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भारत का कोविड टीकाकरण अभियान: महिलाओं ने कैसे दूर-दूर तक पहुंचाया वैक्सीनेशन प्रोग्राम 

गांवों और दूर-दराज की बस्तियों में काम करने वाली ये महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने महामारी को नियंत्रित करने में अहम योगदान दिया है. ये महिला कार्यकर्ता यह सुनिश्चित करने में सबसे आगे रही हैं कि महामारी को कैसे नियंत्रित किया जाये और लोगों में इसके बारे में जागरुकता फैलायी जाए.

महिलाओं ने कैसे दूर-दूर तक पहुंचाया वैक्सीनेशन प्रोग्राम  महिलाओं ने कैसे दूर-दूर तक पहुंचाया वैक्सीनेशन प्रोग्राम 
हाइलाइट्स
  • महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने महामारी को नियंत्रित करने में अहम योगदान दिया है.

  • आशा कार्यकर्ताओं ने वैक्सीन के खिलाफ हिचकिचाहट दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

भारत ने 150 करोड़ कोविड टीकाकरण की बेमिसाल उपलब्धि को हासिल कर लिया है. इसके पीछे डॉक्टर्स, नर्स, कोविड वॉरियर्स और तमाम साइंटिस्टों और रिसर्चस की अथक मेहनत शामिल है. पर ये कहना भी गलत नहीं होगा कि भारत के कोविड वैक्सीन कार्यक्रम की सफलता के पीछे महिलाओं का बड़ा योगदान है. हाल ही में भारत ने अपने वैक्सीनेशन अभियान की पहली सालगिरह मनाई. एक साल में 1.5 बिलियन से ज्यादा वैक्सीन डोज देने के पीछे जमीनी स्तर की महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताएं हैं. 

हालांकि, उनके काम को ज्यादा मान्यता नहीं मिली है, लेकिन ये कहना गलत नहीं होगा कि गांवों और दूर-दराज की बस्तियों में काम करने वाली ये महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने महामारी को नियंत्रित करने में अहम योगदान दिया है. ये महिला कार्यकर्ता यह सुनिश्चित करने में सबसे आगे रही हैं कि महामारी को कैसे नियंत्रित किया जाये और लोगों में इसके बारे में जागरुकता फैलायी जाए. इन मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (आशा कार्यकर्ता) की भूमिका कम भले है, लेकिन इन्होंने महामारी की शुरुआत से लेकर ओमिक्रॉन वेरिएंट के प्रसार से निपटने में अहम योगदान दिया है. 

प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की जानकारी देती हैं

ये ग्रामीण फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्ता देशभर में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल और स्वास्थ्य संबंधी जानकारी देती हैं और इनकी संख्या लगभग एक मिलियन है.ये महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता अक्सर जरूरत पड़ने पर सबसे पहले बुलाई जाती हैं और ग्रामीण समुदायों में किसी आपात स्थिति के लिए जल्द से जल्द प्रतिक्रिया देती हैं. जब महामारी ने देश को प्रभावित किया, तो उन्हें महामारी के प्रसार से निपटने की अग्रिम पंक्ति में सीधे कार्रवाई के लिए भेजा गया. 

नदियों और नालों को पार कर पहुंची महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता

अक्सर गुलाबी रंग के कपड़े पहने ये महिलाएं भारत की हर उन जगहो, हर कोनों पर पहुंची हैं पर जहां पारंपरिक चिकित्सा सेवा या तो तुरंत उपलब्ध नहीं होती है या पहुंचने में लंबा समय लेती है. इन्होंने टीकाकरण की आवश्यकता के बारे में जानकारी, कोविड -19 से लड़ने के तरीकों के बारे में जानकारी और यहां तक की टीके भी लोगों के दरवाजे पर उपलब्ध कराए हैं. टीकों के बक्सों को लेकर इन महिलाओं ने पहाड़ियों को पार किया है और जंगलों को नापा है. उन्होंने नदियों और नालों को पार किया है, यहां तक कि सबसे दुर्गम आदिवासी गांवों और द्वीपों में भी आशा कार्यकर्ताओं की उपस्थिति देखी गई है.  

महिलाओं ने लिखी टीकाकरण अभियान की सफलता की कहानी 

यह आशा कार्यकर्ता ही थीं जो भारत के सबसे छोटे और दूरस्थ स्थानों में लोगों को समझाने में सबसे आगे थीं कि कोविड -19 महामारी से लड़ने का सबसे अच्छा तरीका वैक्सीन लेना है. ऐसे समूहों से बात करके, कभी-कभी लोगों को समझाने के लिए एक ही समुदाय का बार-बार दौरा करके, आशा कार्यकर्ताओं ने वैक्सीन के खिलाफ हिचकिचाहट दूर करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. यही कारण है कि भारत में टीकाकरण के खिलाफ उस तरह का जन विरोध नहीं देखने को मिला जो पश्चिम के कुछ हिस्सों में देखने को मिल रहा है. इसलिए, भारत का टीकाकरण कार्यक्रम न केवल अपने पैमाने और दक्षता के कारण अद्वितीय है, बल्कि महिलाओं ने इसकी पहुंच और सफलता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. 

(हिंडोल सेनगुप्ता की रिपोर्ट)