ने GNT डिजिटल को बताया, "भारत का फार्मास्युटिकल उद्योग एक पावरहाउस है. दवा बनाने में रॉ मटेरियल से लेकर आखिरी प्रोडक्ट तक हर कदम पर गुणवत्ता का विशेष ध्यान रखा जाता है. हर बैच में गुणवत्ता और सटीकता बनी रहे इसके लिए कड़ाई से पालन होता है.”

वहीं, मेडीसेवा के सीईओ डॉ. विशेश कसलीवाल कहते हैं, "भारत की जेनेरिक दवाओं का वैश्विक बाजार में 20% हिस्सा है. हमारी प्रतिस्पर्धी कीमतें और हाई क्वालिटी दवा ने अनगिनत मरीजों की जान बचाई है. बढ़ती बीमारियों जैसे कि डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर के मद्देनजर, भारत ने सस्ती और गुणवत्ता वाली दवाओं के माध्यम से न केवल घरेलू बाजार में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बनाई है."

इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स के मुताबिक, जेनेरिक दवाओं के उपयोग से मरीजों को उच्च गुणवत्ता की दवाएं किफायती कीमतों पर मिल रही हैं. यही वजह है कि कई देशों में भारतीय जेनेरिक दवाओं की मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. भारत की फार्मा इंडस्ट्री की ये सस्ती दवाएं भी उतनी ही प्रभावी और सुरक्षित हैं जितनी महंगी ब्रांडेड दवाएं.