scorecardresearch

Stem Cell Treatment to restore vision: ब्लाइंडनेस के इलाज में बड़ी कामयाबी, जापान में स्टेम सेल ट्रीटमेंट से लौटी आंखों की रोशनी

जापान के रिसर्चर्स ने स्टेम सेल ट्रांसप्लांट थेरेपी का इस्तेमाल करके चार लोगों की आंखों की रोशनी वापस लौटाई है. जी हां, दो साल पहले इन लोगों की स्टेम सेल्स ट्रांसप्लाट की गई थीं जिसके बाद से ये लोग देख सकते हैं.

प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर

जापान के रिसर्चर्स ने पहली बार अंधेपन (Blindness) के इलाज में स्टेम सेल थेरेपी के जरिए एक अद्भुत उपलब्धि हासिल की है. रिसर्चर्स ने लिम्बल स्टेम सेल डेफिशियंसी (limbal stem cell deficiancy) से पीड़ित मरीजों की आंखों की रोशनी वापस लाने में सफलता पाई है. यह एक गंभीर स्थिति है और इसकी वजह से आंखों की देखने की क्षमता पर बुरा असर पड़ता है. इसे ब्लाइंडनेस के इलाज में अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है.

LSCD क्या है?
लिम्बल स्टेम सेल डेफिशियंसी (LSCD) एक ऐसी आंखों की बीमारी है जिसमें कॉर्निया (आंख का पारदर्शी बाहरी हिस्सा) ठीक से काम नहीं कर पाता. जिसके कारण आंख के एक खास हिस्से, जिसे लिम्बस (Limbus) कहते हैं, में पाए जाने वाले स्टेम सेल्स (Stem Cells) कम हो जाते हैं या पूरी तरह खत्म हो जाते हैं. लिम्बल स्टेम सेल्स (limbal stem cell) आंख के लिम्बस हिस्से में होते हैं और ये कॉर्निया को स्वस्थ रखने में मदद करते हैं. ये स्टेम सेल्स कॉर्निया की नई कोशिकाओं (Cells) को बनाते हैं और पुरानी और डेमेज्ड कोशिकाओं की जगह लेते हैं. 

लेकिन जब ये स्टेम सेल्स किसी चोट, संक्रमण, केमिकल बर्न, या जेनेटिक कारणों से खत्म हो जाते हैं, तो कॉर्निया को नई कोशिकाएं नहीं मिल पातीं. जिसके कारण कॉर्निया को नुकसान पहुंचता है, जैसे कॉर्निया खराब होने से धुंधला दिखने लगता है, लगातार दर्द होता है और अगर बीमारी गंभीर हो जाए और इलाज न हो, तो आंख की रोशनी पूरी तरह जा सकती है.

सम्बंधित ख़बरें

स्टेम सेल थेरेपी कैसे की गई?
ओसाका विश्वविद्यालय (Osaka University) के नेत्र रोग विशेषज्ञ (Eye Specialist) कोहजी निशिदा (Kohji Nishida) और उनकी टीम ने कॉर्निया ट्रांसप्लांट के लिए इंड्यूस्ड प्लुरिपोटेंट स्टेम (iPS) सेल्स का इस्तेमाल किया. उन्होंने एक स्वस्थ डोनर की ब्लड सेल्स लीं, उन्हें भ्रूण (embryonic) जैसी अवस्था में बदल दिया, और फिर कॉर्नियल एपिथेलियल सेल्स को ट्रांसपेरेंट पतली शीट में बदल दिया. रिसर्चर्स ने इस इलाज के लिए 40 से 70 साल की उम्र के दो महिलाएं और दो पुरुष चुनें. जिनकी दोनों आंखों में LSCD था. 

सर्जरी में, डॉक्टरों ने मरीज की एक आंख के खराब कॉर्निया से दाग वाली परत हटाई और डेनर की सेल्स से बनी शीट को वहां सिल दिया. इसके ऊपर एक नरम कांटेक्ट लेंस लगाया गया ताकि आंख सुरक्षित रहे.

ट्रांसप्लांट के दो साल बाद विज़न टेस्ट
ट्रांसप्लांट के दो साल बाद यह बताया गया कि किसी भी मरीज को कोई साइड इफेक्ट नहीं हुआ. न ही इन ग्राफ्ट्स में ट्यूमर बने जो iPS सेल्स के लिए रिस्क माना जाता है, और न ही मरीजों के इम्यून सिस्टम ने इन सेल्स पर कोई हमला किया. ट्रांसप्लांट के बाद से सभी चार मरीजों की आंखों की देखने की क्षमता में सुधार हुआ है. LSCD से प्रभावित कॉर्निया में कमी देखी गई. 

यह सुधार तीन मरीजों में स्थायी रहा, जबकि एक मरीज में एक साल के दौरान थोड़ी कमी देखी गई. रिसर्चर्स के मुताबिक यह स्पष्ट नहीं है कि आंखों की देखने की क्षमता में सुधार कैसे हुआ. कोहजी निशिदा और उनकी टीम इस इलाज की प्रभावशीलता का अनुमान लगाने के लिए क्लिनिकल ट्रायल शुरू करने की योजना बना रहे हैं.