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Superwoman Syndrome: जानें क्या है सुपरवुमन सिंड्रोम जिससे जूझती हैं महिलाएं, कैसे बना सकते हैं अपनी जिंदगी को और भी खुशनुमा 

Superwoman Syndrome: ये एक ऐसी स्थिति है जहां एक महिला अपने जीवन के सभी क्षेत्रों में परफेक्ट होने की कोशिश करती है और इसकी वजह से ज्यादा बोझ और तनाव महसूस करती है.

Superwoman Syndrome Superwoman Syndrome
हाइलाइट्स
  • महिलाओं पर होता है परफेक्ट होने का प्रेशर 

  • महिला रखती हैं दूसरों को पहले 

हर इंसान सभी काम में परफेक्ट नहीं हो सकता है. हालांकि, कुछ ऐसे भी होते हैं जो परफेक्ट होने का प्रेशर लेते हैं. महिलाओं में ये स्थिति ज्यादा देखी जाती है. इसे ‘सुपरवुमन सिंड्रोम' कहा जाता है. ये एक ऐसी स्थिति है जहां एक महिला अपने जीवन के सभी क्षेत्रों में परफेक्ट होने की कोशिश करती है और इसकी वजह से ज्यादा बोझ और तनाव महसूस करती है. वे इसकी वजह से अपनी ही जरूरतों को पीछे रख देती हैं. जिसके कारण अक्सर सिरदर्द, नींद न आना, चिंता और पुरानी थकावट आदि का अनुभव होने लगता है. 

महिलाओं पर होता है परफेक्ट होने का प्रेशर 

दरअसल, सुपरवुमन सिंड्रोम शब्द का इस्तेमाल महिलाओं पर करियर, परिवार और व्यक्तिगत जीवन सहित अपने जीवन के सभी पहलुओं में परफेक्ट होने के लिए किया जाता है. उनके ऊपर इस चीज का प्रेशर होता है कि महिलाएं हर काम में परफेक्ट होंगी. इन एक्सपेक्टेशन की वजह से वे कई बार ब्रेक लेने में भी हिचकती हैं. इससे कई बार उन्हें मानसिक परेशानी भी झेलनी पड़ती हैं. 

महिला रखती हैं दूसरों को पहले 

सुपरवुमन सिंड्रोम अक्सर सामाजिक अपेक्षाओं और सांस्कृतिक मानदंडों से प्रेरित होता है. इसमें सबसे बड़ा है घर की रखवाली करने का बोझ. फिर भले ही इसके लिए उन्हें अपने करियर और व्यक्तिगत लक्ष्यों का पीछे रखना पड़े. जब वे इन अपेक्षाओं पर खड़ी नहीं हो पाती हैं तो उन्हें इनके लिए दोषी महसूस होता है. इस सिंड्रोम से पीड़ित महिला दूसरों को अपने से पहले रखती है, वह जो भी काम करती है उसमें परफेक्ट होने का प्रयास करती है, और अपनी सफलता या असफलता को इसी के हिसाब से देखती है. जैसे कई बार हम अपने घरों में देखते हैं कि महिलाओं पर ही घर की जिम्मेदारी का बोझ होता है. अगर वह बीमार भी हैं तब भी वे खाना बनाएंगी. 

होममेकर भी करती हैं ऐसा फील 

हालांकि, लोग अक्सर ये समझते हैं कि ये सुपरवुमन सिंड्रोम केवल कामकाजी महिलाएं ही झेलती या महसूस करती हैं, लेकिन ऐसा नहीं है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कौन हैं और आप जीवन में क्या कर रहे हैं - कामकाजी माएं, घर पर रहने वाली माताएं, पत्नियां, या छात्र - कोई भी इस स्थिति से गुजर सकता है. यह एक तरह की मानसिकता है कि आप हर काम को अच्छे से करें. इसका कारण ये भी यही कि महिलाओं को अक्सर समाज ये विश्वास दिलाता है कि वे सभी काम और दायित्वों को पूर्णता के साथ पूरा कर सकती हैं, तो इसका परिणाम जीवन भर सुख और सद्भाव होगा. 

सुपरवूमन सिंड्रोम और औरत की मेंटल हेल्थ 

इंडिया डॉट कॉम की रिपोर्ट के मुताबिक, सुपरवुमन सिंड्रोम वाली महिलाओं पर सबसे ज्यादा असर उनकी मेंटल हेल्थ पर पड़ता है. जिन महिलाओं को सीमाएं निर्धारित करने और स्वयं की देखभाल को प्राथमिकता देने में परेशानी होती है, वे अक्सर खराब तबियत से गुजरती हैं. 

विशेषज्ञ के अनुसार, मेंटल हेल्थ पर इस सुपरवुमन सिंड्रोम का असर कम हो जाए इसके लिए जरूरी है कि महिलाएं अपनी खुद की हेल्थ को प्राथमिकता दें, हेल्दी बाउंड्री सेट करें और जरूरत पड़ने पर सहायता मांगे.

सुपरवुमन सिंड्रोम से कैसे निपटें?

-मदद मांगें: हर किसी को सपोर्ट की जरूरत होती है. हम सभी को किसी न किसी बिंदु पर सहायता की आवश्यकता होती है, इसलिए इसके लिए मांग करना कमजोरी का संकेत नहीं है.

-व्यायाम करना शुरू करें: विशेष रूप से अगर आप बहुत अधिक स्ट्रेस में हैं, तो नियमित रूप से ध्यान और  व्यायाम आपको दबाव कम करने और तनाव कम करने में मदद कर सकते हैं.

-ना कहना सीखें: अगर कुछ ऐसा नहीं है जिसे आप करना चाहते हैं या जिसके लिए आपके पास समय नहीं है, तो आप ना कह सकते हैं. इस प्रकार की बाउंड्री अपनी जिंदगी हमेशा रखें. 

-अपनी प्राथमिकताएं देखें: अपनी प्राथमिकताओं और जीवन में आप क्या चाहते हैं, यह समझना सबसे जरूरी है. 

-ज्यादा परवाह करना बंद करें: आपको आइडियल छात्र, वर्कर, मां, पत्नी या किसी अन्य भूमिका की आवश्यकता नहीं है. कोई भी आपको जज नहीं करेगा, और अगर वे ऐसा करते भी हैं, तो आप पर उनका कोई एहसान नहीं है. वैसे ही रहो जैसे आप हो.